इस लेख में Class 11 हिंदी आरोह के पाठ गलता लोहा के सभी प्रश्न उत्तर दिए गए हैं। साथ ही गलता लोहा पाठ के बोर्ड परीक्षा में आने वाले प्रश्न उत्तर भी दिए
कक्षा 11 हिंदी आरोह के प्रश्न उत्तर पाठ 5 गलता लोहा
इस लेख में Class 11 हिंदी आरोह के पाठ गलता लोहा के सभी प्रश्न उत्तर दिए गए हैं। साथ ही गलता लोहा पाठ के बोर्ड परीक्षा में आने वाले प्रश्न उत्तर भी दिए गए हैं जो छात्रों के लिए उपयोगी हैं। Read Here all the important Question Answers of Class 11 Hindi Aroh Chapter 5 Galta Loha.
प्रश्न 1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का ज़िक्र आया है।
उत्तर- जिस समय धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने जबान के चाबुक लगाते हुए उससे कहा कि 'तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?' यह सत्य है कि किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की नहीं थी। उन्होंने बचपन में ही अपने पुत्र को धौंकनी फूँकने तथा सान लगाने के कार्यों में लगा दिया था। वे उसे धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की कला सिखाने लगे। इस प्रकार धनराम किताब की और घन चलाने की विधाएँ एक साथ सीख रहा था ।
प्रश्न 2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था ?
उत्तर- धनराम के मन में निम्न जाति का होने की बात बचपन से ही बिठा दी गई थी। दूसरे, मोहन कक्षा में सभी विद्यार्थियों से होशियार था। इसलिए मास्टर जी ने उसे कक्षा का मॉनीटर नियुक्त कर दिया था। तीसरे, मास्टर जी कहते थे कि एक दिन मोहन बड़ा आदमी बनकर स्कूल तथा उनका नाम रोशन करेगा। उसे भी मोहन से बहुत अधिक आशाएँ थीं। इन्हीं कारणों से धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था ।
प्रश्न 3. धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों ?
उत्तर- मोहन ब्राह्मण जाति का था और उस गाँव में ब्राह्मण शिल्पकारों के यहाँ आते-जाते नहीं थे । यहाँ तक कि उन्हें बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के अनुरूप नहीं समझा जाता था। मोहन धनराम की दुकान पर काम खत्म होने के पश्चात् भी काफी देर तक बैठा रहा । इस बात पर धनराम को अचम्भा हुआ । उसे अधिक हैरानी तब हुई जब मोहन ने उसके हाथ से हथौड़ा लेकर लोहे पर नपी-तुली चोटें मारी और धौंकनी फूँकते हुए भट्ठी में लोहे को गरम किया तथा ठोक-पीटकर उसे गोल आकार दे दिया। मोहन पुरोहित खानदान का पुत्र होने के बाद नीच जाति के काम कर रहा था। धनराम शंकित दृष्टि से इधर-उधर देखने लगा ।
प्रश्न 4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
उत्तर- लेखक ने मोहन के लखनऊ प्रवास को उसके जीवन का एक नवीन अध्याय कहा है। यहाँ आने पर उसका जीवन निर्धारित लीक पर आगे बढ़ने लगा था। वह सुबह से शाम तक नौकर की भाँति काम करता था। नए वातावरण व काम की अधिकता के कारण मेधावी छात्र की प्रतिभा कुंठित हो गई। उसके उज्ज्वल भविष्य की कल्पनाएँ समाप्त हो गईं। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उसे कारखानों तथा फैक्ट्रियों के चक्कर लगाने पड़े। उसे कोई काम नहीं मिल सका।
प्रश्न 5. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने 'ज़बान के चाबुक' कहा है और क्यों ?
उत्तर - जब धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने व्यंग्य वचन कहे- 'तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?' लेखक ने इन व्यंग्य वचनों को 'जबान के चाबुक' कहा है । चमड़े की चाबुक शरीर पर चोट करती है, किन्तु ज़बान की चाबुक मन पर चोट करती है। यह चोट कभी अच्छी नहीं होती। इस चोट के कारण धनराम आगे नहीं पढ़ सका और वह पढ़ाई को छोड़कर पुश्तैनी काम में लग गया।
प्रश्न 6. (i) बिरादरी का यही सहारा होता है।
- (क) किसने किससे कहा ?
- (ख) किस प्रसंग में कहा ?
- (ग) किस आशय से कहा ?
- (घ) क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है ?
(ii) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी - कहानी का यह वाक्य-
- (क) किसके लिए कहा गया है ?
- (ख) किस प्रसंग में कहा गया है ?
- (ग) यह पात्र - विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है ?
