प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व पर निबंध: शिक्षा केवल बच्चों के लिए ही नहीं होती, बल्कि यह जीवन के हर पड़ाव में आवश्यक होती है। "सीखना
प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व पर निबंध
प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता और महत्व पर निबंध: शिक्षा केवल बच्चों के लिए ही नहीं होती, बल्कि यह जीवन के हर पड़ाव में आवश्यक होती है। "सीखना कभी बंद नहीं होता" — यह कहावत आज के समय में पूरी तरह सार्थक है। जब हम शिक्षा की बात करते हैं, तो अक्सर बच्चों के स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई की ओर ध्यान जाता है, लेकिन एक बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष छूट जाता है—वह है प्रौढ़ शिक्षा। प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ है वयस्कों को शिक्षा प्रदान करना, ताकि वे भी जीवन में आत्मनिर्भर, जागरूक और सम्मानित नागरिक बन सकें।
हमारे देश में लाखों लोग ऐसे हैं जो बचपन में पढ़ाई नहीं कर पाए, क्योंकि या तो उनका बचपन गरीबी में बीता, या फिर उनके पास शिक्षा के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। बहुतों को तो यह समझ ही नहीं थी कि शिक्षा जीवन में कितनी जरूरी है। ऐसे लोग जब बड़े होते हैं, तो उन्हें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। चाहे बैंक का फॉर्म भरना हो, मोबाइल चलाना हो, सरकारी योजनाओं का लाभ लेना हो या बच्चों की पढ़ाई में मदद करनी हो—हर जगह उन्हें अपनी अशिक्षा खलने लगती है।
ऐसे में प्रौढ़ शिक्षा एक नई रोशनी बनकर सामने आती है। यह वयस्कों को न केवल अक्षरज्ञान देती है, बल्कि उन्हें एक नया आत्मविश्वास भी देती है। जब कोई व्यक्ति पहली बार अपने नाम को खुद लिखता है, तो उसके चेहरे पर जो मुस्कान होती है, वह किसी डिग्री से कम नहीं होती। प्रौढ़ शिक्षा उन्हें यह एहसास कराती है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती।
प्रौढ़ शिक्षा केवल पढ़ना-लिखना सीखने तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह जीवन जीने की समझ भी देती है। इससे व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से भी जागरूक बनता है। वह अपने अधिकारों को जानने लगता है, गलत पर आवाज़ उठाने लगता है और अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने की दिशा में कदम उठाने लगता है। एक पढ़ा-लिखा वयस्क न केवल अपने लिए, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी प्रेरणा बनता है।
भारत जैसे देश में, जहाँ जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है और जहां आज भी बहुत-से लोग अनपढ़ हैं, वहाँ प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता और भी अधिक बढ़ जाती है। सरकार द्वारा ‘साक्षर भारत अभियान’ जैसे कार्यक्रम चलाए गए हैं, जिनका उद्देश्य वयस्कों को शिक्षा से जोड़ना है। कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी गाँव-गाँव जाकर लोगों को पढ़ाने का काम कर रही हैं। आज मोबाइल और इंटरनेट जैसे साधनों ने प्रौढ़ शिक्षा को और आसान बना दिया है। लोग घर बैठे-बैठे भी वीडियो के ज़रिए पढ़ना-लिखना सीख रहे हैं।
विशेष रूप से महिलाओं को प्रौढ़ शिक्षा से बहुत लाभ होता है। एक शिक्षित महिला न केवल अपने घर को बेहतर ढंग से संभालती है, बल्कि वह बच्चों की परवरिश में भी सक्रिय भूमिका निभाती है। वह अपने अधिकारों को समझती है, स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति सजग होती है और समाज में अपनी पहचान बनाती है।
प्रौढ़ शिक्षा का महत्व केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज और राष्ट्र की उन्नति में योगदान देती है। एक पढ़ा-लिखा नागरिक किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होता है। जब देश के वयस्क शिक्षित होंगे, तभी हम एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत की कल्पना कर सकते हैं।
अंत में कहा जा सकता है कि प्रौढ़ शिक्षा एक ऐसी चाबी है जो जीवन के कई बंद दरवाजों को खोल सकती है। यह उन लोगों के लिए दूसरा मौका है, जिन्होंने पहले कभी स्कूल का दरवाज़ा नहीं देखा। ऐसे लोग जब पढ़ते हैं, तो सिर्फ किताबें नहीं पढ़ते, बल्कि अपने सपनों को नया आकार देते हैं। इसलिए हमें प्रौढ़ शिक्षा को एक अभियान के रूप में लेना चाहिए और अपने आस-पास के उन सभी लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए, जो अब तक शिक्षा से वंचित रह गए हैं। यही सच्चा सामाजिक योगदान होगा और यही एक पढ़े-लिखे, जागरूक और खुशहाल भारत की नींव होगी।
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