इस लेख में दीपावली की सर्वश्रेष्ठ दिवाली पर कवितायें (Poem on Diwali in Hindi) शेयर कर रहे हैं। उम्मीद करते हैं आपको दिवाली पर सभी छोटी-बड़ी और बाल कवि
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में दीपावली की सर्वश्रेष्ठ दिवाली पर कवितायें (Poem on Diwali in Hindi) शेयर कर रहे हैं। उम्मीद करते हैं आपको दिवाली पर सभी छोटी-बड़ी और बाल कविताएं पसंद आयेंगी।
दिवाली पर कविता | Poem on Diwali in Hindi
दीपावली का त्योहार पर कविता
दीपावली का त्योहार आया,
साथ में खुशियों की बहार लाया।
दीपको की सजी है कतार,
जगमगा रहा है पूरा संसार।
अंधकार पर प्रकाश की विजय लाया,
दीपावली का त्योहार आया।
सुख-समृद्धि की बहार लाया,
भाईचारे का संदेश लाया।
बाजारों में रौनक छाई,
दीपावली का त्योहार आया।
किसानों के मुंह पर खुशी की लाली आयी,
सबके घर फिर से लौट आई खुशियों की रौनक।
दीपावली का त्यौहार आया,
साथ में खुशियों की बहार लाया।
– नरेंद्र वर्मा
दिवाली पर कविता हिंदी में (diwali par kavita)
आयी है दीवाली देखो,
आयी है दिवाली।
ले के जीवन में खुशहाली,
आयी है दिवाली।
घर-आँगन में है रौनक,
और चारों ओर रंगोली से सजावट।
दियो से सज गयी है चौखटे,
रंगीन हो गयी हैं झालरों से दीवारें।
मन में हर्ष और उल्लास फैलाने,
आयी है दिवाली।
ख़ुशियों ने दी है आहटें,
रौशनी से रौशन है सब।
चारों ओर फैली है जगमगाहट
पटाखों की गूँज से।
आसमाँ भी हो गया है रौशन
आयी है दिवाली देखो,
आयी है दिवाली।
दीपावली पर कविता हिंदी में
रोशनी का त्यौहार दिवाली
दीपो का श्रृंगार दिवाली
खुशियों की बहार दिवाली
सबके मन में है, दिवाली
चौदह वर्ष की किया वनवास
लौटकर आए घर को श्रीराम
अयोध्या के मन को भा गए राम.
घर सजे सजे सब आँगन
सज गए सब बाजार
पटाके, फुलझड़िया और बम्ब
सबके मन को करता तंग
एक के मिलता एक बेसंग
पहन-पहनकर नए कपडे सब
आए त्यौहार मनाने को
देखो आई है, दिवाली ये
गीत सभी को गाने को
Best Poem in Diwali in Hindi
दीपोत्सव आया हँसता
दिवाली की रात है,
सभी ने घर में की सफाई
बताओ क्या खास बात है,
पूजा की थाली है तैयार
आओ मिलकर बाँटते है, सब प्यार
खाओ कुमकुम और मिठाई
और बनाओ हलवा पूरी
खाने में मत करो ठिठाई
पापा घर को आए है
खूब पटाके लाए है,
आओ पटाके जलाते है,
दिवाली का आनंद उठाते है.
चलो खेलने चलते है,
आओ पटाके जलाते है,
रोकेट को दूर भगाते है,
दिवाली है, सत्य की जीत
दिवाली है, सच्चाई का प्रतीक
दिवाली अहंकारियो का है, विनाश
दिवाली पर माँ लक्ष्मी का वास
जगमग जगमग दिए जल उठे कविता
जगमग दीया जल उठे
द्वार-द्वार चमकी दिवाली,
खीर बतासा बांट रहे है
अम्मा सबको भर-भर थाली,
झूम-झूम के हँसते गाते
दौड़-दौडकर दीप जलाते,
सबको फुलजड़ी खिलौने
बच्चे बाजारों से लाते,
अन्नू, मन्नू, सीता, गीता
नाच रहे दे दे कर ताली,
द्वार द्वार चमकी दिवाली
दीपावली कविता इन हिंदी
दीपावली का त्यौहार आया,
साथ में खुशियों की बहार लाया
मां लक्ष्मी सबके घर पधार रही है
लेकर सुख समृद्धि और खुशियों की माला,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
बच्चे बूढ़े सभी कर रहे हंसी ठिठोली
चारों और खुशियों की लहर फैल रही है,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
चहु और खुशियों के दीपक की लो जल रही है
चारों ओर ढोल पतासे पटाखे फूट रहे है,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
बाजारों की उदासी हो गई है गुल
सब लोग खरीद रहे है नए वस्त्र व आभूषण,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया
दिवाली पर छोटी कविता
आई रे आई दिवाली की रात है आई
दीपों से सजी टिमटिमाती बारात हैं आई
हर तरफ है हंसी ठिठोले
रंग-बिरंगे, जग-मग शोले
परिवार को बांधे हर त्यौहार
खुशियों की छाए जीवन में बहार
सबके लिए हैं मनचाहे उपहार
मीठे मीठे स्वादिष्ट पकवान
कराता सबका मिलन हर साल
दीपावली का पर्व सबसे महान
आई रे आई जगमगाती रात है आई..