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1. गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है? चर्चा करें और लिखें।
उत्तर - मोहन को गाँव तथा शहर, दोनों स्थानों पर संघर्ष करना पड़ा। गाँव में उसे परिस्थितिजन्य संघर्ष करना पड़ा। वह प्रतिभाशाली था । स्कूल में उसका सम्मान सबसे ज्यादा था, किन्तु उसे चार मील दूर स्कूल जाना पड़ता था । उसे नदी भी पार करनी होती थी। बाढ़ की स्थिति में उसे दूसरे गाँव में यजमान के घर रुकना पड़ता था। घर में आर्थिक तंगी थी। शहर में वह घरेलू नौकर का कार्य करता था । साधारण स्कूल के लिए भी उसे पढ़ने का समय नहीं दिया जाता था। वह पिछड़ता गया। अन्त में उसे बेरोजगार बनाकर छोड़ दिया गया।
प्रश्न 2. एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।
उत्तर - मास्टर त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व अध्यापक के रूप में सन्तुलित लगता है। वे अच्छे अध्यापक की तरह छात्रों को लगन से पढ़ाते थे। वे बिना किसी के सहयोग के पाठशाला संचालित करते थे। वे अनुशासन प्रिय हैं तथा दण्ड के भय आदि के द्वारा बच्चों को पढ़ाते हैं । वे होशियार बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
इन समस्त विशेषताओं के होते हुए भी उनमें कमियाँ भी हैं। वे जातिगत भेद-भाव को मानते हैं। वे विद्यार्थियों को सख्त दण्ड देते हैं। वे मोहन से अन्य बच्चों की पिटाई करवाते थे। वे कमजोर बच्चों को कटु बातें बोलकर उनमें हीन भावना भरते थे। छात्रों में हीनभावना तथा भेद-भाव करने का उनका यह व्यवहार अशोभनीय था ।
प्रश्न 3. ‘गलता लोहा’ कहानी का अन्त एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अन्त हो सकता है? चर्चा करें।
उत्तर - कहानी के अन्त से स्पष्ट नहीं होता कि मोहन ने लोहे को गोल करने के बाद लुहार का काम स्थाई तौर पर अपनाया अथवा नहीं। यदि लेखक सांकेतिक रूप में वहाँ वंशीधर तिवारी को आया दिखा दिया जाता और उसकी पीठ पर शाबासी का हाथ रखवा देता तो कहानी अधिक और भी अधिक प्रभावी तथा स्पष्ट हो जाती । निम्न प्रकार से भी अन्त हो सकता था-
- शहर से लौटकर हाथ का काम करना।
- मोहन को बेरोजगार देखकर धनराम का व्यंग्य वचन कहना।
- मोहन के माता-पिता द्वारा रमेश से झगड़ा करना आदि ।
भाषा की बात
प्रश्न 1. पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से सम्बन्धित हैं । किसका क्या प्रयोजन है? शब्द के सामने लिखिए-
(i) धौकनी, (ii) दराँती, (iii) सँड़सी, (iv) आफर, (v) हथौड़ा,
उत्तर-
- धौंकनी – यह आग को सुलगाने तथा धधकाने में उपयोग में लायी जाती है। इसे मुँह पर लगाकर आग को फूँका जाता है।
- दराँती – यह खेत में घास अथवा फसल काटने के काम आती है।
- सँड़सी – यह कैंची के आकार का बना हुआ औजार है जिससे गर्म छड़, बटलोई आदि को पकड़ा जाता है।
- आफर – भट्ठी अथवा लुहार की दुकान।
- हथौड़ा – ठोस वस्तु पर चोट करने का औज़ार। इससे लोहे को पीटा - कूटा जाता है।
प्रश्न 2. पाठ में 'काट-छाँटकर' जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है । कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
- उठा-पटक कर: मोहन के बच्चों ने घर में उठा-पटक कर सारा सामान बिखेर दिया।
- उलट-पलट: चोरों ने मकान का सारा सामान उलट-पलट दिया।
- पढ़-लिखकर: प्रत्येक छात्र पढ़-लिखकर अफसर बनना चाहता है।
- थका-माँदा: थके-माँदे आदमी को नींद जल्दी आती है।
- खा-पीकर: हम लोग खा-पीकर बरामदे में बैठे थे ।
प्रश्न 3. बूते का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है। उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन सन्दर्भों में उनका प्रयोग है, उन सन्दर्भों में उन्हें स्पष्ट कीजिए।
(क) बूढ़े वंशीधर के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा।
सन्दर्भ - यहाँ बूते का अर्थ सामर्थ्य है। लेखक स्पष्ट करना चाहते हैं कि वृद्धावस्था के कारण वंशीधर से पुरोहिताई का काम नहीं होता।
(ख) दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे।
सन्दर्भ - यहाँ बूते का अर्थ है - सहारे, बल पर। यह वंशीधर की दयनीय अवस्था का वर्णन करता है, साथ ही पुरोहिती के व्यवसाय की निरर्थकता को भी बताता है।
(ग) दो मील की सीधी अब चढ़ना पुरोहित के बूते की बात नहीं थी।
सन्दर्भ - वंशीधर वृद्ध हो गए। इस कारण वे पुरोहिताई का काम करने के लिए सीधी चढ़ाई चढ़ने में स्वयं को असमर्थ पा रहे थे।
प्रश्न 4. नीचे के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए ।
मोहन ! थोड़ा दही तो ला दे बाज़ार से । - आप बाज़ार से थोड़ा दही तो ला दीजिए।
मोहन! ये कपड़े धोबी को दे तो आ । - आप ये कपड़े धोबी को दे तो आइए ।
मोहन! एक किलो आलू तो ला दे। - आप एक किलो आलू तो ला दीजिए।
विज्ञापन की दुनिया
प्रश्न 1. विभिन्न व्यापारी अपने उत्पाद की बिक्री के लिए अनेक तरह के विज्ञापन बनाते हैं। आप भी हाथ से बनी किसी वस्तु की बिक्री के लिए एक ऐसा विज्ञापन बनाइए जिससे हस्तकला का कारोबार चले ।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. 'गलता लोहा' कहानी का प्रतिपाद्य स्पष्ट करें।
उत्तर- 'गलता लोहा' कहानी में समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि - निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे को प्रस्तावित करता प्रतीत होता है मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।
प्रश्न 2. मोहन के पिता के जीवन-संघर्ष पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर - मोहन के पिता वंशीधर तिवारी गाँव में पुरोहिती का काम करते थे। पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठान करना - करवाना उनका पैतृक पेशा था। वे दूर-दूर तक यह कार्य करने जाते थे। इस कार्य से परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। वे अपने होनहार बेटे को भी नहीं पढ़ा पाए । यजमान उनकी थोड़ी बहुत सहायता कर देते थे ।
प्रश्न 3. 'गलता लोहा' कहानी में चित्रित सामाजिक परिस्थितियाँ बताइए ।
उत्तर- 'गलता लोहा' कहानी में गाँव के परम्परागत समाज का चित्रण किया गया है। ब्राह्मण टोले के लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे तथा वे शिल्पकार के टोले में उठते-बैठते नहीं थे । कामकाज के कारण शिल्पकारों के पास जाते थे, परन्तु वहाँ बैठते नहीं थे। उनसे बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन कुछ वर्ष शहर में रहा था तथा बेरोजगारी की चोट सही । गाँव में आकर वह इस व्यवस्था को चुनौती देता है।
प्रश्न 4. वंशीधर को धनराम के शब्द क्यों कचोटते रहे?
