गुरुद्वारा पर निबंध: गुरुद्वारा शब्द का शाब्दिक अर्थ है गुरु का द्वार। यह एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां सिख लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना करते हैं। किसी म
गुरुद्वारा पर निबंध - Essay on Gurudwara in Hindi
गुरुद्वारा पर निबंध: गुरुद्वारा शब्द का शाब्दिक अर्थ है गुरु का द्वार। यह एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां सिख लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना करते हैं। किसी मंदिर या मस्जिद की तरह गुरुद्वारा भी एक धार्मिक स्थल होता है। गुरुद्वारों में आमतौर पर सफेद संगमरमर या ईंटों का इस्तेमाल किया जाता है, और ऊपर की तरफ एक गोल गुंबद होता है। गुरुद्वारों के सामने ऊंचा झंडा होता है, जिसे निशान साहिब कहते हैं। यह झंडा पीले रंग का होता है और जिस पर सिखों का धार्मिक चिह्न बना होता है।
गुरुद्वारे आने वाले श्रद्धालु गुरु ग्रंथ साहिब के सम्मुख मत्था टेककर अपना सिर झुकाते हैं और प्रार्थना करते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब सिखों का पवित्र ग्रंथ है, जिसे वे गुरु मानते हैं। गुरुद्वारे में सुबह और शाम के समय विशेष प्रार्थना सभाएं होती हैं, जिनमें सारे लोग मिलकर गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ सुनते हैं, मौन ध्यान लगाते हैं, और गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। गुरुद्वारों में होने वाली प्रार्थना सभाएं सभी के लिए खुली होती हैं, जहां कोई भी व्यक्ति जाति या धर्म के भेदभाव के बिना शांतिपूर्वक प्रार्थना कर सकता है।
गुरुद्वारे की सबसे विशेष बात है लंगर। लंगर की परंपरा गुरु नानक देव जी द्वारा शुरू की गई थी, जो निस्वार्थ सेवा के सिद्धांत पर आधारित है। लंगर गुरुद्वारे में मिलने वाला निःशुल्क भोजन होता है। लंगर में सब लोग मिलजुलकर बैठकर खाना खाते हैं। अमीर-गरीब, सिख-गैर सिख हर कोई एक साथ बैठकर लंगर का प्रसाद ग्रहण करता है। लंगर में रोटी, दाल, सब्जी और खीर जैसी साधारण चीजें मिलती हैं, लेकिन ये बहुत स्वादिष्ट होती हैं। लंगर में खाना बनाना और परोसना भी सेवा का एक तरीका माना जाता है।
गुरुद्वारे में सेवा का भाव बहुत खास होता है। यहां लोग स्वेच्छा से अपना समय और परिश्रम का दान देते हैं। कुछ लोग लंगर में खाना बनाने और परोसने में मदद करते हैं, तो कुछ लोग जूते साफ करने या गुरुद्वारे की साफ-सफाई का काम करते हैं। हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार सेवा करता है।
कुछ गुरुद्वारे बहुत पुराने होते हैं और उनका अपना खास इतिहास होता है। ये गुरुद्वारे उन स्थानों पर बनाए गए हैं, जहां सिखों के गुरुओं ने कोई महत्वपूर्ण कार्य किया था। उदाहरण के लिए, अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब (जिसे स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है) उस स्थान पर बनाया गया है, जहां गुरु राम दास जी ने एक पवित्र सरोवर बनवाया था। गुरुद्वारे जाकर हमें सिख इतिहास के बारे में भी काफी कुछ सीखने को मिलता है।
गुरुद्वारों में कई सारे त्योहार भी मनाए जाते हैं। गुरु नानक देव जी का जन्मदिन प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्वारे में विशेष प्रार्थनाएं होती हैं, कीर्तन किया जाता है, और लंगर में लजीज भोजन परोसा जाता है। अन्य महत्वपूर्ण त्योहारों जैसे गुरु गोबिंद सिंह जयंती और बैसाखी में भी गुरुद्वारों में भव्य आयोजन कराए जाते हैं। अरदास लगती है और विशास लंगर लगाए जाते हैं। इन त्योहारों के दौरान गुरुद्वारे रोशनी से जगमगा उठते हैं और खुशी का माहौल होता है।
गुरुद्वारा बच्चों के लिए सीखने का भी एक अच्छा स्थान है। यहां बच्चों को गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षा दी जाती है, सिख इतिहास के बारे में और गुरुओं की शिक्षाओं के बारे में बताया जाता है। गुरुद्वारे में आयोजित बाल सभाओं में बच्चे मिल-जुलकर खेलते हैं, सिख इतिहास की कहानियां सुनते हैं, और गुरुओं के शब्दों को सीखते हैं। इससे उनमें बचपन से ही धर्म के प्रति श्रद्धा पैदा होती है। साथ ही, गुरुद्वारे का वातावरण बच्चों को अच्छे संस्कार सीखने और सदाचारी बनने की प्रेरणा देता है।
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