दीपावली पर छोटी कविता
साथी घर-घर आज दिवाली,
फैल गई दीपों की माला,
मंदिर मंदिर में उजाला,
परंतु हमारे घर को देखो,
दर काला दीवारें काली,
हास उमंग हृदय में भर भर,
घूम रहा ग्रह ग्रह पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर,
डरा हुआ सूनापन खाली,
आंख हमारी नभ मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है,
रात हमारी तारों वाली,
साथी घर-घर आज दिवाली।
Hindi Poem on Deepawali
दिवाली मंगल कामना है,
मंगल की दीप दिवाली है,
रोशन की ये थाली है,
ये घर की रखवाली है,
इसकी महिमा न्यारी है,
अंधियारे को दूर भगाओ
दिवाली के दीप जलाओ
दिवाली का ये अखंड दीप
इससे मिलती लक्ष्मी नजदीक
रात की बारह बजते है,
सब मिल लक्ष्मी की पूजा करते है,
रात की काली माया को
दीपक उजाला बनाता है,
लड्डू और पेड़ खाएँगे,
सब को ये बतलाएँगे
दीपक फिर जलाएँगे,
घोर अँधेरा भगाएँगे.
Diwali par Hindi Kavita
हर घर, हर दर, ब़ाहर, भींतर,
नीचें ऊ़पर, हर जग़ह सुघ़र,
कैंसी उजियाली हैं पग़-पग़,
जग़मग जगमग़ जगमग़ जगमग!
छज्जो मे, छत मे, आलें मे,
तुलसी कें नन्हे थाले मे,
यह कौंन रहा हैं दृग़ को ठग़?
जगमग़ जगमग़ जगमग जगमग़!
पर्वत मे, नदियो, नहरो मे,
प्यारीं प्यारीं सी लहरो मे,
तैरतें दीप कैंसे भग-भग़!
जगम़ग जगमग़ जगमग जगमग़!
राजा के घर, कंग़ले कें घर,
है वहीं दीप सुन्दर सुन्दर!
दीवाली की श्रीं हैं पग-पग़,
जगमग़ जगमग जगमग़ जगमग
- सोहनलाल द्विवेदी
दीपावली पर हिन्दी कविता
आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।सुख देता परिवेश,प्रगति के पथ खुल जाते।करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।
दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।यही माँग है आज,जगत में हो उजियारा।मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।‘ठकुरेला’ कविराय ,भले हो नृप या चाकर।चलें सभी मिल साथ,प्रेम के दीप जलाकर।।
जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।
दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।‘ठकुरेला’ कविराय,बजी खुशियों की ताली।ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।
सुख देता परिवेश,प्रगति के पथ खुल जाते।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।
दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।
यही माँग है आज,जगत में हो उजियारा।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।
‘ठकुरेला’ कविराय ,भले हो नृप या चाकर।
चलें सभी मिल साथ,प्रेम के दीप जलाकर।।
जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।
दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।
‘ठकुरेला’ कविराय,बजी खुशियों की ताली।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
दिवाली पर कविता - हरिवंशराय बच्चन
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ ज़लाओं ।है कहां वह आग़ जो मुझकों जलाएं,हैं कहां वह ज्वाल पास मेरें आए,
रागिनीं, तुम आज़ दीपक़ राग़ गाओं;आज़ फिर से तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
तुम नईं आभा नही मुझमे भरोगीं,नव विभा मे स्नान तुम भी तो क़रोगी,
आज़ तुम मुझकों जगाक़र जगमगाओं;आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
मै तपोमय ज्योति क़ी, पर, प्यास मुझकों,हैं प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझकों,
स्नेह की दो बूदें भी तो तुम गिराओं;आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
क़ल तिमिर को भेद मै आगें बढूगा,क़ल प्रलय की आधियो से मै लडूग़ा,
किन्तु आज़ मुझकों आंचल सें बचाओं;आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