उत्तर- वंशीधर को अपने पुत्र मोहन से बड़ी आशाएँ थी। वे उसके अफसर बनकर आने के सपने देखते थे। एक दिन धनराम ने उनसे मोहन के बारे में पूछा तो उन्होंने घास का एक तिनका तोड़कर दाँत खोदते हुए बताया कि उसकी सक्रेटेरियट नियुक्ति हो गई है। शीघ्र ही वह बड़े पद पर पहुँच जाएगा। धनराम ने उन्हें कहा कि मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धिमान थे। ये शब्द वंशीधर को कचोटते रहे, क्योंकि उन्हें मोहन की वास्तविक स्थिति का पता चल चुका था। लोगों से प्रशंसा सुनकर उन्हें दुःख होता था ।
प्रश्न 5. मोहन ने पुरोहिती का धन्धा क्यों नही अपनाया ?
उत्तर- इस कहानी में मोहन की इच्छा - अनिच्छा व्यक्त नहीं की गई है। लेकिन उसके घर की स्थितियाँ इस बात का संकेत देती हैं कि पुरोहिती-कर्म से उसका गुजारा नहीं हो सकता था। उसके पिता ने इस कर्म के बल पर जैसे-तैसे ही पेट पाला था। इस कारण उसे इस व्यवसाय में कोई रुचि नहीं थी ।
प्रश्न 6. मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन पर क्यों मुग्ध थे ?
उत्तर - मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन की प्रतिभा उसकी उच्च पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण उस पर मुग्ध थे। उन्हें मोहन की अग्रलिखित बातें पसन्द थीं-
- मोहन मेधावी छात्र था। उसकी बुद्धि बहुत तेज थी।
- वह अच्छा गायक भी था ।
- वह पुरोहिती खानदान का ब्राह्मण बालक था।
प्रश्न 7. मोहन के पिता ने जब अपने पुरोहिती - कर्म की कठिनाई बताई तो मोहन ने कोई जवाब क्यों नही दिया ?
उत्तर - मोहन के पिता ने जीवन-भर पुरोहिती - कर्म किया लेकिन ढंग से गुजारा न चला सके। अब वे बूढ़े हो चले थे। अतः उन्होंने अपने बूढ़े शरीर की असमर्थता प्रकट की तो मोहन ने प्रकट रूप से कोई उत्तर नहीं दिया। जवाब देने का अर्थ होता-पुरोहिती-कर्म को आगे बढ़ाना। किन्तु मोहन कोई हाथ के हुनरवाला काम करना चाहता था। अतः उसने जवाब देने की बजाय खेतों में जाकर काम करना उचित समझा।
प्रश्न 8. धनराम मोहन से सजा पाकर भी उसका आदर क्यों करता था ?
उत्तर- धनराम कक्षा में पढ़ने में कमजोर था । मोहन होशियार था । धनराम उसके गुणों के कारण तथा पुरोहिती खानदान से होने के कारण उसे अपने से ऊँचा मानता था । इसलिए यदि मोहन ने मास्टर जी के कहने पर उसे डंडे मारे या कान खींचे तो वह इसे मोहन का अधिकार मानता था और इसी कारण वह उसका आदर करता था ।
प्रश्न 9. वंशीधर तिवारी ने मोहन को गाँव के उच्च विद्यालय से क्यों हटा लिया ?
उत्तर- उच्च विद्यालय गाँव से चार मील की दूरी पर था। वहाँ पहुँचने के लिए दो मील की खड़ी ऊँचाई थी। सबसे बड़ी मुसीबत थी - रास्ते की नदी । उसे पार करके जाना खतरे से भरा होता था। एक दिन अचानक नदी में जोर का गंदा पानी आ गया। उस दिन मोहन जैसे-तैसे ही बच सका। अतः प्राण का संकट देखते हुए वंशीधर तिवारी ने मोहन को उच्च विद्यालय से हटा लिया।
प्रश्न 10. रमेश बाबू मोहन को किस नीयत से लखनऊ ले गए ?
