कर्ण खण्डकाव्य का प्रतिपाद्य एवं उद्देश्य: कर्ण नामक खण्डकाव्य की रचना केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' ने महाभारत के प्रमुख पात्र कर्ण के जीवन को आधार बनाकर क
कर्ण खण्डकाव्य का प्रतिपाद्य एवं उद्देश्य लिखिए।
कर्ण नामक खण्डकाव्य की रचना केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' ने महाभारत के प्रमुख पात्र कर्ण के जीवन को आधार बनाकर की है। कर्ण ने चरित्र में विद्यमान गुणों साहस, वीरता, उदारता, दानवीरता आदि को उभारने में कवि को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। कर्ण के उदात्त चरित्र को प्रस्तुत करना ही कवि का प्रमुख उद्देश्य है । कर्ण कुन्ती का पुत्र था, परन्तु कौमार्यावस्था में उत्पन्न इस सूर्य पुत्र को कुन्ती ने लोकलाज के भय से त्याग दिया तथा उसका लालन पालन अधिरथ एवं उसकी पत्नी राधा ने किया। जन्म से उच्चकुलीन होने पर भी उसे जीवन पर्यन्त सूतपुत्र कहकर लांछित एवं तिरस्कृत किया गया। इस अपमान को वह जीवनभर भुला न पाया। दुर्योधन ने उसे अंगराज बनाकर उस पर जो उपकार किया उसकी कृतज्ञता वह जीवन पर्यन्त मानता रहा और दुर्योधन का उसने मरते दम तक साथ निभाया।
कृष्ण और कुन्ती ने जब उसे यह सत्य बता दिया कि तुम सूतपुत्र न होकर कुन्ती पुत्र हो तब भी उसने दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ा।
कवि ने आदर्श चरित्र से सम्पन्न महादानी, दृढ़प्रतिज्ञ एवं वीर योद्धा कर्ण को इस खण्डकाव्य का नायक बनाया है। वह जानता है कि ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र उससे कवच कुण्डल लेने आया है तथा कवच कुण्डल दे देने पर उसकी अजेयता समाप्त हो जाएगी फिर भी उसने इन्द्र को अपने कवचकुण्डल दे दिए। कुन्ती को उसने वचन दिया कि मैं अर्जुन के अतिरिक्त और किसी पाण्डव का वध नहीं करूँगा । उसकी दानवीरता, कर्मठता एवं कृतज्ञता प्रशंसनीय है। वह यहाँ तक कहता है कि भले ही कृष्ण अर्जुन को त्याग दे पर मैं मरते दम तक दुर्योधन को नहीं त्याग सकता।
द्यूत सभा में द्रोपदी के अपमान का पश्चाताप उसे जीवन पर्यन्त रहा। द्रोपदी ने स्वयंवर में यह कहकर उसे लांछित किया था कि मैं एक सूतपुत्र से विवाह नहीं कर सकती। वह इसी बात का प्रतिशोध लेना चाहता था। भीष्म ने उसे अभिमानी कहकर भले ही अपने जीते जी युद्ध में उसका सहयोग न लिया हो, किन्तु जब शरशय्या पर लेटे भीष्म के पास कर्ण गया तो भीष्म ने उसे महावीर, महान योद्धा कहकर सम्मानित किया भीष्म को उससे यह शिकायत थी की उसने अहंकारी दुर्योधन का साथ दिया था। दुर्योधन कर्ण के बल पर ही पाण्डवों को युद्ध के लिए ललकार सका था। भीष्म से लगता था कि यदि कर्ण दुर्योधन का साथ न दे तो दुर्योधन का अभिमान, अहंकार चूर-चूर हो जाएगा और कौरवों- पाण्डवों का युद्ध ही न होगा ।
साहसी एवं कर्मठ होते हुए भी दुराचारी दुर्योधन का साथ देने के कारण उसका दुःखद अन्त हुआ । युद्ध भूमि में उसके रथ का पहिया किसी गड्ढे में अटक गया। जब वह निःशस्त्र होकर अपने रथ का पहिया निकाल रहा था तभी श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर अर्जुन ने उस पर बाण चला दिया और कर्ण मारा गया।
कर्ण का उज्ज्वल चरित्र पाठकों के लिए प्रेरणादायक है । कर्ण के चरित्र के माध्यम से सद्गुणों का प्रसार करना ही इस खण्डकाव्य का उद्देश्य है।
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