इन्द्रधनुष पर कविता - Poem on Rainbow in Hindi: इन लेख में हमने इन्द्रधनुष पर कविता, बच्चों की rhymes और इन्द्रधनुष पर बाल कविता प्रकाशित की है। Read
इन्द्रधनुष पर कविता - Poem on Rainbow in Hindi
इन्द्रधनुष पर कविता का संग्रह- इन लेख में हमने इन्द्रधनुष पर कविता, बच्चों की rhymes और इन्द्रधनुष पर बाल कविता प्रकाशित की है। Read here a complete collection of Poem on Rainbow in Hindi.
इन्द्रधनुष पर बाल कविता
सात रंगों से मिलकर बना है,
इन्द्रधनुष का रंग बैगनी,
आसमानी हरा, पीला, नारंगी,
लाल, नीला इन्ही रंगों से
मिलके बना है रंगों का संसार,
एक से दूजा मिलाकर,
बन जाएँ रंग हजार
इन्द्रधनुष पर कविता इन हिंदी
उमड़े बरसे काले मेघ,
नभ में जैसे लाखों छेद।
वर्षा थमी धरा महकी,
प्रकृति दिखती हरी भरी।
सहसा सूर्यदेव आये,
सोने – सी किरणें लाये।
नभ पर रंगों का मेला,
अर्ध – वृत्त जैसा फैला।
यह है इन्द्रधनुष प्यारा,
सतरंगा न्यारा – न्यारा।
हृदय – हार नभ रानी का,
मोहित मन हर प्राणी का।
सुन्दर यह प्रभु का झूला,
देख – देख कर मन फूला।
झूला प्रभु के आंगन में,
किरणें झूलें सावन में।
वर्षा ऋतु मुस्काती है,
सतरंगी हो जाती है।
आओ हम भी मुस्काएँ,
रंग खुशी से बिखराएँ।
इन्द्रधनुष पर कविता
आकाश में निकला इन्द्रधनुष
सीखो इसके बारे में सबकुछ
पहला रंग बैंगनी रहता
रंग दूसरा नीला,
रंग आसमानी के पीछे
हरा और फिर पीला
छठा रंग नारंगी देखो
लाल सातवाँ प्यारा
इन्द्रधनुष में सात रंग का
दिखता सदा नजारा
जब भी वर्षा थम जाती है
सूरज चमक लुटाता
नभ की चादर पर चमकीला
इन्द्रधनुष आ सजता
देख मनोहारी छवि सचमुच
होते सभी निहाल
इन्द्रधनुष जैसा तुम भी बन
जग में नाम कमाओ
अपनी अनुपम लीलाओं से
जन-जन को हर्षाओ
कितना प्यारा इन्द्रधनुष
कितना सुन्दर कितना प्यारा
प्रकृति का यह सुन्दर रूप
सात रंगों में सजता है नभ
साथ में जब बारिश और धूप
अब बात पर मेरी ध्यान धरो
इन सात रंगों के नाम सुनो
बैंगनी जमुनी और नीला
उसके ऊपर हरा और पीला
फिर आता नारंगी है
लाल रंग जिसका साथी है
जिन सात रंगों को देखकर
बच्चे तुम होते हो खुश
उन सात रंगों को
कहते हैं हम इन्द्रधनुष
इन्द्रधनुष पर कविता – काली काली घटाएं
काली काली घटाएं,
मन में कोहराम मचाये है ।
वादे इरादे नेक से लगते थे,
वो आज फिर से आसमान उठाये है ।
दिल पसीज गया है अब,
मैं सतरंगी सा मिल जाता था ।
वो बारिश सी आती थी,
मैं इन्द्रधनुष सा खिल जाता था ।
गुजरा साल मेरा हाल पूछता है ।
बिन कहे, न रहे
सब जता देता है
गुमराह हो चला है यह दिल
बार बार उसका पता देता है
सुलगती याद पर ओले से गिरते थे ।
हर बार दिल छिल जाता था,
वो बारिश सी आती थी ,
मैं इन्द्रधनुष सा खिल जाता था ।
मुरझाई सी फसल पर फुहार थी वो,
जलते बुझते शोलों का अहसास थी ।
गरजते बादल देख,
मन मचलता था ।
हर बार आने की,
वो बारिश सी आस थी ।
मूसलाधार सी,
उसकी यादों का कहर,
ज़र्रा ज़र्रा हिल जाता था
वो बारिश सी आती थी,
मैं इन्द्रधनुष सा खिल जाता था ।
लेखक - जीतेन्द्र पोथिया
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