उत्तर - रमेश बाबू स्वार्थी और व्यवहार कुशल व्यक्ति थे। जब वंशीधर तिवारी ने उन्हें मोहन की पढ़ाई-लिखाई की समस्या के बारे में बताया तो उन्होंने उनके साथ सहानुभूति दिखाई। उनके मन में आया कि मोहन के रूप में उन्हें बिना पैसे का नौकर मिल रहा है। वे यदि कोई और नौकर रखते तो वह तनख्वाह लेता और जब चाहता तब भाग जाता। मोहन उसके घर में टिककर रहेगा और केवल भोजन तथा फीस में ही घर के सब काम करता रहेगा। यह सोचकर वे उसे लखनऊ ले गए।
प्रश्न 11. रमेश बाबू ने मोहन को आठवीं के बाद हाथ का काम क्यों सिखाया ? तर्कसम्मत उत्तर दीजिए ।
उत्तर- रमेश बाबू ने मोहन को आठवीं की पढ़ाई के बाद हाथ का काम सिखाने का फैसला किया। इसके दो कारण थे- पहला कारण दिखावटी था। उनकी मान्यता थी कि आजकल बी. ए., एम. ए. करने का कोई लाभ नहीं। इससे बेरोजगारी ही बढ़ती है। दूसरा कारण वास्तविक था । वे मोहन की पढ़ाई पर पैसा खर्च नहीं करना चाहते थे । वे कम-से-कम पैसा खर्च करके उससे घर के काम लेते रहना चाहते थे।
प्रश्न 12. वंशीधर तिवारी ने मोहन को पढ़ने के लिए लखनऊ क्यों भेजा ?
उत्तर - वंशीधर तिवारी मोहन की प्रतिभा को देखते हुए उसे उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे। इसके लिए गाँव के आस-पास ऐसा कोई विद्यालय नहीं था जहाँ आसानी से रोज आया-जाया जा सके। उनके पास मोहन को छात्रावास भेजने के पैसे भी नहीं थे न ही और कोई ठिकाना था। तभी उन्हें लखनऊ में काम करने वाले रमेश बाबू ने निमन्त्रण दिया कि वह मोहन को अपने परिवार में रखकर पढ़ा-लिखा देगा। इसलिए वंशीधर मोहन को लखनऊ भेजने के लिए तुरन्त तैयार हो गए।
प्रश्न 13. पहाड़ी गाँवों की समस्याओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर- पहाड़ी गाँवों का रहन-सहन काफी कठिन होता है। वहाँ के रास्ते ऊँचे-नीचे होते हैं। बीच में नदियाँ पड़ती हैं। बदलते मौसम के साथ ही वहाँ का आवागमन अवरुद्ध हो जाता है। जब नदियों में जल भर आता है तो वहाँ का जन-जीवन मानो ठहर सा जाता है। पहाड़ी बच्चों को विद्यालय जाने के लिए काफी श्रम करना पड़ता है।
प्रश्न 14. मोहन की स्कूली शिक्षा कैसी हुई?
उत्तर- मोहन की स्कूली शिक्षा बहुत सामान्य स्तर की हुई। उसे बहुत ही मामूली-से स्कूल में पढ़ाया गया। आठवीं पास करने के बाद ही उसे छोटे-मोटे तकनीकी स्कूल में डाल दिया गया। उसकी पढ़ाई वस्तुतः दिखावटी थी। न तो उसे पढ़ने के लिए समय दिया गया और न उस पर धन और ध्यान लगाया गया।
V. एक शब्द/वाक्य में उत्तर दीजिए
1. 'गलता लोहा' किस विधा की रचना है?
उत्तर - कहानी ।
2. 'गलता लोहा' के लेखक कौन हैं?
उत्तर - शेखर जोशी ।
3. 'गलता लोहा' कहानी का प्रमुख पात्र कौन है ?
उत्तर - मोहन ।
4. मोहन के पिता का नाम क्या है और वे क्या काम करते
उत्तर - मोहन के पिता वंशीधर पुरोहिती का काम करते हैं।
5. प्राइमरी स्कूल के अध्यापक का नाम क्या है ?
उत्तर- त्रिलोक सिंह
निम्नलिखित गद्यांशों से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. लम्बे बेंटवाले हँसुवे को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था। कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ कर आएगा। बूढ़े वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर-संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं। यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उनपर श्रद्धा रखते हैं लेकिन बुढ़ापे का जर्जर शरीर अब उतना कठिन श्रम और व्रत-उपवास नहीं झेल पाता। सुबह-सुबह जैसे उससे सहारा पाने की नीयत से ही उन्होंने गहरा निःश्वास लेकर कहा था- ‘आज गणनाथ जाकर चन्द्रदत्त जी के लिए रुद्रीपाठ करना था, अब मुश्किल ही लग रहा है। यह दो मील की सीधी चढ़ाई अब अपने बूते की नहीं। एकाएक ना भी नहीं कहा जा सकता, कुछ समझ में नहीं आता । '
(क) कहानी तथा उसके लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- कहानी का नाम - गलता लोहा
(ख) लोग वंशीधर का सम्मान क्यों करते हैं?
उत्तर- लोग वंशीधर का सम्मान इस कारण करते हैं क्योंकि वे पुरोहित हैं और अपना काम पूरी निष्ठा तथा श्रम-साधना से करते हैं। वे व्रत-उपवास और संयम का जीवन जीते हैं।
(ग) कौन, किस उद्देश्य से हँसुवे को लेकर घर से निकला ?