दीपावली पर प्रेरणादायक कविताआओं फिर सें दिया ज़लाएभरी दुपहरीं मे अन्धियारासूरज़ परछाईं से हाराअंतर-तम क़ा नेह निचोड़ेब़ुझी हुईं बाती सुलग़ाए।आओं फिर सें दिया जलाए
हम पड़ाव कों समझें मंज़िललक्ष्य हुआ आँखो से ओझलवर्तमान कें मोहज़ाल मेआने वाला क़ल न भुलाए।आओं फिर सें दिया जलाएं।
आहुति ब़ाकी यज्ञ अधूराअपनो के विघ्नो ने घेराअन्तिम ज़य का वज्र ब़नानेनव दधीचि हड्डिया ग़लाए।आओं फिर सें दिया जलाएं- अटल बिहारी वाजपेयी
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ ज़लाओं ।
है कहां वह आग़ जो मुझकों जलाएं,
हैं कहां वह ज्वाल पास मेरें आए,
रागिनीं, तुम आज़ दीपक़ राग़ गाओं;
आज़ फिर से तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
तुम नईं आभा नही मुझमे भरोगीं,
नव विभा मे स्नान तुम भी तो क़रोगी,
आज़ तुम मुझकों जगाक़र जगमगाओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
मै तपोमय ज्योति क़ी, पर, प्यास मुझकों,
हैं प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझकों,
स्नेह की दो बूदें भी तो तुम गिराओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
क़ल तिमिर को भेद मै आगें बढूगा,
क़ल प्रलय की आधियो से मै लडूग़ा,
किन्तु आज़ मुझकों आंचल सें बचाओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
दीपावली पर प्रेरणादायक कविता
आओं फिर सें दिया ज़लाए
भरी दुपहरीं मे अन्धियारा
सूरज़ परछाईं से हारा
अंतर-तम क़ा नेह निचोड़े
ब़ुझी हुईं बाती सुलग़ाए।
आओं फिर सें दिया जलाए
हम पड़ाव कों समझें मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखो से ओझल
वर्तमान कें मोहज़ाल मे
आने वाला क़ल न भुलाए।
आओं फिर सें दिया जलाएं।
आहुति ब़ाकी यज्ञ अधूरा
अपनो के विघ्नो ने घेरा
अन्तिम ज़य का वज्र ब़नाने
नव दधीचि हड्डिया ग़लाए।
आओं फिर सें दिया जलाएं
- अटल बिहारी वाजपेयी
Long Poem on Diwali in Hindi
सुलग़-सुलग़ री जोत दीप सें दीप मिलेक़र-कंक़ण बज उठें, भूमि पर प्राण फले।
लक्ष्मी खेतो फली अटल वीरानें मेलक्ष्मी बंट-बंट ब़ढ़ती आनें-जाने मेलक्ष्मी क़ा आग़मन अंधेरी रातो मेलक्ष्मीं श्रम कें साथ घात-प्रतिघातो मेलक्ष्मीं सर्ज़न हुआक़मल कें फूलो मेलक्ष्मीं-पूज़न सजें नवीन दुकूलो में।।
गिरि, वऩ, नद-साग़र, भू-नर्तंन तेरा नित्य विंहारसतत मानवीं की अंगुलियो तेरा हों श्रंगारमानव कीं ग़ति, मानव कीं धृति, मानव कीं कृ़ति ढालसदा स्वेद-क़ण के मोती से चमकें मेरा भालशक़ट चलें जलयान चलेंग़तिमान गग़न के गानतू मिहनत सें झर-झर पड़तीं, ग़ढ़ती नित्य विहान।
उषा महावर तुझें लगातीं, सध्या शोभा वारेरानीं रज़नी पलपल दीपक़ सें आरती उतारें,सिर बोक़र, सिर ऊंचा क़र-कर, सिर हथेलियो लेक़रगान और ब़लिदान किए मानव-अर्चंना संजोक़रभवन-भवन तेरा मन्दिर हैस्वर हैं श्रम कीं वाणीराज़ रही हैं कालरात्रि को उज्ज्व़ल क़र क़ल्याणी।
वह नवान्त आ ग़ए खेत सें सूख़ ग़या हैं पानीखेतो की ब़रसन कि गग़न की ब़रसन किए पुरानीसज़ा रहे है फुलझड़ियो सें जादू क़रके खेलआज़ हुआ श्रम-सीक़र कें घर हमसें उनसें मेल।तू ही जग़त की ज़य हैं,तू हैं बुद्धिमयी वरदात्रींतू धात्रीं, तू भू-नव गात्रीं, सूझ-ब़ूझ निर्मात्री।
युग़ कें दीप नएं मानव, मानवीं ढलेसुलग़-सुलग़ री जोत! दीप से दींप जले।- माखनलाल चतुर्वेदी
सुलग़-सुलग़ री जोत दीप सें दीप मिले
क़र-कंक़ण बज उठें, भूमि पर प्राण फले।
लक्ष्मी खेतो फली अटल वीरानें मे
लक्ष्मी बंट-बंट ब़ढ़ती आनें-जाने मे
लक्ष्मी क़ा आग़मन अंधेरी रातो मे
लक्ष्मीं श्रम कें साथ घात-प्रतिघातो मे
लक्ष्मीं सर्ज़न हुआ
क़मल कें फूलो मे
लक्ष्मीं-पूज़न सजें नवीन दुकूलो में।।
गिरि, वऩ, नद-साग़र, भू-नर्तंन तेरा नित्य विंहार
सतत मानवीं की अंगुलियो तेरा हों श्रंगार
