खलीफ़ा का इंसाफ - बच्चों की मजेदार कहानी बगदाद का खलीफ़ा हारून रशीद इनसाफ़ के लिए मशहूर था। उसके राज्य में सब सुखी थे। ज़रूरत पड़ने पर हर कोई बादशाह त
खलीफ़ा का इंसाफ - बच्चों की मजेदार कहानी
खलीफ़ा का इंसाफ कहानी - बगदाद का खलीफ़ा हारून रशीद इनसाफ़ के लिए मशहूर था। उसके राज्य में सब सुखी थे। ज़रूरत पड़ने पर हर कोई बादशाह तक पहुँच सकता था। वह प्रत्येक की फ़रियाद सुनता था और न्याय करता था। उसी शहर में अली ख्वाजा नाम का एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह बहुत नेक और भोला-भाला था। धूर्त और चालबाज़ लोग उसकी नेकी का फ़ायदा उठाते थे। एक दिन बड़े तड़के ही उसने एक ख्वाब देखा। ख्वाब में एक फ़कीर उसकी दुकान पर आया और कहने लगा, “इतने बड़े सौदागर होकर भी तुम मक्का का हज क्यों नहीं करते? बगैर मक्का गए तुम बहिश्त का आनंद कैसे लूटोगे? तो उठो, अभी सफ़र की तैयारी करो। "
अली ख्वाजा मक्का जाने की तैयारी में लग गया। उसने अपना सब माल बेच डाला और परदेस जाने के लिए धन इकट्ठा करने लगा। जाने-आने का खर्च निकालकर उसके हिसाब से उसके पास एक हज़ार अशर्फ़ियाँ बाकी रह गईं। इन सब बाकी मुहरों को उसने एक बड़े घड़े के पेंदे में भर दिया, ऊपर से बहुत से जैतून भर दिए और घड़े का मुँह ढक्कन से बंद कर दिया। अब वह सोचने लगा कि यह घड़ा किसके यहाँ रखूँ?
उसी शहर में एक बहुत मशहूर साहूकार रहता था, जिससे अली ख्वाजा की अच्छी जान-पहचान थी। उसके घर में घड़ा रखने के इरादे से दूसरे दिन सवेरे ही वह उस साहूकार के पास गया। साहूकार से मिलकर उसने कहा, "मैं अभी मक्का जा रहा हूँ। वहाँ से लौटने में मुझे लगभग सात वर्ष लगेंगे। मैं अपने साथ एक घड़ा लाया हूँ। आपकी कृपा हो, तो मैं इसे आपके यहाँ रख दूँ।” साहूकार ने घड़े की ओर मुड़कर देखा और कहा, “घड़ा रखना कौन-सी बड़ी बात है? आप जहाँ चाहें, अपने ही हाथों से उसे रख सकते हैं और जब चाहें, उसे उठा सकते हैं। "
यह सुनकर सौदागर बहुत खुश हुआ और साहूकार की कोठरी में जाकर घड़े को अपने हाथों से एक कोने में गाड़ दिया। कोठरी से बाहर आकर उसने साहूकार का शुक्रिया अदा किया। थोड़े दिनों बाद अन्य लोगों के साथ वह मक्का चला गया।
हज पूरा करके वर्षों बाद अली ख्वाजा फिर बगदाद लौट आया और साहूकार से मिलकर घड़ा ले जाने की इजाज़त माँगी। साहूकार ने बहुत प्यार से उसको गले लगाया और कहा, "वर्षों बाद अपने पुराने दोस्त से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई है। आप चाहें तो अभी कोठरी से अपना घड़ा जाएँ।” इतना कहकर उसने सौदागर को कोठरी की कुंजी दे दी। सौदागर ने कोठरी में जाकर अपना घड़ा ले लिया और साहूकार का शुक्रिया अदा करके अपने घर का रास्ता पकड़ा।