उत्तर- मोहन हँसुवे को लेकर घर से चला। वह अपने पिता का हाथ बँटाना चहाता था । अर्थात् कुछ करके पैसा कमाना चाहता था। वह यजमान का धन्धा न अपना कर खेत में काम करना चाहता था। इसके लिए हँसुवे की जरूरत थी। अत: वह हँसुवा लेकर उसकी धार लगवाने के लिए धनराम लोहार के आफर की ओर चला ।
(घ) वंशीधर ने अपनी मुश्किलें किसके सामने कहीं और क्यों ?
उत्तर- वंशीधर ने अपनी मुश्किलें अपने पुत्र मोहन के सामने कहीं। उनकी मुश्किल यह थी कि वे अब वृद्ध हो चुके थे। उनका शरीर श्रम और व्रत-उपवास के योग्य नहीं रहा था। पहाड़ों की सीधी चढ़ाई चढ़ना उनके बस की बात नहीं रही। उन्होंने मोहन के सामने अपनी मुश्किल इस कारण कही जिससे उनकी जगह मोहन यजमान के घर चला जाए और रुद्रीपाठ कर आए। इससे वह आजीविका कमाने के योग्य बन सकेगा।
(ङ) वंशीधर कौन हैं? उन्होंने जीवन-भर कैसे आजीविका चलाई ?
उत्तर- वंशीधर एक पहाड़ी गाँव में रहने वाले ब्राह्मण हैं, जो पुरोहिती करके अपना पेट पालते हैं। किसी के यहाँ धार्मिक अनुष्ठान कराना उनकी आजीविका का मुख्य साधन है।
इस बार मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसके लाए हुए बेंत का उपयोग करने की बजाय जबान की चाबुक लगा दी थी, 'तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?' अपने थैले से पाँच-छह दराँतियाँ निकालकर उन्होंने धनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी थीं। किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की नहीं थी। धनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ ही था कि बाप ने उसे धौंकनी फूँकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा। फर्क इतना ही था कि जहाँ मास्टर त्रिलोक सिंह उसे अपनी पसन्द का बेंत चुनने की छूट दे दते थे वहाँ गंगाराम इसका चुनाव स्वयं करते थे और जरा-सी गलती होने पर छड़, बेंत, हत्था जो भी हाथ लग जाता उसी से अपना प्रसाद दे देते। एक दिन गंगाराम अचानक चल बसे तो धनराम ने सहज भाव से उनकी विरासत सँभाल ली और पास-पड़ोस के गाँव वालों को याद नहीं रहा वे कब गंगाराम के आफर को धनराम का आफर कहने लगे थे।
प्रश्न- धनराम किस प्रकार कामकाजी बन गया ?उत्तर- धनराम लोहार का बेटा था। उसके पिता गंगाराम ने बचपन में ही उसे सान लगाने, धौंकनी फूँकने, हथौड़ा चलाने और घन चलाने के काम में लगा दिया। इस प्रकार वह पिता से काम सीख गया। एक दिन जब पिता की मृत्यु हो गयी तो उसने पूरा कामकाज सँभाल लिया। इस प्रकारवह सहज रूप से कामकाजी बन गया।
प्रश्न- अध्यापक और लोहार के दण्ड देने के क्या-क्या ढंग थे ?
उत्तर- अध्यापक त्रिलोक सिंह धनराम से संटी मँगवाकर उसी से पीटकर दंडित करते थे । उसके पिता गंगाराम दण्ड देने के लिए छड़ बेंत या हत्था - जो भी मिल जाए, उसी से काम चला लेते थे।
प्रश्न- धनराम के पिता ने उसे कौन-सी विद्या दी और कैसे ?
उत्तर- धनराम के पिता गंगाराम लोहार थे इसलिए उन्होंने धनराम को लोहार का काम सिखाया। वे उसे धौंकनी फूँकने अथवा सान लगाने के काम में लगाए रखते थे। धीरे-धीरे वे उसे हथौड़ा चलाने और घन चलाने का काम भी सिखाने लगे। धनराम अगर उस काम में कोई गलती करता तो वे उस पर छड़, बेंत या हत्थे के प्रहार से दण्ड देते थे।
प्रश्न- 'जबान की चाबुक' का क्या तात्पर्य है? त्रिलोक सिंह ने जबान की चाबुक क्यों लगाई ?
उत्तर- 'जबान की चाबुक' का तात्पर्य है - व्यंग्य - वचन । त्रिलोक सिंह ने धनराम को व्यंग्य - वचन इस कारण कहे क्योंकि मार खाकर भी वह तेरह का पहाड़ याद नहीं कर सका था। दूसरे, उन्हें पता था कि धनराम पढ़ाई के स्थान पर लोहा पीटने के काम में अधिक ध्यान देता है। उसके पिता से लोहे के काम में लगाए रखते हैं।
प्रश्न- कहानी तथा उसके लेखक का नाम लिखिए ।
- कहानी का नाम - गलता लोहा
- कहानी के लेखक - शेखर जोशी
प्राइमरी स्कूल की सीमा लाँघते ही मोहन ने छात्रवृत्ति प्राप्त कर त्रिलोक सिंह मास्टर की भविष्यवाणी को किसी हद तक सिद्ध कर दिया तो साधारण हैसियल वाले यजमानों की पुरोहिताई करने वाले वंशीधर तिवारी का हौसला बढ़ गया और वे भी अपने पुत्र को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का स्वप्न देखने लगे। पीढ़ियों से चले आते पैतृक धन्धे ने उन्हें निराश कर दिया था । दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे । मोहन पढ़-लिखकर वंश का दारिद्रय मिटा दे यह उनकी हार्दिक इच्छा थी। लेकिन इच्छा होने भर से ही सब कुछ नहीं हो जाता। आगे की पढ़ाई के लिए जो स्कूल था वह गाँव से चार मील दूर था। दो मील की चढ़ाई के अलावा बरसात के मौसम में रास्ते में पड़ने वाली नदी की समस्या अलग थी। तो भी वंशीधर ने हिम्मत नहीं हारी और लड़के का नाम स्कूल में लिखा दिया। बालक मोहन लम्बा रास्ता तय कर स्कूल जाता और छुट्टी के बाद थका-माँदा घर लौटता तो पिता पुराणों की कथाओं से विद्याव्यसनी बालकों का उदाहरण देकर उसे उत्साहित करने की कोशिश करते रहते।
प्रश्न – मोहन की पढ़ाई-लिखाई में क्या कठिनाई थी?
