जब मैं ट्रैफिक जाम में फंसा अनुछेद (Jab Mai Traffic Jam Mein Fasa Anuched) आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में ट्रैफ़िक जाम एक आम समस्या बन गई ह...
जब मैं ट्रैफिक जाम में फंसा अनुछेद (Jab Mai Traffic Jam Mein Fasa Anuched)
आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में ट्रैफ़िक जाम एक आम समस्या बन गई है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि ट्रैफ़िक जाम अब हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है। यह एक ऐसी समस्या है, जो न केवल समय की बर्बादी करती है, बल्कि हमारे धैर्य की भी परीक्षा लेती है। कुछ दिनों पहले की बात है, जब मैं खुद ट्रैफ़िक जाम में फँसा था, और यह अनुभव मेरे लिए बहुत ही मजेदार और अजीब था।
स्कूल की छुट्टी के बाद मैं अपनी साइकिल पर घर की ओर निकल पड़ा। मौसम सुहाना था, हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और मैं मन ही मन सोच रहा था कि जल्दी घर पहुँचकर अपनी पसंदीदा किताब पढ़ूँगा। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। जैसे ही मैं मुख्य सड़क पर पहुँचा, वहाँ का नज़ारा देखकर मेरे होश उड़ गए। सड़क पर गाड़ियों की लंबी कतारें थीं, और हर ओर हॉर्न की तेज़ आवाज़ें गूँज रही थीं।
मैंने अपनी साइकिल धीमी कर दी और सोचा कि शायद कुछ ही मिनटों में ट्रैफ़िक खुल जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गाड़ियाँ अपनी जगह पर खड़ी थीं, और लोग परेशान होकर इधर-उधर झाँक रहे थे। कुछ लोग तो गाड़ियों से बाहर निकलकर स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे थे। मैं भी अपनी साइकिल किनारे लगाकर खड़ा हो गया।
थोड़ी देर में मैंने देखा कि एक मोटरसाइकिल सवार गाड़ी वालों के बीच से निकलने की कोशिश कर रहा था। उसकी हरकतें देखकर मुझे हँसी आ गई। ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी भूलभुलैया से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो। वहीं, एक ऑटो में बैठे बच्चे ऊबकर शरारत करने लगे थे। वे खिड़की से झाँककर बाहर बैठे लोगों को चिढ़ा रहे थे।
मैंने सोचा कि साइकिल की यही तो खासियत है कि इसे आसानी से किनारे से निकालकर आगे बढ़ा जा सकता है। लेकिन जाम इतना भयंकर था कि पैदल चलने वालों के लिए भी जगह नहीं थी। मैं अपनी साइकिल लेकर फुटपाथ पर चढ़ा और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।
थोड़ी दूर जाने के बाद मैंने देखा कि ट्रैफ़िक जाम का कारण एक बस थी, जो सड़क के बीचो-बीच खराब हो गयी थी। कुछ लोग बस को धक्का देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था। ट्रैफ़िक पुलिस भी वहाँ मौजूद थी और गाड़ियों को सही दिशा में मोड़ने की कोशिश कर रही थी।
आखिरकार, करीब आधे घंटे बाद एकक्रेन आयी और बस को खींचकर किनारे किया गया, तब कहीं जाकर जाम खुला। मैं राहत की साँस लेते हुए अपनी साइकिल पर सवार हुआ और घर की ओर बढ़ा। इस घटना ने मुझे सिखाया कि धैर्य रखना कितना ज़रूरी है, और यह भी कि ट्रैफ़िक के नियमों का पालन करके हम ऐसी समस्याओं से बच सकते हैं।
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