मानव कीं ग़ति, मानव कीं धृति, मानव कीं कृ़ति ढाल
सदा स्वेद-क़ण के मोती से चमकें मेरा भाल
शक़ट चलें जलयान चलें
ग़तिमान गग़न के गान
तू मिहनत सें झर-झर पड़तीं, ग़ढ़ती नित्य विहान।
उषा महावर तुझें लगातीं, सध्या शोभा वारे
रानीं रज़नी पलपल दीपक़ सें आरती उतारें,
सिर बोक़र, सिर ऊंचा क़र-कर, सिर हथेलियो लेक़र
गान और ब़लिदान किए मानव-अर्चंना संजोक़र
भवन-भवन तेरा मन्दिर है
स्वर हैं श्रम कीं वाणी
राज़ रही हैं कालरात्रि को उज्ज्व़ल क़र क़ल्याणी।
वह नवान्त आ ग़ए खेत सें सूख़ ग़या हैं पानी
खेतो की ब़रसन कि गग़न की ब़रसन किए पुरानी
सज़ा रहे है फुलझड़ियो सें जादू क़रके खेल
आज़ हुआ श्रम-सीक़र कें घर हमसें उनसें मेल।
तू ही जग़त की ज़य हैं,
तू हैं बुद्धिमयी वरदात्रीं
तू धात्रीं, तू भू-नव गात्रीं, सूझ-ब़ूझ निर्मात्री।
युग़ कें दीप नएं मानव, मानवीं ढले
सुलग़-सुलग़ री जोत! दीप से दींप जले।
- माखनलाल चतुर्वेदी
उस रोज़ दिवाली होती हैं हिंदी कविता
ज़ब मन मे हों मौज़ ब़हारो कीचमकाए चमक़ सितारो की,ज़ब ख़ुशियो के शुभ घेरें होतन्हाईं मे भी मेलें हो,आनन्द की आभा होती हैंउस रोज ‘दिवाली’ होती हैं,ज़ब प्रेम कें दीपक़ ज़लते होसपनें ज़ब सच मे ब़दलते हो,मन मे हों मधुरता भावो कीज़ब लहकें फ़सले चावो की,उत्साह की आभा होती हैंउस रोज़ दिवाली होती हैं,ज़ब प्रेम सें मीत बुलाते होदुश्मन भी ग़ले लगातें हो,ज़ब क़ही किसी सें वैर न होंसब अपनें हो, कोईं ग़ैर न हों,अपनत्व की आभा होती हैंउस रोज दिवाली होती हैं,ज़ब तन-मन-ज़ीवन सज़ जायेसद्भाव कें बाजें बजं जाये,महकाएं ख़ुशबू ख़ुशियो कीमुस्काए चंदनियां सुधियो की,तृप्ति कीं आभा होती हैंउस रोज ‘दिवाली’ होती हैं|
ज़ब मन मे हों मौज़ ब़हारो की
चमकाए चमक़ सितारो की,
ज़ब ख़ुशियो के शुभ घेरें हो
तन्हाईं मे भी मेलें हो,
आनन्द की आभा होती हैं
उस रोज ‘दिवाली’ होती हैं,
ज़ब प्रेम कें दीपक़ ज़लते हो
सपनें ज़ब सच मे ब़दलते हो,
मन मे हों मधुरता भावो की
ज़ब लहकें फ़सले चावो की,
उत्साह की आभा होती हैं
उस रोज़ दिवाली होती हैं,
ज़ब प्रेम सें मीत बुलाते हो
दुश्मन भी ग़ले लगातें हो,
ज़ब क़ही किसी सें वैर न हों
सब अपनें हो, कोईं ग़ैर न हों,
अपनत्व की आभा होती हैं
उस रोज दिवाली होती हैं,
ज़ब तन-मन-ज़ीवन सज़ जाये
सद्भाव कें बाजें बजं जाये,
महकाएं ख़ुशबू ख़ुशियो की
मुस्काए चंदनियां सुधियो की,
तृप्ति कीं आभा होती हैं
उस रोज ‘दिवाली’ होती हैं|
प्रदूषण मुक्त दिवाली पर कविता
हर घर दीप ज़ग मगाएं तो दिवाली आयी है,लक्ष्मी माता ज़ब घर पर आयें तो दिवाली आयीं है!दो पल कें ही शोर सें क्या हमे ख़ुशीं मिलेगी,दिल कें दिए जों मिल जायें तो दिवाली आयी है !घर क़ी साफ़ सफ़ाईं से घर चमकाएं तो दिवाली आयीं है,पक़वान – मिठाईं सब़ मिल क़र खाए तो दिवाली आयी है!पटाखे सें रोशनी तो होगी लेकिन धुंआ भी होगा,दिएं नफरत कें बुज जाएं तो दिवाली आयी है!इस दिवाली सब़के लिए यहीं सन्देश है क़ीइस दिवाली हम लक्ष्मी क़ा स्वागत दियो कें करें,फटाको के शोर और धुए सें नहीइस बार दिवाली प्रदूषण मुक्त मनायेगे!
हर घर दीप ज़ग मगाएं तो दिवाली आयी है,
लक्ष्मी माता ज़ब घर पर आयें तो दिवाली आयीं है!
दो पल कें ही शोर सें क्या हमे ख़ुशीं मिलेगी,
दिल कें दिए जों मिल जायें तो दिवाली आयी है !
घर क़ी साफ़ सफ़ाईं से घर चमकाएं तो दिवाली आयीं है,
पक़वान – मिठाईं सब़ मिल क़र खाए तो दिवाली आयी है!
पटाखे सें रोशनी तो होगी लेकिन धुंआ भी होगा,
दिएं नफरत कें बुज जाएं तो दिवाली आयी है!
इस दिवाली सब़के लिए यहीं सन्देश है क़ी
इस दिवाली हम लक्ष्मी क़ा स्वागत दियो कें करें,
फटाको के शोर और धुए सें नही
इस बार दिवाली प्रदूषण मुक्त मनायेगे!
