जब मैंने पहली बार साइकिल चलाई विषय पर अनुच्छेद लिखिए: जब मैंने पहली बार साइकिल देखी, तब मेरी उम्र शायद 7 साल होगी। इस दिन से मेरे मन में साइकिल चलाने
जब मैंने पहली बार साइकिल चलाई विषय पर अनुच्छेद लिखिए
जब मैंने पहली बार साइकिल देखी, तब मेरी उम्र शायद 7 साल होगी। इस दिन से मेरे मन में साइकिल चलाने की इच्छा जाग गई। कुछ दिनों बाद, मेरे पिताजी ने मुझे साइकिल खरीदकर दी। खुशी से मेरा चेहरा खिल उठा। मैंने तुरंत साइकिल चलाने की कोशिश की, लेकिन आसान नहीं था। बार-बार गिरकर चोट लगने पर भी मैंने हार नहीं मानी। पिताजी ने मेरा हौसला बढ़ाया और धीरे-धीरे मुझे साइकिल चलाना सिखाया। कई दिनों के अभ्यास के बाद, आखिरकार वह दिन आ ही गया जब मैंने बिना किसी सहारे के साइकिल चलाई। उस क्षण की खुशी शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। मैंने पूरे मोहल्ले में साइकिल दौड़ाई और हवा में उड़ने का एहसास किया।
जब मैंने पहली बार साइकिल चलाई अनुच्छेद लेखन -2
मैं लगभग 8 साल का था जब मेरे पिताजी ने मुझे एक नई साइकिल गिफ्ट की। मैं उसे देखकर बहुत खुश था। मैंने तुरंत ही साइकिल चलाने की कोशिश की, लेकिन मैं संतुलन नहीं बना पा रहा था। बार-बार गिरने से मेरे घुटने और कोहनी पर चोट आ गयी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। अगले दिन, मैंने अपने पिताजी से फिर मदद मांगी। इस बार उन्होंने मुझे साइकिल चलाने का सही तरीका सिखाया। उन्होंने मुझे बताया कि कैसे संतुलन बनाना है, कैसे पैडल मारना है और कैसे ब्रेक लगाना है। मैंने धीरे-धीरे अभ्यास करना शुरू किया। कई दिनों की मेहनत के बाद, मैं आखिरकार साइकिल चलाने में सफल हो गया। जब मैंने पहली बार बिना सहारे के साइकिल चलाई, तो मुझे बहुत खुशी हुई।
जब मैंने पहली बार साइकिल चलाई अनुच्छेद लेखन -3
मैं जब छोटा था, तब मेरे घर के पास एक साइकिल दुकान थी। मैं अक्सर उस दुकान के सामने खड़ा होकर रंग-बिरंगी साइकिलों को देखता रहता था। मुझे उन साइकिलों से बहुत प्यार था और मैं मन ही मन में सोचता था कि काश मैं भी एक दिन ऐसी ही साइकिल चला पाऊं। एक दिन मेरे जन्मदिन पर मेरे पिताजी ने मुझे एक लाल रंग की साइकिल गिफ्ट की। मुझे साइकिल पाकर बहुत खुशी हुई। मैंने साइकिल पर बैठने की कोशिश की, लेकिन मेरे पैर ज़मीन तक नहीं पहुंच पा रहे थे। इसलिए मेरे पिताजी ने साइकिल की सीट को नीचे कर दिया। मैंने फिर से कोशिश की और इस बार मैं साइकिल पर बैठ गया। मैंने साइकिल चलाने की कोशिश की, लेकिन मैं संतुलन नहीं बना पा रहा था। मैं बार-बार गिर जाता था। मैंने हार नहीं मानी और लगातार अभ्यास करता रहा। धीरे-धीरे मैं संतुलन बनाने में सफल हो गया। थोड़े ही दिनों में मैं बिना किसी सहारे के साइकिल चलाने लगा। जब मैं पहली बार बिना सहारे के साइकिल चलाई, तो मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने साइकिल की घंटी बजाई और सड़कों पर घूमने लगा।
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