गति ही जीवन है पर निबंध: इस संसार में प्रत्येक जीवित वस्तु गति से बंधी हुई है। गति ही जीवन का आधार है, और जहां गति रुकती है, वहीं जीवन भी ठहर जाता है।
गति ही जीवन है पर निबंध - Gati Hi Jeevan Hai par Nibandh
गति ही जीवन है पर निबंध: इस संसार में प्रत्येक जीवित वस्तु गति से बंधी हुई है। गति ही जीवन का आधार है, और जहां गति रुकती है, वहीं जीवन भी ठहर जाता है। यह ब्रह्मांड अनंत गतिशीलता का प्रतीक है—सूर्य, चंद्रमा, ग्रह-नक्षत्र, समुद्र की लहरें, हवा की चाल, हमारी सांसें—सभी निरंतर गति में हैं। यदि इनमें से कोई भी ठहर जाए, तो अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। मनुष्य के जीवन में भी गति का उतना ही महत्व है। यह केवल शारीरिक गतिविधि तक सीमित नहीं, बल्कि मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है।
गति का महत्व
गति का अभाव केवल ठहराव ही नहीं, बल्कि पतन का कारण भी बनता है। एक नदी जब तक बहती रहती है, तब तक उसमें स्वच्छता बनी रहती है, परंतु जैसे ही वह रुकी, उसमें कीचड़ और दुर्गंध उत्पन्न हो जाती है। इसी तरह, जब कोई मनुष्य प्रगति करना बंद कर देता है, तो उसका विकास रुक जाता है और वह धीरे-धीरे जड़ता का शिकार हो जाता है।
थॉमस एडिसन ने यदि बार-बार असफल होने के बावजूद प्रयोग करना बंद कर दिया होता, तो शायद बल्ब का आविष्कार न होता। महात्मा गांधी यदि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर निरंतर अग्रसर न होते, तो भारत को स्वतंत्रता न मिलती। इसीलिए, जीवन में निरंतर गति बनाए रखना आवश्यक है।
गति का अभाव: विनाश की ओर
जिस प्रकार गति जीवन का प्रतीक है, उसी प्रकार ठहराव मृत्यु का संकेत देता है। यदि रक्त हमारे शरीर में प्रवाहित होना बंद कर दे, तो जीवन समाप्त हो जाएगा। जो व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन में ठहराव ले आता है, वह धीरे-धीरे अपने ही जीवन में निराशा का शिकार हो जाता है।
प्राचीन सभ्यताओं का पतन भी इसी कारण हुआ कि वे समय के साथ नहीं बदलीं और ठहर गईं। उदाहरण के लिए, जब भारत ने वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति से मुंह मोड़ लिया और पुरानी परंपराओं में उलझा रहा, तो अन्य देशों ने प्रगति कर ली और भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ गया।
ठहराव से उत्पन्न जड़ता व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालती है। यदि हम नियमित व्यायाम न करें और निष्क्रिय जीवन जिएं, तो बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। इसीलिए, जीवन में हर स्तर पर गति आवश्यक है।
संतुलित गति: जीवन की सच्ची कला
यद्यपि गति आवश्यक है, परंतु अति गति भी विनाशकारी हो सकती है। यदि कोई गाड़ी बहुत तेज़ दौड़ रही हो और अचानक ब्रेक लगाए जाएं, तो दुर्घटना निश्चित है। इसी प्रकार, यदि हम अंधाधुंध भागते रहें और जीवन में कोई ठहराव या विश्राम न लें, तो मानसिक और शारीरिक थकान हमें निष्क्रिय बना सकती है।
इसलिए, जीवन में एक संतुलित गति आवश्यक है—ऐसी गति जो हमें निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे, परंतु हमें थकाकर निष्क्रिय न कर दे। यह संतुलन ही सच्ची जीवनशैली है।
निष्कर्ष
"गति ही जीवन है" केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि प्रकृति और जीवन का मूल मंत्र है। यह जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है—शरीर, मन, समाज, राष्ट्र और संपूर्ण ब्रह्मांड इसी गति के आधार पर टिके हुए हैं। जो आगे बढ़ता रहता है, वही जीवंत रहता है, और जो ठहर जाता है, वह धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है।
अतः हमें अपने जीवन में गति बनाए रखनी चाहिए—शिक्षा, कार्य, विचार और आत्मिक उन्नति के हर स्तर पर। जीवन में निरंतर सीखते रहना, मेहनत करना और आगे बढ़ते रहना ही सच्ची सफलता की कुंजी है। यही संदेश हमें प्रकृति और इतिहास से मिलता है कि गति ही जीवन है, और ठहराव मृत्यु का द्वार।
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