उत्तर- मोहन की पढ़ाई-लिखाई में कठिनाई यह थी कि प्राइमरी स्कूल के बाद उच्च विद्यालय गाँव से चार मील (लगभग 6 किमी) की दूरी पर था । उसका रास्ता बहुत कठिन था । वहाँ पहुँचने के लिए दो मील की ऊँचाई पर चढ़ना पड़ता था तथा बीच में एक नदी को पार करना पड़ता था।
प्रश्न – वंशीधर तिवारी कौन थे ? उन्होंने किस कारण अपने पुत्र को पढ़ाने लिखाने का स्वप्न देखना शुरू किया?
उत्तर- वंशीधर तिवारी मोहन के पिता थे। वे पुरोहिती का काम करते थे। उन्होंने अपने पुत्र मोहन को पढ़ाने लिखाने का स्वप्न दो कारणों से देखा-
- मोहन प्रतिभाशाली था। उसे प्राइमरी स्कूल के बाद छात्रवृत्ति मिली थी।
- वंशीधर पुरोहिती के धन्धे से सन्तुष्ट नहीं थे। इससे उनका पेट आधा भी नहीं भर पाता था। अत: वे मोहन को पढ़ा-लिखाकर परिवार की गरीबी को मिटाना चाहते थे।
प्रश्न – त्रिलोक सिंह कौन थे? उन्होंने क्या भविष्यवाणी की थी? वह भविष्यवाणी किस प्रकार सही सिद्ध हुई?
उत्तर- त्रिलोक सिंह प्राइमरी विद्यालय में अध्यापक थे । उन्होंने मोहन की प्रतिभा पर मुग्ध होकर यह भविष्यवाणी की थी कि एक दिन मोहन बहुत बड़ा आदमी बनेगा और अपने स्कूल तथा उनका नाम ऊँचा करेगा। वह भविष्यवाणी कुछ सीमा तक सच भी सिद्ध हुई । उसे प्राइमरी स्कूल उत्तीर्ण करने पर छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। यह उसकी प्रतिभा का प्रमाण था ।
प्रश्न – कहानी तथा उसके लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- कहानी का नाम - गलता लोहा; कहानी के लेखक - शेखर जोशी
प्रश्न – वंशीधर तिवारी अपने पुत्र मोहन को कैसे हिम्मत बँधाते और क्यों ?
उत्तर- वंशीधर तिवारी अपने पुत्र मोहन की कठिनाई को देख रहे थे। मोहन चार मील आ-जाकर बुरी तरह थक जाता था। वंशीधर तिवारी उसका उत्साह बढ़ाने के लिए पुराणों की कथाएँ सुनाते थे। उन कथाओं में विद्याव्यसनी बालकों के प्रेरक प्रसंग होते थे । उन्हें सुनकर मोहन विद्या- अध्ययन में लगा रहता था ।
गद्यांश - 4
वंशीधर को जैसे रमेश के रूप में साक्षात् भगवान मिल गए हों। उनकी आँखों में पानी छलछलाने लगा। भरे गले से वे केवल इतना ही कह पाए कि बिरादरी का यही सहारा होता है। छुट्टियाँ शेष होने पर रमेश वापिस लौटा तो माँ-बाप और अपनी गाँव की दुनिया से बिछुड़कर सहमा - सहमा सा मोहन भी उसके साथ लखनऊ आ पहुँचा। अब मोहन की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ। घर की दोनों महिलाओं, जिन्हें वह चाची और भाभी कह कर पुकारता था, का हाथ बँटाने के अलावा धीरे-धीरे वह मुहल्ले की सभी चाचियों और भाभियों के लिए काम-काज में हाथ बँटाने का साधन बन गया।
प्रश्न – वंशीधर को रमेश में साक्षात् भगवान के दर्शन क्यों हुए ?
उत्तर- वंशीधर तिवारी अपने पुत्र मोहन को पढ़ाना-लिखाना चाहते थे। लेकिन वे स्वयं साधनहीन थे। न वे मोहन को गाँव से चार मील दूर स्थित स्कूल में पढ़ने के लिए भेजना चाहते थे और न ही लखनऊ भेज सकते थे। इसलिए जब उनकी बिरादरी के एक युवक रमेश ने मोहन को पढ़ाई-लिखाई के लिए अपने साथ लखनऊ भेजने के लिए कहा तो उनके मन की मुराद पूरी हो गई। इसलिए उन्हें रमेश में भगवान के दर्शन हुए । उनकी आँखें रमेश के प्रति कृतज्ञता के कारण छलछला उठीं।
प्रश्न – बिरादरी का यही सहारा होता है- यह कथन कितना सत्य सिद्ध हुआ ?
