मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस पर निबंध: हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई पुस्तक ऐसी होती है, जो उसे अत्यंत प्रिय होती है और जिसे वह बार-बार पढ़ने की
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस पर निबंध - Meri Priya Pustak Ramcharitmanas par Nibandh
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस पर निबंध: हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई पुस्तक ऐसी होती है, जो उसे अत्यंत प्रिय होती है और जिसे वह बार-बार पढ़ने की इच्छा रखता है। मेरे लिए वह पुस्तक है "रामचरितमानस", जो गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक अमर काव्य ग्रंथ है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि नैतिकता, भक्ति, प्रेम, सदाचार और जीवन मूल्यों की शिक्षा देने वाला अनुपम महाकाव्य है। इस ग्रंथ का प्रभाव जन-जन पर इतना व्यापक है कि यह हर हिंदू परिवार के पूजा घर में प्रतिष्ठित है। इसे घरों में बड़े श्रद्धा और आस्था के साथ पढ़ा जाता है, और इसके पाठ से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
रामचरितमानस का परिचय
गोस्वामी तुलसीदास ने इस महाकाव्य की रचना संवत् 1631 में अयोध्या में रामनवमी के दिन प्रारंभ की और लगभग दो वर्ष, सात महीने, छब्बीस दिन में इसे पूर्ण किया। यह महाकाव्य भगवान श्रीराम के आदर्श चरित्र और उनके जीवन की घटनाओं पर आधारित है। इसे सात कांडों में विभाजित किया गया है—बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड। प्रत्येक कांड में भगवान श्रीराम के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है, जो पाठकों को न केवल भक्ति भाव से भर देते हैं, बल्कि जीवन की अनेक गूढ़ शिक्षाएँ भी प्रदान करते हैं।
रामचरितमानस में निहित नैतिकता और जीवन मूल्य
यद्यपि रामचरितमानस की कथा श्रीराम के जीवन पर आधारित है, परंतु इसका मूल उद्देश्य केवल कथा सुनाना नहीं, बल्कि इसके माध्यम से समाज को नैतिकता और जीवन के उच्च आदर्शों की सीख देना है। तुलसीदास जी ने स्वयं इस ग्रंथ को विभिन्न पुराणों, वेदों और शास्त्रों के सार का संग्रह बताया है—
"नाना पुराण निगमागम सम्मतं, यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।"
रामचरितमानस हमें सिखाता है कि किस प्रकार एक व्यक्ति को अपने जीवन में सदाचार, संयम और कर्तव्यनिष्ठा को अपनाना चाहिए। श्रीराम का जीवन सत्य, धर्म और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक है, जो हर मनुष्य के लिए प्रेरणास्रोत है। रामचरितमानस में बताया गया है कि भगवान उन्हीं के हृदय में निवास करते हैं, जो लोभ, क्रोध, मोह, अहंकार और कपट से मुक्त होते हैं—
लोककल्याण की भावना
गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ की रचना केवल अपनी संतुष्टि के लिए नहीं, बल्कि लोककल्याण की भावना से की थी। वे चाहते थे कि लोग इसे पढ़कर सदाचारी बनें, उनके हृदय से पाप मिटे और उनमें प्रेम, करुणा, सहानुभूति तथा परोपकार की भावना विकसित हो। तुलसीदास जी का यह मानना था कि कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है, जो गंगाजी की तरह सबका हित करने वाली हो—
समाज में समन्वय की भावना
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में समाज में व्याप्त विभिन्न मतभेदों को मिटाने और एकता का संदेश देने का प्रयास किया है। उनके समय में समाज में जाति-पाति, ऊँच-नीच, ब्राह्मण-शूद्र भेदभाव के साथ-साथ भक्ति और ज्ञान, शैव और वैष्णव संप्रदायों में संघर्ष जैसी समस्याएँ थीं। रामचरितमानस में उन्होंने इन सभी मतभेदों को मिटाने और समाज में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। श्रीराम स्वयं शिवभक्त हैं और कहते हैं—
अर्थात जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। इसी प्रकार, उन्होंने ज्ञान और भक्ति दोनों की समान महत्ता बताते हुए लिखा—
मानव जीवन के आदर्श चरित्र
रामचरितमानस केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के आदर्शों का मार्गदर्शन करने वाला एक महान ग्रंथ है। इसमें मानव जीवन के प्रत्येक संबंध को एक आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है—
- आदर्श भाई: भरत, जिन्होंने राज्य मिलने के बाद भी उसे अस्वीकार कर राम के चरणों में समर्पित कर दिया।
- आदर्श पुत्र: श्रीराम, जिन्होंने पिता के वचन की रक्षा के लिए राजमहल छोड़कर वनवास स्वीकार किया।
- आदर्श पत्नी: सीता माता, जिन्होंने पति के साथ हर संकट में साथ देने का उदाहरण प्रस्तुत किया।
- आदर्श सेवक: हनुमान जी, जो श्रीराम के प्रति अपनी भक्ति और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक हैं।
- आदर्श राजा: श्रीराम, जिन्होंने ‘रामराज्य’ की स्थापना कर न्याय और धर्म की मिसाल पेश की।
रामराज्य की परिकल्पना
रामचरितमानस में प्रस्तुत रामराज्य एक आदर्श शासन व्यवस्था का प्रतिरूप है, जहाँ सभी लोग समान हैं, कोई दुखी नहीं, अपराध नहीं, अन्याय नहीं। तुलसीदास जी इसे इस प्रकार चित्रित करते हैं—
उपसंहार
रामचरितमानस केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और लोकमानस का प्रतिबिंब है। यह पुस्तक केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि नैतिक, सामाजिक और व्यवहारिक दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी है। यह ग्रंथ आज से लगभग 438 वर्ष पूर्व रचा गया था, किंतु इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी तब थी। इसीलिए यह ग्रंथ कालजयी है, और आने वाले युगों तक इसका महत्व बना रहेगा। यह हमें जीवन के अंधकार में प्रकाश दिखाने वाला दीपक है, जो हर युग में मानवता का मार्गदर्शन करता रहेगा। यही कारण है कि "रामचरितमानस" मेरी प्रिय पुस्तक है, और मैं इसे बार-बार पढ़ने की इच्छा रखता हूँ।
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