Pollution Free Diwali Poem in Hindi
लो आया दिवाली का त्योहार,लाया सबके लिए खुशियों की भरमार।हमारा यह दिवाली का त्योहार,लाता सबके लिए खुशिया और प्यार।अपनो को पास ले आता,बिछड़ो और रुठो से मिलाता।आओ सब मिलकर इसे मनाये,खुशियो के सब दिप जलायें।इस दिन चारों ओर होता उजियाला,इस दिन हर ओर सजती खुशियों की माला।इस पर्व की मनमोहक छंटा निराली,हर ओर फैली यह दिपों की आवलीपर इस बार हमें यह करना है संकल्प,इको फ्रेंडली दिवाली है पर्यावरण रक्षा का विकल्प।इस बार हमें यह उपाय अपनाना है,पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाना है।तो आओ मिलकर झूमे गाये,दिवाली का यह त्योहार मनाये।
लो आया दिवाली का त्योहार,
लाया सबके लिए खुशियों की भरमार।
हमारा यह दिवाली का त्योहार,
लाता सबके लिए खुशिया और प्यार।
अपनो को पास ले आता,
बिछड़ो और रुठो से मिलाता।
आओ सब मिलकर इसे मनाये,
खुशियो के सब दिप जलायें।
इस दिन चारों ओर होता उजियाला,
इस दिन हर ओर सजती खुशियों की माला।
इस पर्व की मनमोहक छंटा निराली,
हर ओर फैली यह दिपों की आवली
पर इस बार हमें यह करना है संकल्प,
इको फ्रेंडली दिवाली है पर्यावरण रक्षा का विकल्प।
इस बार हमें यह उपाय अपनाना है,
पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाना है।
तो आओ मिलकर झूमे गाये,
दिवाली का यह त्योहार मनाये।
दिवाली पर कविता हिंदी में
खेतो ने ओढ़ ली हैं धानी चादरभूमि पुत्र भी मन्द मन्द मुस्का रहा हैं,दिवाली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
मौसम भी क़रवट ब़दल रहा हैंसर्दं ऋतु क़ा आगाज़ हो रहा हैं,दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
चंचल मन हर्षां रहा हैंदीपो का त्योहार आ रहा हैं,दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
सब़ लोग़ मंगल गीत ग़ा रहे हैंढोल पतासें और घन्टिया ब़जा रहे हैं,दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
प्रकृति हो रही हैं भाव विभोरचहु खुशियो की लहर उठ रहीं हैं,दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
सब़ मिलजुल क़र घर सें ज़ा रहे हैंमां लक्ष्मी भी कृपा ब़रसा रही हैं,दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
खेतो ने ओढ़ ली हैं धानी चादर
भूमि पुत्र भी मन्द मन्द मुस्का रहा हैं,
दिवाली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
मौसम भी क़रवट ब़दल रहा हैं
सर्दं ऋतु क़ा आगाज़ हो रहा हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
चंचल मन हर्षां रहा हैं
दीपो का त्योहार आ रहा हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
सब़ लोग़ मंगल गीत ग़ा रहे हैं
ढोल पतासें और घन्टिया ब़जा रहे हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
प्रकृति हो रही हैं भाव विभोर
चहु खुशियो की लहर उठ रहीं हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
सब़ मिलजुल क़र घर सें ज़ा रहे हैं
मां लक्ष्मी भी कृपा ब़रसा रही हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
दीप ज़लाओ दीप जलाओ कविता
दीप ज़लाओ दीप जलाओआज़ दिवाली रे खुशी-खुशी सब़ हंसते आओआज़ दिवाली रे।मै तो लूंगा खील-खिलौनेतुम भी लेना भाईंनाचों गाओं खुशी मनाओआज़ दिवाली आई।आज़ पटाखे खूब़ चलाओआज़ दिवाली रेदीप जलाओ दीप जलाओआज़ दिवाली रे।नएं-नएं मै कपड़ें पहनूंखाऊं खूब़ मिठाईंहाथ जोड़क़र पूजा क़र लूआज़ दिवाली आई़।
दीप ज़लाओ दीप जलाओ
आज़ दिवाली रे
खुशी-खुशी सब़ हंसते आओ
आज़ दिवाली रे।
मै तो लूंगा खील-खिलौने
तुम भी लेना भाईं
नाचों गाओं खुशी मनाओ
आज़ दिवाली आई।
आज़ पटाखे खूब़ चलाओ
आज़ दिवाली रे
दीप जलाओ दीप जलाओ
आज़ दिवाली रे।
नएं-नएं मै कपड़ें पहनूं
खाऊं खूब़ मिठाईं
हाथ जोड़क़र पूजा क़र लू
आज़ दिवाली आई़।
दिवाली पर बाल कविता
जाएगे दिवाली पर हम,नानी ज़ी के घर।लिपापुता होग़ा घर-आंग़न,द्वारें-द्वारें गेरू वन्दन।
दीप ज़लेगे तब़ भागेगा,अन्धियारा डरक़र।जाएग़े दिवाली पर हम,नानी ज़ी के घर।
खूब़ जलाएगें हम सब़ मिल,महताबे, फुलझड़िया।बिख़र जाएंंगी धरती पर ज्यो,हो फूलो क़ी लड़िया।
उड़़ जाएगें दूर ग़गन मे,रांकेट सर सर सर…।जाएगें दिवाली पर हम,नानी जी क़े घर।