घर आकर उसने घड़े का मुँह खोला और जैतून निकाले मगर उन फलों के नीचे मुहरों का नामो-निशान तक न था। उसने घड़ा औंधा किया, अंदर हाथ डालकर टटोला। वहाँ एक भी मुहर न थी । अब बेचारे के पास निराश होकर और सिर पर हा धरकर रोने के सिवा और चारा ही क्या था ? रातभर किस्मत को कोस-कोसकर रोता रहा। दूसरे दिन सवेरे वह फिर साहूकार के पास गया और बोला, “ जनाब, आपकी कोठरी में मैंने घड़ा रखा था, तब उसमें एक हज़ार अशर्फ़ियाँ थीं परंतु आज उसमें एक भी मुहर दिखाई नहीं देती। मेरा खयाल है कि मेरे पीछे आपके सिर पर कोई बड़ी मुसीबत आ पड़ी होगी और आपको मेरे पैसों की ज़रूरत पड़ी होगी। धन पड़ा रहने के बजाय आप काम आया हो, तो उसमें क्या बुराई हुई? मेरी अशर्फ़ियाँ आज मुझे वापिस मिल जाएँ, तो मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूँगा । "
यह सुनकर साहूकार के तेवर बदल गए। उसने बुरा-भला कहकर अली ख्वाजा को घर से बाहर निकाल दिया। अब सौदागर क्या करता? उसने रो-रोकर बहुत कुछ कहा-सुना पर वह पत्थर न पसीजा। आखिर सौदागर ने काज़ी के पास फ़रियाद की लेकिन सबूत न होने के कारण काज़ी कोई फ़ैसला न दे सका। फिर भी उसने हिम्मत न हारी। दूसरे दिन वह अपना घड़ा लेकर खलीफ़ा के पास न्याय माँगने गया।
खलीफ़ा के सामने अली ख्वाजा ने अपना सब हाल बताया। खलीफ़ा सोच में पड़ गया। अली ख्वाजा के पास कोई सबूत तो था नहीं, अब फ़ैसला हो तो कैसे? उस दिन खलीफ़ा ने अली ख्वाजा और साहूकार, दोनों को घर जाने को कहा।
सारे बगदाद में अली ख्वाजा और उसकी अशर्फ़ियों का किस्सा मशहूर हो गया। खलीफ़ा का कायदा था कि रात को वह वेश बदलकर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए गलियों में घूमा करता था। उस दिन खलीफ़ा शाम उजाला रहते ही अपने महल से निकल गया। घूमते-घूमते वह एक गली में पहुँचा, जहाँ कुछ बच्चे नाटक खेल रहे थे। खलीफ़ा एक टूटी हुई दीवार के पीछे खड़ा होकर देखने लगा।
एक लड़का काज़ी बना बैठा था और उसके सामने, अली ख्वाजा और साहूकार बने दो बच्चे खड़े थे। अशर्फ़ियों का मुकदमा काज़ी के सामने लाया गया था। उनके पास एक छोटा-सा घड़ा भी था। नकली काज़ी ने मुकदमा सुनकर घड़ा देखा और पास खड़े हुए एक नकली दरबान से कहा, “जाओ, शहर के जैतून के मशहूर व्यापारियों को बुला 'लाओ।” दरबान जाकर जैतून के व्यापारी बने कुछ लड़कों को बुला लाया।
नकली काज़ी ने उनकी तरफ़ देखकर कहा, "तुम तो जैतून के बड़े व्यापारी हो। इस घड़े के जैतूनों को देखकर बताओ कि ये कब के हैं?"
नकली व्यापारियों ने घड़े में देखा। कुछ सूँघकर बोले, "ये ज़्यादा से ज़्यादा सात-आठ महीने पुराने हैं। " काज़ी साहूकार से बोला, "अली ख्वाजा को हज पर गए हुए सात वर्ष हुए। यह कैसे हो सकता है कि उसके घड़े के जैतून सात ही महीने पुराने हों। इससे मालूम होता है कि अशर्फ़ियाँ निकालकर तुमने ताज़े जैतून इस घड़े में भर दिए। "
खलीफ़ा नकली काज़ी का फ़ैसला सुनकर दंग रह गया। दूसरे दिन उसने अली ख्वाजा के मुकदमे का फ़ैसला उसी तरह कर दिया।
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