उत्तर- वंशीधर तिवारी ने रमेश से सहायता का वचन पाकर ये शब्द कहे। उन्हें लगा कि उनकी बिरादरी के युवक ने बिरादरी की मर्यादा रखने के लिए मोहन को पढ़ाने लिखाने की जिम्मेदारी ली है। परन्तु यह वचन खोखला सिद्ध हुआ। रमेश ने मोहन को पढ़ाने-लिखाने के स्थान पर उससे घर के काम करवाए। उसने एक प्रकार से उसके साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया। पढ़ाई के नाम पर उसे आठवीं तक पढ़ाया और कोई छोटा-मोटा हुनर सिखाकर चलता कर दिया।
प्रश्न – रमेश कौन था? वह मोहन को किस उद्देश्य से लखनऊ ले गया ?
उत्तर- रमेश वंशीधर तिवारी के गाँव में रहने वाला एक युवक था । वह मोहन को पढ़ाने लिखाने की बात कहकर अपने साथ लखनऊ ले गया था। संभवतः उसका उद्देश्य यह था कि यह बालक खाने के एवज में नौकर का काम करेगा।
प्रश्न – लखनऊ में मोहन का समय कैसे बीता ?
उत्तर- लखनऊ में जाते ही मोहन के साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया गया। कहने भर को वह घर का बालक था। वह घर की महिलाओं को भाभी और चाची कहता था । परन्तु वे सब उससे अपना हर काम करवाते थे मानो उसे इसीलिए लाया गया हो । यहाँ तक कि मुहल्ले की अन्य महिलाएँ भी उससे अपना छोटा-मोटा काम करवाने लगीं। इस प्रकार वह सबका साझा नौकर बन गया।
प्रश्न – कहानी तथा उसके लेखक का नाम बताइए।
उत्तर- (1) कहानी का नाम - गलता लोहा; (2) कहानी के लेखक - शेखर जोशी
गद्यांश - 5
औसत दफ्तरी बड़े बाबू की हैसियत वाले रमेश के लिए मोहन को अपना भाई - बिरादर बतलाना अपने सम्मान के विरुद्ध जान पड़ता था और उसे घरेलू नौकर से अधिक हैसियत वह नहीं देता था, इस बात को मोहन भी समझने लगा था। थोड़ी-बहुत हीला-हवाली करने के बाद रमेश ने निकट के ही एक साधारण से स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया। लेकिन एकदम नए वातावरण और रात-दिन के काम के बोझ के कारण गाँव का वह मेधावी छात्र शहर के स्कूली जीवन में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया। उसका जीवन एक बँधी- बँधाई लीक पर चलता रहा। साल में एक बार गरमियों की छुट्टी में गाँव जाने का मौका भी तभी मिलता जब रमेश या उसके घर का कोई प्राणी गाँव जाने वाला होता वरना उन छुट्टियों को भी अगले दरजे की तैयारी के नाम पर उसे शहर में ही गुजार देना पड़ता था। अगले दरजे की तैयारी तो बहाना भर थी, सवाल रमेश और उसकी गृहस्थी की सुविधा - असुविधा का था । मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था क्योंकि और कोई चारा भी नहीं था। घरवालों को अपनी वास्तविक स्थिति बतलाकर वह दुखी नहीं करना चाहता था। वंशीधर उसके सुनहरे भविष्य के सपने देख रहे थे।
प्रश्न- रमेश की दृष्टि में मोहन की कीमत क्या थी?
उत्तर- रमेश दफ्तर में बड़े बाबू के पद पर कार्यरत था। अतः वह दीन-हीन दीखने वाले मोहन को अपना भाई या रिश्तेदार नहीं बताना चाहता था। उसे अपना बन्धु मानना उसे अपने सम्मान के विपरीत जान पड़ता था। इसलिए वह उसे घरेलू नौकर जैसा समझता था। यही कीमत थी मोहन की।
प्रश्न- मेधावी मोहन शहर के विद्यालय में अपनी पहचान क्यों नहीं बना पाया ?
उत्तर- मोहन मेधावी छात्र अवश्य था लेकिन रमेश के घर के सदस्य उससे दिन-भर काम लिया करते थे। इससे वह थक जाता था तथा पढ़ाई के लिए समय नहीं निकाल पाता था। इस कारण वह अपनी प्रतिभा के अनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाया।
प्रश्न- गर्मियों की छुट्टियों में भी मोहन अपने गाँव क्यों नहीं जा पाता था?
उत्तर- मोहन गर्मियों की छुट्टियों में तभी अपने गाँव जा पाता था, जब रमेश के घर का कोई सदस्य गाँव जा रहा हो। रमेश बाबू स्वयं को असुविधा में डालकर उसे गाँव भेजने की बात नहीं सोच सकते थे। वे केवल अपनी सुविधा - असुविधा देखते थे, मोहन की नहीं।
प्रश्न- मोहन ने अपनी परिस्थितियों से समझौता क्यों कर लिया था ?