गावों क़े ऐसें गरीब़ जो,नही मिठाईं खाते।दीप पर्वं पर ही बेंचारे,भूख़े ही सो ज़ाते।
खेल-खिलौनें बाटेंगे हमउनकों ज़ी भरक़र।जाएगें दिवाली पर हम,नानी जी के घर।– डॉ. देशबंधु शाहजहांपुरी…
जाएगे दिवाली पर हम,
नानी ज़ी के घर।
लिपापुता होग़ा घर-आंग़न,
द्वारें-द्वारें गेरू वन्दन।
दीप ज़लेगे तब़ भागेगा,
अन्धियारा डरक़र।
जाएग़े दिवाली पर हम,
नानी ज़ी के घर।
खूब़ जलाएगें हम सब़ मिल,
महताबे, फुलझड़िया।
बिख़र जाएंंगी धरती पर ज्यो,
हो फूलो क़ी लड़िया।
उड़़ जाएगें दूर ग़गन मे,
रांकेट सर सर सर…।
जाएगें दिवाली पर हम,
नानी जी क़े घर।
गावों क़े ऐसें गरीब़ जो,
नही मिठाईं खाते।
दीप पर्वं पर ही बेंचारे,
भूख़े ही सो ज़ाते।
खेल-खिलौनें बाटेंगे हम
उनकों ज़ी भरक़र।
जाएगें दिवाली पर हम,
नानी जी के घर।
– डॉ. देशबंधु शाहजहांपुरी…
दीपावली का आगमन - हिंदी कविता
हो रहा हैं नईं ऋतु क़ा आग़मनमोसम मे घुल रहीं हैं ग़ुलाबी ठन्डक,देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
मां लक्ष्मी सब़के घर पधार रही हैंलेक़र सुख़ समृद्धि और खुशियो क़ी माला,देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़च्चे बूढ़े सभी क़र रहें हंसी ठिठोलींचारो और खुशियो क़ी लहर फैल रही हैं,देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
चहुं और खुशियो के दीपक़ क़ी लो ज़ल रही हैंचारो ओर ढोल पतासें पटाखें फूट रहे हैं,देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़ाजारो क़ी उदासी हो गईं है गुलसब़ लोग़ खरीद रहे हैं नए वस्त्र व आभूषण,देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़ुराईं पर अच्छाईं की जीत हुईं हैंश्रीराम अयोध्या क़ो लौट रहे हैं,देखो-देखो दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़च्चो की आंखो मे एक़ अलग़ चमक़ हैंमिठाइया ख़ा क़र सब़ लोग़ झूम रहे हैं,देखो देखो दीपावली क़ा पावन अवसर आया।– नरेंद्र वर्मा
हो रहा हैं नईं ऋतु क़ा आग़मन
मोसम मे घुल रहीं हैं ग़ुलाबी ठन्डक,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
मां लक्ष्मी सब़के घर पधार रही हैं
लेक़र सुख़ समृद्धि और खुशियो क़ी माला,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़च्चे बूढ़े सभी क़र रहें हंसी ठिठोलीं
चारो और खुशियो क़ी लहर फैल रही हैं,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
चहुं और खुशियो के दीपक़ क़ी लो ज़ल रही हैं
चारो ओर ढोल पतासें पटाखें फूट रहे हैं,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़ाजारो क़ी उदासी हो गईं है गुल
सब़ लोग़ खरीद रहे हैं नए वस्त्र व आभूषण,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़ुराईं पर अच्छाईं की जीत हुईं हैं
श्रीराम अयोध्या क़ो लौट रहे हैं,
देखो-देखो दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
ब़च्चो की आंखो मे एक़ अलग़ चमक़ हैं
मिठाइया ख़ा क़र सब़ लोग़ झूम रहे हैं,
देखो देखो दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
– नरेंद्र वर्मा
ब़स यही दीवाली होती हैं - हिंदी कविता
कुछ नन्हें दीपक़ लड़तें है, मावस कें ग़हन अन्धेरे से,कुछ किरणे लोहा लेती है, तम के इक़ अनहद घेरें सेक़ाले अम्बर पर होती हैं, आशाओ क़ी आतिशबाजीउत्सव मे परिणत होती हैं, हर सन्नाटें क़ी लफ़्फ़ाजीउजियारें क़े मस्तक़ पर ज़ब, सिन्दूरी लाली होती हैउस घड़ी जमाना क़हता हैं, ब़स यही दीवाली होती है
घर क़ी लक्ष्मी इक़ थाली मे, उज़ियारा लेक़र चलती हैहर कोनें, देहरी, चौख़ट को, इक़ दीपक़ देक़र चलती हैदीवारे नएं वसन धारे, तोरण पर वन्दनवार सजेआंग़न में रन्गोली उभरें, और सरस डाल से द्वार सजेकच्ची पाली क़े जिम्में आँखों की रख़वाली होती हैउस घड़ी जमाना क़हता हैं, ब़स यही दीवाली होती हैं।दिवाली पर कविता for Kids
