राव हेमू का चरित्र चित्रण - Rao Hmeu ka Charitra Chitran प्रस्तुत एकांकी 'मातृभूमि का मान' में राव हेमू बूंदी एक महत्वपूर्ण पात्र है...
राव हेमू का चरित्र चित्रण - Rao Hmeu ka Charitra Chitran
प्रस्तुत एकांकी 'मातृभूमि का मान' में राव हेमू बूंदी एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वह बूंदी के हाड़ा राजपूत शासक थे। वे अपनी मातृभूमि से अत्यंत प्रेम करते थे। उनके चरित्र में देशभक्ति, स्वाभिमान, कर्तव्यनिष्ठा, नेतृत्व, दृढ़ संकल्प और त्याग का अद्भुत संगम है।
राव हेमू की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
देशभक्ति: राव हेमू अत्यंत देशभक्त थे। वे अपनी मातृभूमि से अत्यंत प्रेम करते थे और उसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार थे। जब महाराणा लाखा ने बूंदी पर आक्रमण किया, तो राव हेमू ने रात्री में अचानक महाराणा के शिविर पर हमला कर दिया जिससे मेवाड़ की सेना हार गयी और महाराणा के पराजय का मुँह देखना पड़ा।
वीरता और स्वाभिमान: राव हेमू अत्यंत वीर और स्वाभिमानी व्यक्ति थे। वे अपनी मातृभूमि, बूंदी, के प्रति अत्यंत समर्पित थे और उसे किसी भी शक्ति के अधीन नहीं देखना चाहते थे। जब मेवाड़ के महाराणा लाखा ने उनसे बूंदी को मेवाड़ के अधीन करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे किसी भी शक्ति के सामने झुकने को तैयार नहीं, चाहे वह विदेशी हो या मेवाड़ का महाराणा।
क्षमाशील: वीर सिंह की मृत्यु के पश्चात जब महाराणा लाखा सिंह दुखी होकर कहते हैं कि, "क्या बूँदी के राव तथा हाड़ा वंश का प्रत्येक राजपूत आज की इस दुर्घटना को भूल सकेगा?" तब राव हेमू कहते हैं कि, "क्यों नहीं महाराणा ! हम युग-युग से एक हैं, और एक रहेंगे। आपको यह जानने की आवश्यकता थी कि राजपूतों में न कोई राजा है। न कोई महाराजा; सब देश, जाति और वंश की मान-रक्षा के लिए प्राण देने वाले सैनिक हैं। हमारी तलवार अपने ही स्वजनों पर न उठनी चाहिए। बूंदी के हाड़ा सुख और दुःख में चित्तौड़ के सिसोदियों के साथ रहे हैं और रहेंगे। हम सब राजपूत अग्नि के पुत्र हैं, हम सबके हृदय में एक ज्वाला जल रही है। हम कैसे एक-दूसरे से पृथक् हो सकते हैं।" इस कथन से स्पष्ट है कि राव हेमू क्षमाशील हैं।
स्वतंत्रता के समर्थक: जब अभय सिंह राव हेमू के पास मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव लेकर आते हैं तो हेमू स्पष्ट रूप से कहते हैं कि, "प्रत्येक राजपूत को अपनी ताकत पर नाज़ है। इतने बड़े दंभ को मेवाड़ अपने प्राणों में आश्रय न दे, इसी में उसका कल्याण है। बूंदी स्वतन्त्र रहकर महाराणाओं का सम्मान तो कर सकता है लेकिन वह किसी के अधीन रहकर सेवा कदापि नहीं कर सकता।"
उनके चरित्र से हमें प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपनी मातृभूमि के प्रति सदैव समर्पित रहना चाहिए और उसके लिए हर संभव त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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