अपना अपना भाग्य कहानी का सारांश: ‘अपना-अपना भाग्य' जैनेंद्र जी की एक श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक कहानी है। आलोच्य कहानी के प्रथम भाग में नैनीताल के प्राकृतिक
अपना अपना भाग्य कहानी का सारांश - Apna Apna Bhagya Kahani Ka Saransh
अपना अपना भाग्य कहानी का सारांश: ‘अपना-अपना भाग्य' जैनेंद्र जी की एक श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक कहानी है। आलोच्य कहानी के प्रथम भाग में नैनीताल के प्राकृतिक सौंदर्य और गुलाम भारतीय जनता तथा शासक अंग्रेजों का वर्णन है । सुखासीन अमीर अंग्रेज शासक होने के कारण रोब, गर्व से रहते हैं और गरीब, बेबस, लाचार भारतीय अपने आपको बचाते हुए सडक के किनारे किनारे चलते हैं।
कहानी के दूसरे भाग में लेखक (वाचक मैं ) और उनके मित्रों से एक पहाडी लडका मिलता है। वह अभावग्रस्त अनाथ और अभागा था। वह भूखा - नंगा, बेसहारा था। वह लेखक (वाचक मैं ) से काम और मदद माँगता है। मध्यवर्गीय लेखक और उनके मित्र के मन में करूणा - संवेदना जाग उठती है। वे उस बालक की सहायता करना चाहते हैं मगर बजट बिगड जाएगा, यह सोचकर कुछ भी नहीं देते। वे कहते हैं हृदय में जितनी दया है, पास में उतने पैसे तो नहीं है । वे छुट्टे पैसे नहीं है ऐसा कहकर उस बालक को कहते हैं अब आज तो कुछ नहीं हो सकता कल मिलना । उनकी बातों से लडका निराश होकर चला जाता है।
दूसरे दिन उस लडके की मृत्यु का समाचार लेखक (वाचक मैं ) और उनके मित्र को मिलता है। ठंड से ठिठुरकर मरनेवाले उस बालक के मुँह पर, छाती - मुट्ठियों और पैरों पर बर्फ की हल्की सी चादर चिपक गई थी। मनो दुनिया की बेहयाई ढकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफेद और ठंडे कफन की चादर का प्रबंध कर दिया है।
उस लडके की मदद लेखक या उनके मित्र ने की होती तो शायद वह लडका बच जाता लेकिन कोरी सहानुभूति दिखानेवाले वे मदद नहीं करते और वह लडका मर जाता है। उस लडके की मृत्यु पर कोरी सहानुभूति दिखानेवाले केवल 'अपना-अपना भाग्य' कहकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते हैं।'
प्रस्तुत कहानी के द्वारा भाग्यवादिता का आश्रय लेने की मनोवृत्ति पर कहानीकार ने चोट की है तथा सहानुभूति दिखानेवालों पर व्यंग्य किया है। ऐसे लोगों का मजाक उड़ाना कहानीकार का उद्देश्य है।
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