आँसुओं की होली कहानी की तात्विक समीक्षा - मुंशी प्रेमचन्द का हिन्दी-साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। प्रस्तुत कहानी आँसुओं की होली में श्रीविलास और मन
आँसुओं की होली कहानी की तात्विक समीक्षा - मुंशी प्रेमचन्द
मुंशी प्रेमचन्द का हिन्दी-साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। प्रस्तुत कहानी आँसुओं की होली में श्रीविलास और मनहर के माध्यम से लेखक ने युवा-पीढ़ी में अपने कर्त्तव्यों की अनदेखी का वर्णन किया है। एक तरफ विलास मस्त व्यक्ति है दूसरी तरफ मनहर समाज के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करता है। आँसुओं की होली कहानी की तात्विक समीक्षा इस प्रकार है-
आँसुओं की होली कहानी का शीर्षक
कहानी का शीर्षक:- शीर्षक किसी भी कहानी का प्राथमिक उपकरण है। शीर्षक में स्पष्टता सरलता, संक्षिप्तता और जिज्ञासा का होना अनिवार्य है। प्रस्तुत कहानी का शीर्षक 'आँसुओं की होली' है। इस शीर्षक में जिज्ञासा देखने को मिलती है क्योंकि इस कहानी के शीर्षक को पढ़ने के उपरान्त पाठक यह जानना चाहता है कि 'आँसुओं की होली' क्या है। होली तो रंगों का त्योहार है, इसमें आँसुओं का प्रयोग क्यों किया गया है। कहानी को पढ़ने के पश्चात् ही पाठक की जिज्ञासा शांत होती है। इतना ही नहीं शीर्षक विषयानुकूल होना चाहिए। इस कहानी में होली का वर्णन है। श्री विलास इस कहानी का केन्द्र बिन्दु है। कहानी का मूल उद्देश्य भी उसी के माध्यम से पूर्ण हुआ है। अतः शीर्षक में अर्थपूर्णता तथा सार्थकता भी है।
आँसुओं की होली कहानी की कथावस्तु/कथासार
आँसुओं की होली कहानी की कथावस्तु:- कहानी का पहला तथा महत्वपूर्ण तत्व कथावस्तु है। कथावस्तु के अभाव में कहानी की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आँसुओं की होली कहानी का आरंभ इस पंक्ति से हुआ है, "नामों को बिगाड़ने की प्रथा न जाने कब चली और कहाँ शुरू हुई।" यह वाक्य जिज्ञासा से भरा है जो पाठकों को कहानी पढ़ने के लिए विवश करता है। कथावस्तु का आरम्भ तथा अंत बहुत ही सुंदर तरीके से किया है और साथ ही 'आँसुओं की होली' के भीतर छुपे रहस्य को भी उजागर करता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है वैसे-वैसे श्रीविलास के मन में छुपी कमज़ोरी और होली न खेलने के रहस्य का भेद खुलता है। जब श्री विलास की पत्नी चम्पा रंग डालती है तो उसे अपना अतीत याद आ जाता है। वह अपने मित्र मनहर का वर्णन अपनी पत्नी के समक्ष करता है। मनहर कर्मशील व्यक्ति था, देश तथा समाज की सेवा में व्यस्त रहता था। मनहर की मृत्यु का गहरा असर श्री विलास पर पढ़ता है और वह एक कर्मशील युवक बनने का प्रण लेता है। कथावस्तु का आधार ग्लानि में जीने वाला युवक है जो पत्नी के रंग डालने पर अपने कर्त्तव्य को याद करता हुआ कर्मशील मनहर बनने का संकल्प लेता है।
आँसुओं की होली कहानी के पात्र
आँसुओं की होली कहानी के पात्र:- कथावस्तु के उपरान्त पात्र - योजना को ही स्थान दिया गया है। पात्रों के कारण ही कहानी की कथा को आगे बढ़ाया जा सकता है। लेखक पात्रों के द्वारा यह भी प्रस्तुत करता है कि मनुष्य का चरित्र तथा व्यक्तित्व किस प्रकार निर्मित और किन परिस्थितियों से प्रभावित और परिवर्तित होता है। प्रस्तुत कहानी में श्री विलास, चंपा, मनहर और चंपा के दो भाईयों का चरित्र-चित्रण हुआ है। श्री विलास कहानी का मुख्य पात्र है। वह अपने मन की कायरता को छुपाकर रखता है। उसके मन की कमज़ोरी उसे होली के दिन छिपकर बैठने को मजबूर करती है। वह अपने कर्त्तव्यों से भटका हुआ युवक है। वह मस्त युवक रहा है। मौज-मस्ती उसके जीवन का