प्रदूषण मुक्त त्योहार पर निबंध: त्यौहार हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। ये हमें हमारे संस्कृति और परंपराओं से जोड़ते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है
प्रदूषण मुक्त त्योहार पर निबंध (Pradushan Mukt Tyohar par Nibandh)
प्रदूषण मुक्त त्योहार पर निबंध: त्यौहार हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। ये हमें हमारे संस्कृति और परंपराओं से जोड़ते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि हमारे त्यौहार प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बन रहे हैं? आजकल त्योहारों के दौरान होने वाला प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है। पटाखों की आवाज़ और धुआँ, प्लास्टिक के थैले और गंदगी, ये सब हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
त्योहारों का पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। दिवाली जैसे त्योहारों पर आकाश पटाखों के धुएँ से काला पड़ जाता है। ये पटाखे विषाक्त रसायनों जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड आदि से भरपूर होते हैं, जो वायु प्रदूषण के स्तर को कई गुना बढ़ा देते हैं। इन हानिकारक गैसों का सीधा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है, जिससे श्वसन संबंधी रोग, आंखों में जलन और त्वचा रोग उत्पन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त, पटाखों की तेज आवाज से ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ाती है, जिससे तनाव, अनिद्रा और बहरापन जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
होली के रंगों में अक्सर हानिकारक रसायन होते हैं जैसे कि लेड, क्रोमियम और निकेल। ये रसायन न केवल हमारी त्वचा और आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि जल स्रोतों को भी प्रदूषित करते हैं। जब हम रंगों से खेलते हैं तो ये रसायन मिट्टी में मिल जाते हैं और भूमिगत जल को प्रदूषित करते हैं। होली के रंगों को नदियों और तालाबों में बहाने से जल निकाय प्रदूषित होते हैं। इन रंगों में मौजूद रसायन जलीय जीवों के लिए घातक होते हैं।
गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा जैसे जल-संबंधित त्योहार भी पर्यावरण के लिए चुनौती बन गए हैं। मूर्तियों के निर्माण में उपयोग होने वाली हानिकारक सामग्री और उनका विसर्जन जल निकायों को प्रदूषित करता है। इससे जलीय जीवों के जीवन चक्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इन सबके अलावा, त्योहारों पर हम बहुत सारा कचरा भी पैदा करते हैं। प्लास्टिक की थैलियां, गिलास, प्लेट्स, ये सब पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक हैं। ये चीजें बहुत सालों तक सड़ती नहीं हैं और जमीन, पानी और हवा को प्रदूषित करती हैं।
अंततः, त्योहारों का सार है आनंद, प्रेम और एकता। ये मूल्य प्रदूषण के छाया में नहीं छिपने चाहिए। आइए, हम मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण करें जहां त्योहार पर्यावरण के अनुकूल हों और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सकारात्मक विरासत बनें।
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