मीठी वाणी पर निबंध: मीठी वाणी की मिठास किसे आनंदित नहीं करती? जब कोई हमें प्रेम और विनम्रता से संबोधित करता है, तो हमारे हृदय में प्रसन्नता का संचार ह
मीठी वाणी पर निबंध - Meethi Vani par Nibandh
मीठी वाणी पर निबंध: मीठी वाणी की मिठास किसे आनंदित नहीं करती? जब कोई हमें प्रेम और विनम्रता से संबोधित करता है, तो हमारे हृदय में प्रसन्नता का संचार होता है। वाणी ही वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करते हैं। इसलिए जो व्यक्ति मीठी वाणी बोलता है, वह दूसरों को प्रभावित कर सकता है और सफलता की ऊँचाइयों को छू सकता है। धार्मिक ग्रंथों और संतों के उपदेशों में भी मीठी वाणी की प्रशंसा की गई है। गीता में श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि "सत्यप्रियं च वचनं" अर्थात सत्य और प्रिय वाणी बोलनी चाहिए।
मधुर वचन दुखी हृदय के लिए संजीवनी के समान होते हैं। वे मनुष्य के भीतर उत्साह, आत्मविश्वास और प्रेम की भावना उत्पन्न करते हैं। जब कोई व्यक्ति निराशा या दुख से घिरा होता है, तो कुछ सहानुभूति भरे शब्द उसकी पीड़ा को कम कर सकते हैं। भौतिक धन-संपत्ति भी वह शांति नहीं दे सकती, जो स्नेह और मधुर वाणी से मिलती है। यह न केवल श्रोता के लिए सुखद होती है, बल्कि बोलने वाले को भी मानसिक संतोष और आत्मिक शांति प्रदान करती है।
जिस प्रकार मीठी वाणी अमृत के समान होती है, ठीक उसी प्रकार कटु वाणी विष के समान होती है। कठोर शब्द तीर की तरह चुभते हैं और कभी-कभी जीवनभर के लिए मन में घाव छोड़ जाते हैं। यदि किसी परिवार में सदस्य एक-दूसरे से कटु शब्दों में बात करते हैं, तो वहाँ प्रेम और सौहार्द समाप्त हो जाता है। कठोर वाणी बोलने से न केवल दूसरों को दुःख पहुँचता है, बल्कि बोलने वाला स्वयं भी अशांत रहता है। लोग उनसे दूरी बना लेते हैं। ऐसे व्यक्ति को जीवन में अकेलापन और अपमान झेलना पड़ता है, क्योंकि कोई भी उनके साथ अधिक समय व्यतीत करना पसंद नहीं करता।
जिस प्रकार कोयल की मीठी वाणी सबका मन मोह लेती है, वहीं कौए की कर्कश ध्वनि किसी को प्रिय नहीं लगती। जो व्यक्ति मधुर भाषी होता है, वह शीघ्र ही सबका मित्र बन जाता है और लोग उसकी सराहना करते हैं। मधुर वचनों से पराए भी अपने बन जाते हैं। इसी कारण संत तुलसीदास ने कहा है—
इतिहास गवाह है कि जिन व्यक्तियों की वाणी में सौम्यता थी, उन्होंने समाज और राष्ट्र पर अमिट प्रभाव छोड़ा। स्वामी विवेकानंद की वाणी इतनी प्रभावशाली थी कि 1893 में शिकागो में दिए गए उनके भाषण ने पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति की महानता से परिचित कराया। मधुर वाणी में वह शक्ति है, जो बड़े-बड़े शस्त्रों में नहीं होती। यह मनुष्य के हृदय को स्पर्श कर उसमें परिवर्तन ला सकती है। महात्मा बुद्ध के मधुर वचनों ने क्रूर और हिंसक डाकू अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन कर दिया। वह, जो एक समय निर्दयता से लोगों की हत्या करता था, बुद्ध के शांत और मधुर शब्दों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने हिंसा का मार्ग त्याग दिया और सन्यासी बन गया।
वहीं, कठोर और अपमानजनक शब्द कभी-कभी मनुष्य को लज्जित कर सकते हैं। इसका एक उदाहरण रामायण में परशुराम और भगवान राम के संवाद में देखने को मिलता है। जब परशुराम जी क्रोधित होकर कठोर शब्दों का प्रयोग कर रहे थे, तब भगवान राम ने धैर्य और विनम्रता से उत्तर दिया। अंततः परशुराम को अपनी भूल का अहसास हुआ, और वे लज्जित हुए। संत कबीर भी मधुर वाणी और शील-व्यवहार को सर्वोच्च मानते थे, इसीलिए उन्होंने कहा है कि:-
इसलिए यदि हम चाहते हैं कि लोग हमारे साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें, तो हमें भी दूसरों के साथ मधुरता से बात करनी चाहिए। कठोर शब्दों के प्रत्युत्तर में कठोरता ही मिलती है, जिससे मन को कष्ट होता है। शरीर के घाव तो भर सकते हैं, लेकिन वाणी से दिया गया घाव जीवन भर नहीं मिटता।
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