उत्तर- मोहन जानता था कि उसके पिता साधनहीन हैं। उनके पास उसे पढ़ाने का अन्य कोई उपाय नहीं है। वह यह भी जानता था कि रमेश बाबू उसके कोई सगे-सम्बन्धी नहीं हैं। वे उसे पढ़ाने के बदले पूरी सेवा लेंगे। रमेश बाबू की भावना समझते ही स्वयं को उपायहीन पाकर उसने अपनी परिस्थितियों के साथ समझौता कर लिया। इसी में उसकी भलाई भी थी।
प्रश्न- कहानी तथा उसके लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर- (1) कहानी का नाम - गलता लोहा; (2) कहानी के लेखक - शेखर जोशी
गद्यांश - 6
सामान्य तौर से ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था। किसी काम काज के सिलसिले में यदि शिल्पकार टोले में आना ही पड़ा तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी। ब्राह्मण टोले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। पिछले कुछ वर्षों से शहर में जा रहने के बावजूद मोहन की इन मान्यताओं से अपरिचित हो, ऐसा सम्भव नहीं था। धनराम मन-ही-मन उसके व्यवहार से असमंजस में पड़ा था लेकिन प्रकट में उसने कुछ नहीं कहा और अपना काम करता रहा।
प्रश्न – 'ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था' इस कथन के द्वारा किस सामाजिक समस्या की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर- गाँवों में ऊँच-नीच और जाति-प्रथा का बोलबाला था। वहाँ ब्राह्मणों को ऊँचा और पूज्य माना जाता था तथा लोहारों को निम्न जाति का माना जाता था। इस कारण ब्राह्मण टोले के लोग अपने बड़प्पन के कारण शिल्पकारों के टोले में उठते-बैठते नहीं थे। वे स्वयं को उनसे श्रेष्ठ मानते थे। इस प्रकार यहाँ जाति सम्बन्धी सामाजिक समस्या का संकेत किया गया है।
प्रश्न – मोहन किस टोले से सम्बन्ध रखता था और वह शिल्पकार टोले में क्यों गया था ?
उत्तर- मोहन ब्राह्मण टोले से सम्बन्ध रखता था पर वह लोहा ढालने का काम भी जानता था । इसलिए वह स्वाभाविक रुचि के कारण शिल्पकार टोले में गया था।
प्रश्न – धनराम मोहन के किस व्यवहार से असमंजस में पड़ा था ?
उत्तर- धनराम मोहन को अपने पास बैठा देखकर और उसको काम में रुचि लेता देखकर बहुत असमंजस में पड़ गया।
प्रश्न – कहानी तथा उसके लेखक का नाम बताइए।
उत्तर- (1) कहानी का नाम - गलता लोहा; (2) कहानी के लेखक - शेखर जोशी
गद्यांश - 7
मोहन का यह हस्तक्षेप इतनी फुर्ती और आकस्मिक ढंग से हुआ था कि धनराम को चूक का मौका ही नहीं मिला। वह अवाक् मोहन की ओर देखता रहा। उसे मोहन की कारीगरी पर उतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना पुरोहित खानदान के एक युवक का इस तरह के काम में, उसकी भट्ठी पर बैठकर, हाथ डालने पर हुआ था। वह शंकित दृष्टि से इधर-उधर देखने लगा। धनराम की संकोच, असमंजस और धर्म-संकट की स्थिति से उदासीन मोहन सन्तुष्ट भाव से अपने लोहे के छल्ले की त्रुटिहीन गोलाई को जाँच रहा था। उसने धनराम की ओर अपनी कारीगरी की स्वीकृति पाने की मुद्रा में देखा। उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी - जिसमें न स्पर्धा थी और न ही किसी प्रकार की हार-जीत का भाव।
प्रश्न – मोहन ने लोहा ढालने की कारीगरी कैसे सीखी होगी ?
उत्तर- मोहन ने लोहा ढालने की कारीगरी संभवत: तकनीकी विद्यालय में सीखी होगी। वैसे तो उसने धनराम को भी काम करते हुए बारीकी से देखा था, किन्तु उतने ही निरीक्षण से यह कुशलता नहीं आ सकती थी। लेखक ने स्पष्ट लिखा है कि मोहन ने 'अभ्यस्त हाथों से धौंकनी फूँककर लोहे को दुबारा भट्ठी में गर्म करके और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते-पीटते सुघड़ गोले का रूप दे डाला।' ये अभ्यस्त हाथ अवश्य ही तकनीकी विद्यालय की देन थे।
प्रश्न – धनराम को किस बात पर आश्चर्य हुआ ?
उत्तर- धनराम को एक साथ दो बातों पर आश्चर्य हुआ - पहला इस बात पर कि मोहन ने बिना यह काम सीखे इतनी कुशलता से गोले को ढाल कैसे लिया। दूसरा इस बात पर आश्चर्य हुआ कि पुरोहित खानदान युवक होते का हुए भी उसने लोहार जैसे निम्न कोटि के काम को करने का साहस किस कारण किया।
प्रश्न – लोहे के गोले को ढालने के बाद मोहन की मनःस्थिति कैसी थी ?
उत्तर- लोहे को इच्छानुसार ढालने के उपरान्त मोहन की आँखों में एक सर्जक की चमक थी। वह चाहता था कि धनराम उसके बनाए हुए गोले की तारीफ करे। वह धनराम से अपनी कार्यकुशलता की स्वीकृति चाहता था।
प्रश्न – धनराम को मोहन द्वारा लोहा ढालने पर आश्चर्य क्यों हुआ?
उत्तर- धनराम लोहार जाति से था और मोहन पुरोहित खानदान से। समाज में लोहार के काम को निम्न माना जाता था और पुरोहित के काम को ऊँचा माना जाता था । इसलिए धनराम को आश्चर्य हुआ कि मोहन ने लोहार का काम करने में रुचि क्यों दिखाई ? यदि उसने यह काम सीखा तो कैसे सीख, क्यों सीखा, कहाँ से सीखा ?
प्रश्न – कहानी तथा उसके लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- (1) कहानी का नाम - गलता लोहा; (2) कहानी के लेखक - शेखर जोशी
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