लक्ष्य रहा करती थी। वह कुछ भी करने से डरता था । पत्नी द्वारा जब रंग उस पर पड़ता है तो उसे अपने मित्र मनहर का साहस, सेवा भावुक बातें याद आती हैं। वह अपनी कायरता को होली के दिन आँसुओं से धो डालता है तथा कर्मशील व्यक्ति बनने का निर्णय लेता है। चंपा श्रीविलास की पत्नी है। वह पतिव्रता स्त्री है। वह अपने पति का साथ कभी नहीं छोड़ती। चाहे दुख हो या सुख उसने पत्नी कर्त्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया है। पति होली खेलने से डरता है। अपने भाईयों से बचाने के लिए वह पति का साथ देती है। पति जब बीमार होने का नाटक करता है तो वह पूरा सहयोग करती है। त्योहार पर जब बहुत सारे पकवान बनते हैं तो वह बीमारी के चलते उन्हें खिचड़ी खिलाती है लेकिन जब सारे सो जाते हैं तो चोरी से उसे थाली भर कर पकवान खिलाकर प्रसन्न होती है। पति की सेवा में ही वह अपना सुख समझती थी। पति उसकी सेवा की भावना देखकर जब उससे कुछ मांगने को कहता है तो वह होली खेलने की इच्छा प्रकट करती है। परिणामस्वरूप वह अपनी पत्नी की इच्छा को पूर्ण करता है, ....चंपा ने लोटे का रंग उठा लिया और पंडितजी को सिर से पाँव तक नहला दिया। जब तक वह उठकर भागे उसने मुट्ठी भर गुलाल लेकर सारे मुँह पर पोत दिया । " चंपा का चरित्र पतिव्रता स्त्री का है।
मनहर इस कहानी का गौण पात्र होते हुए भी कहानी पर प्रमुख छाप छोड़ता है। मनोहर दृढ़ चरित्र का युवक था। जिसके जीवन का उद्देश्य देश तथा समाज की सेवा करना था। वह अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटता है। मनहर और श्रीविलास दोनों मित्र थे। वह श्रीविलास को दूसरों के काम न आने पर धिक्कारता है और होली के त्योहार का अर्थ समझाता है, .... त्योहार, तमाशा देखने, अच्छी-अच्छी चीज़े खाने और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने का नाम नहीं है। वह व्रत है, तप है अपने भाइयों से प्रेम और सहानुभूति करना ही त्योहार का खास मतलब है और कपड़े लाल करने से पहले खून को लाल कर लो। सफेद खून पर यह लाली शोभा नहीं देती।" मनहर की मृत्यु श्री विलास का जीवन बदल देती है। वह एक कर्मशील व्यक्ति बनने का संकल्प करता है। संपूर्ण कहानी चरित्र-चित्रण की दृष्टि से सफल है।
आँसुओं की होली कहानी का उद्देश्य
उद्देश्य:- कहानी में केवल मनोरंजन को ही व्यक्त नहीं किया बल्कि इसमें उद्देश्य की भी अभिव्यक्ति हुई है। इसमें एक कमज़ोर एवं कायर व्यक्ति का वर्णन किया है जो सामाजिक कार्यों से विमुख रहता है। मित्र मनहर के परामर्श अनुसार वह आगे तो बढ़ता है लेकिन मन रूपी कमज़ोर रहता है। उसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है। श्रीविलास के मित्र मनहर की जब मृत्यु होती है तो उसके जीवन में बदलाव होता है। पत्नी द्वारा रंग डालने पर उसकी कायरता धुल जाती है और मन में छिपी उसकी कुंठा का कारण भी हमारे समक्ष आ जाता है। अब श्री विलास एक कर्मशील व्यक्ति बनने का निर्णय लेता है। यह एक सामाजिक, चरित्र - प्रधान तथा मनोवैज्ञानिक कहानी भी है।
आँसुओं की होली कहानी की भाषा शैली
भाषा-शैली:- आँसुओं की होली कहानी की भाषा सरल, स्पष्ट है। कहानी में कहीं पर भी जटिलता देखने को नहीं मिलती। कहानी की भाषा भावानुरूप है। उदाहरण के तौर पर जब श्रीविलास को अपने मित्र का पत्र मिलता है, “श्रीविलास एक क्षण तक गला रुक जाने के कारण बोल न सके।....लिखा था, मुझसे आखिरी बार मिल जा, अब शायद इस जीवन में भेंट न हो । खत मेरे हाथों से छूटकर गिर गया... मगर उसके दर्शन न बदे थे। मेरे पहुँचने के पहले ही वह सिधार चुका था।"
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