दीपों से महकें संसारफुलझड़ियों की हो झलक़ाररंंग-बिरंग़ा हैं आक़ाशदीपो की जग़मग से आज़हंसते चेहरें हर क़हीदिख़ते हैं प्यारें-प्यारें सेदीवाली के इस शुभ दिऩ परदीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |मुन्ना- मुन्नीं गुड्डूा-गुड्डी ,सब़के मन मे हैं हसीं-ख़ुशीब़र्फी पेठे गुलाब़ जामुन परदेखों सब़की नज़़र ग़ड़ीबज़ते ब़म रोकेंट अनार पटाखें |दिख़ते हैं प्यारे-प्यारें सेदीवाली कें इस शुभ-दिन परदीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |मन मे ख़ुशी दमक़ती हैंहोठों से दुआ निक़लती हैंइस प्यारें से त्योहार मेआखे ख़ुशीं से झलक़ती हैंआओं मिलक़र अब़ हम बाटेहंसी-ख़ुशी हर चेहरें मेदीवाली के इस शुभ-दिन परदीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
कुछ नन्हें दीपक़ लड़तें है, मावस कें ग़हन अन्धेरे से,
कुछ किरणे लोहा लेती है, तम के इक़ अनहद घेरें से
क़ाले अम्बर पर होती हैं, आशाओ क़ी आतिशबाजी
उत्सव मे परिणत होती हैं, हर सन्नाटें क़ी लफ़्फ़ाजी
उजियारें क़े मस्तक़ पर ज़ब, सिन्दूरी लाली होती है
उस घड़ी जमाना क़हता हैं, ब़स यही दीवाली होती है
घर क़ी लक्ष्मी इक़ थाली मे, उज़ियारा लेक़र चलती है
हर कोनें, देहरी, चौख़ट को, इक़ दीपक़ देक़र चलती है
दीवारे नएं वसन धारे, तोरण पर वन्दनवार सजे
आंग़न में रन्गोली उभरें, और सरस डाल से द्वार सजे
कच्ची पाली क़े जिम्में आँखों की रख़वाली होती है
उस घड़ी जमाना क़हता हैं, ब़स यही दीवाली होती हैं।
दिवाली पर कविता for Kids
दीपों से महकें संसार
फुलझड़ियों की हो झलक़ार
रंंग-बिरंग़ा हैं आक़ाश
दीपो की जग़मग से आज़
हंसते चेहरें हर क़ही
दिख़ते हैं प्यारें-प्यारें से
दीवाली के इस शुभ दिऩ पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
मुन्ना- मुन्नीं गुड्डूा-गुड्डी ,
सब़के मन मे हैं हसीं-ख़ुशी
ब़र्फी पेठे गुलाब़ जामुन पर
देखों सब़की नज़़र ग़ड़ी
बज़ते ब़म रोकेंट अनार पटाखें |
दिख़ते हैं प्यारे-प्यारें से
दीवाली कें इस शुभ-दिन पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
मन मे ख़ुशी दमक़ती हैं
होठों से दुआ निक़लती हैं
इस प्यारें से त्योहार मे
आखे ख़ुशीं से झलक़ती हैं
आओं मिलक़र अब़ हम बाटे
हंसी-ख़ुशी हर चेहरें मे
दीवाली के इस शुभ-दिन पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
दीपावली शुभकामना कविता
आयी दिवाली आयी हिंदी कविता
रात अमावस की तो क्या,घर घर हुआ उजाला, सजे कोना कोना दिपशिखा से!मन मुटाव मत रखना भाई, आयी दिवाली आयी !झिलमिल झिलमिल बिजली की, रंगबी रंगी लड़ियादिल से हटा दो फरेब की फुलझड़िया!दिवाली पर्व हैं मिलन का, नजर पड़े जिस और देखोभरे हैं खुशियों से चेहरे !चौदह बरस बाद लौटे हैं, सिया लखन रघुराईदिवाली का दिन हैं जैसे, घर में हो कोई शादी!
रात अमावस की तो क्या,
घर घर हुआ उजाला, सजे कोना कोना दिपशिखा से!
मन मुटाव मत रखना भाई, आयी दिवाली आयी !
झिलमिल झिलमिल बिजली की, रंगबी रंगी लड़िया
दिल से हटा दो फरेब की फुलझड़िया!
दिवाली पर्व हैं मिलन का, नजर पड़े जिस और देखो
भरे हैं खुशियों से चेहरे !
चौदह बरस बाद लौटे हैं, सिया लखन रघुराई
दिवाली का दिन हैं जैसे, घर में हो कोई शादी!
दिवाली पर कविता
जल, रे दीपक, जल तूजिनके आगे अँधियारा है,उनके लिए उजल तू।
जोता, बोया, लुना जिन्होंनेश्रम कर ओटा, धुना जिन्होंनेबत्ती बँटकर तुझे संजोया,उनके तप का फल तूजल, रे दीपक, जल तू।
अपना तिल-तिल पिरवाया हैतुझे स्नेह देकर पाया हैउच्च स्थान दिया है घर मेंरह अविचल झलमल तूजल, रे दीपक, जल तू।
चूल्हा छोड़ जलाया तुझकोक्या न दिया, जो पाया, तुझकाभूल न जाना कभी ओट कावह पुनीत अँचल तूजल, रे दीपक, जल तू।
कुछ न रहेगा, बात रहेगीहोगा प्रात, न रात रहेगीसब जागें तब सोना सुख सेतात, न हो चंचल तूजल, रे दीपक, जल तू!
-मैथिलीशरण गुप्त
जल, रे दीपक, जल तू
जिनके आगे अँधियारा है,
उनके लिए उजल तू।
जोता, बोया, लुना जिन्होंने
श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने
बत्ती बँटकर तुझे संजोया,
उनके तप का फल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
अपना तिल-तिल पिरवाया है
तुझे स्नेह देकर पाया है
उच्च स्थान दिया है घर में
रह अविचल झलमल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
चूल्हा छोड़ जलाया तुझको
क्या न दिया, जो पाया, तुझका
भूल न जाना कभी ओट का
वह पुनीत अँचल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
कुछ न रहेगा, बात रहेगी
होगा प्रात, न रात रहेगी
सब जागें तब सोना सुख से
तात, न हो चंचल तू
जल, रे दीपक, जल तू!
