कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश - Karmnasha ki Haar Summary in Hindi: कहानी के आरंभ में कर्मनाशा नदी का विवरण दिया गया है। कहानी एक गाँव की है जहाँ कर
कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश - Karmnasha ki Haar Summary in Hindi
कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश: कहानी के आरंभ में कर्मनाशा नदी का विवरण दिया गया है। कहानी एक गाँव की है जहाँ कर्मनाशा नदी का पानी नही पहुँचता था। क्योंकि वह एक उँचे डीह पर स्थित था। बाढ़ को देखकर वे लोग इकट्ठा होकर सावन के गीत - कजली गाते बजाते थे। एक दिन ऐसा समय आता है कि कर्मनाशा के बाढ़ का पानी उनके गाँव तक पहुँच जाता है। बाढ़ में कई लोगों की मृत्यु हो जाती है केवल मनुष्य ही नही जानवर भी बाढ़ में बह जाते हैं।
हालात ऐसे बन गये थे कि लगातार बाढ़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा था। गाँव वालों का मानना था की अवश्य गाँव में कुछ गलत हो रहा है। इसलिए नदी अपना क्रोध दिखा रही है। गाँव वाले बाढ़ का कारण विधवा फूलमती को मानते है। उनका मानना था कि विधवा होने पर भी फूलमती एक बच्चे की माँ बनती है। इस कुकर्म के कारण गाँव में प्रलय आ रहा है।
भैरो पांडे कुलदीप के बड़े भाई है। 'उन्होंने कुलदीप को बचपन से पाला पोशा था। भैरो पांडे दिन-भर बरामदे में बैठकर रूई से बिनोले निकालते, जजमानी चलाते, पत्रा देख देते सत्यनारायण की कथा कह देने इससे जो कुछ आमदनी हो जाती थी। उसी से वे कुलदीप की पढाई और घर का खर्च देखते। कुलदीप और फुलमती के संबंधों के बारे में वे जानते थे। कई बार कुलदीप को आगाह भी किया था। परंतु कुलदीप नहीं माना। और जिस बात का डर भैरो पांडे को था वही घटना घटती है।
एक दिन भैरो पांडे कुलदीप को गुस्से में मार देते हैं उसे बहुत सुनाते है। जोश में आकर वह घर से चला जाता है। पुरे दिन भैरो पांडे उसे खोजते हैं, फिर भी कुलदीप नहीं मिलता है। समझ जाते है कि वह उन्हें छोड़कर चला गया। यह खबर सुनने पर फूलमती रोने लगती है, उसके स्वर में दर्द दिखाई पड़ता है- "मोहे जोगिनी बनाके कहां गइले रे जोगिया " । यह वाक्य सुनकर पांडे जी भी अवाक् रह जाते है।
पाँच महिने बीत गये कुलदीप नहीं लौटता। अभी घाव पूरी तरह से भरा नहीं तब से फूलमती की बेटी का जन्म होता है, गाँव वालो का मानना है कि इस तरह के कुकर्म के कारण ही बाढ़ का प्रकोप बढ रहा है। जब तक किसी की बलि नही चढ़ेगी तब तक कर्मनाशा शांत नही होगा। गाँव वालो के मतानुसार जिसने यह पाप किया है वही यह भोगेगा। सभी फूलमती और उसके दूध मुँहे बच्चे को नदी में फेकने के लिए तैयार होते है। इस तरह का दृश्य देखकर गाँव के कुछ लोगों को आश्चर्य भी होता है और बुरा भी लगता है, लेकिन गाँव के मुखिया के सामने कौन बोले।
मुखिया भैरो पांडे से उनकी राय पुछते हैं। भैरो पांडे वीभत्स सन्नाटे को तोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं और उस बच्चे को फूलमती से छीनकर मुखिया से कहते है कि “कर्म नाशा की बाढ़ दुध मुँहे बच्चे और एक अबला की बलि देने से नहीं रुकेगी, उसके लिए तुम्हे पसीना बहाकर बांधो को ठीक करना होगा । "
इस प्रकार कहानी में भैरो पांडे ने बढ़ते अंधविश्वास को रोकने का प्रयास किया। साथ ही समाज को इस समस्या से लड़ने के लिए प्रेरित किया ।
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