रीढ़ की हड्डी एकांकी का सारांश लिखिए। ‘रीढ़ की हड्डी' एकांकी लेखक जगदीश चन्द्र माथुर के द्वारा रचित है। यह आधुनिक काल में विवाह से पहले लड़कियों को दे
रीढ़ की हड्डी एकांकी का सारांश लिखिए।
रीढ़ की हड्डी एकांकी का सारांश: ‘रीढ़ की हड्डी' एकांकी लेखक जगदीश चन्द्र माथुर के द्वारा रचित है। यह आधुनिक काल में विवाह से पहले लड़कियों को देखने और दिखाने की अनौचित्यपूर्ण प्रथा से संबंधित है। आधुनिक काल से लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा, चाल-चलन, लंबाई, मुटाई तथा सौन्दर्य रंग के बारे में खूब जांच की जाती है। तब विवाह तय होता है और यह भी निश्चित नहीं है कि सब कुछ होने पर भी लड़का शादी के लिए राजी हो जाए। एकांकीकार ने बड़े सुन्दर ढंग से इसके अनौचित्य पर प्रकाश डाला है।
आलोच्य एकांकी रीढ़ की हड्डी में बाबू रामस्वरूप की बेटी उमा विवाह योग्य हो जाती है। इसलिए उसका विवाह वकील गोपाल प्रसाद के बेटे शंकर के साथ तय होता है। वकील मैट्रिक तक पढ़ी-लिखी लड़की को अपने डाक्टरी पढ़ रहे पुत्र के लिए बहू बनाना चाहते हैं इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलते हैं कि उमा मैट्रिक पास की है जबकि उसकी शैक्षिक बी. ए. है।
वकील गोपाल प्रसाद और शंकर का घर में भव्य स्वागत होता है क्योंकि लड़केवाले हैं। परिवार के सदस्यों में खूब वार्तालाप होता है। उमा से कई प्रश्न पूछे जाते हैं। पिता का मन रखने के लिए वह गाना गाती है परंतु अचानक उसकी नजर शंकर पर टिकती है और वह सहसा गाना बन्द कर देती है। जब गोपाल प्रसाद उसके उसके मुँह से कुछ सुनना चाहते हैं तब वह मुँह खोलके अच्छा जवाब देती है - "बाबूजी' जब कुर्सी मेज बिकती है तब दुकानदार कुर्सी-मेज से कुछ नहीं पूछता सिर्फ खरीददार को दिखा देता है। पसन्द आ गई तो अच्छा है वरना।” फिर कहती है -‘“जो महाशय मेरे खरीददार बन कर आए हैं, इनसे जरा पूछिए कि क्या लड़कियों के दिल नहीं होते ? क्या उनको चोट नहीं लगती ? क्या वे भेड़-बकरियाँ हैं जिन्हें कसाई अच्छी तरह देखभाल कर खरीदते हैं। पुनः कहती हूँ - जरा अपने बेटे से पूछिए, वे लड़कियों के हॉस्टल के आसपास क्यों चक्कर काट रहे थे और कैसे अपमानित होकर भगाये गए थे।"
उमा की इन बातों से गोपालप्रसाद को अच्छी तरह मालूम हो जाता है कि वह बहुत पढ़ी-लिखी है। बेचारे वे अपमानित होकर घर से भागने लगते हैं । उस समय भी उमा कहती है - " जाइए! पता लगाइए कि आपके बेटे की रीढ़ की हड्डी है या नहीं।" इस प्रकार यह एकांकी कथावस्तु की दृष्टि से पूर्णत: सफल है।
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