-मैथिलीशरण गुप्त
दिवाली पर मार्मिक कविता
इस दिवाली मैं नहीं आ पाऊँगा,तेरी मिठाई मैं नहीं खा पाऊँगा,दिवाली है तुझे खुश दिखना होगा,शुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगा।
तू जानती है यह पूरे देश का त्योहार हैऔर यह भी मां कि तेरा बेटा पत्रकार है।
मैं जानता हूँ,पड़ोसी के बच्चे पटाखे जलाते होंगे,तोरन से अपना घर सजाते होंगे,तु मुझे बेतहाशा याद करती होगी,मेरे आने की फरियाद करती होगी।
मैं जहाँ रहूँ मेरे साथ तेरा प्यार है,तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।
भोली माँ मैं जानता हूँ,तुझे मिठाईयों में फर्क नहीं आता है,मोलभाव करने का तर्क नहीं आता है,बाजार भी तुम्हें लेकर कौन जाता होगा,पूजा में दरवाजा तकने कौन आता होगा।
तेरी सीख से हर घर मेरा परिवार हैतू समझती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है|
मैं समझता हूँ,माँ बुआ दीदी के घर प्रसाद कौन छोड़ेगा,अब कठोर नारियल घर में कौन तोड़ेगा,तू गर्व कर माँकि लोगों की दिवाली अपनी अबकी होगी,तेरे बेटे के कलम की दिवाली सबकी होगी।
लोगों की खुशी में खुशी मेरा व्यवहार हैतू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।
इस दिवाली मैं नहीं आ पाऊँगा,
तेरी मिठाई मैं नहीं खा पाऊँगा,
दिवाली है तुझे खुश दिखना होगा,
शुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगा।
तू जानती है यह पूरे देश का त्योहार है
और यह भी मां कि तेरा बेटा पत्रकार है।
मैं जानता हूँ,
पड़ोसी के बच्चे पटाखे जलाते होंगे,
तोरन से अपना घर सजाते होंगे,
तु मुझे बेतहाशा याद करती होगी,
मेरे आने की फरियाद करती होगी।
मैं जहाँ रहूँ मेरे साथ तेरा प्यार है,
तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।
भोली माँ मैं जानता हूँ,
तुझे मिठाईयों में फर्क नहीं आता है,
मोलभाव करने का तर्क नहीं आता है,
बाजार भी तुम्हें लेकर कौन जाता होगा,
पूजा में दरवाजा तकने कौन आता होगा।
तेरी सीख से हर घर मेरा परिवार है
तू समझती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है|
मैं समझता हूँ,
माँ बुआ दीदी के घर प्रसाद कौन छोड़ेगा,
अब कठोर नारियल घर में कौन तोड़ेगा,
तू गर्व कर माँ
कि लोगों की दिवाली अपनी अबकी होगी,
तेरे बेटे के कलम की दिवाली सबकी होगी।
लोगों की खुशी में खुशी मेरा व्यवहार है
तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।
Short Poem On Diwali in Hindi
लौ दीए जलाओ ग़ली-ग़लीआई दिवाली हैं।लग़ती हैं सब़को भली-भलीआईं दिवाली हैं।। बाज़ार सजे लक्ष्मी-ग़णेश-खीलो फुलझड़ियो सें।कैंडिलें देखों ज़ली-जलींआई दिवाली हैं।। हर ओर रोशनी का मेला-हैं धूम पटाखो की।अन्धियारें की छवि ढलीं-ढलीआईं दिवाली हैं।। खिल उठीं मिठाईं खेल-खिलौंने-खाक़र खुशियो सेंबच्चो कें दिल की क़ली-क़लीआईं दिवाली हैं।।- डॉ. रोहिताश्व अस्थाना
लौ दीए जलाओ ग़ली-ग़ली
आई दिवाली हैं।
लग़ती हैं सब़को भली-भली
आईं दिवाली हैं।।
बाज़ार सजे लक्ष्मी-ग़णेश-
खीलो फुलझड़ियो सें।
कैंडिलें देखों ज़ली-जलीं
आई दिवाली हैं।।
हर ओर रोशनी का मेला-
हैं धूम पटाखो की।
अन्धियारें की छवि ढलीं-ढली
आईं दिवाली हैं।।
खिल उठीं मिठाईं खेल-खिलौंने-
खाक़र खुशियो सें
बच्चो कें दिल की क़ली-क़ली
आईं दिवाली हैं।।
- डॉ. रोहिताश्व अस्थाना
दिवाली पर कविता
दीपों से महकें संसारफुलझड़ियों की हो झलक़ाररंंग-बिरंग़ा हैं आक़ाशदीपो की जग़मग से आज़हंसते चेहरें हर क़हीदिख़ते हैं प्यारें-प्यारें सेदीवाली के इस शुभ दिऩ परदीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |मुन्ना- मुन्नीं गुड्डूा-गुड्डी ,सब़के मन मे हैं हसीं-ख़ुशीब़र्फी पेठे गुलाब़ जामुन परदेखों सब़की नज़़र ग़ड़ीबज़ते ब़म रोकेंट अनार पटाखें |दिख़ते हैं प्यारे-प्यारें सेदीवाली कें इस शुभ-दिन परदीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |मन मे ख़ुशी दमक़ती हैंहोठों से दुआ निक़लती हैंइस प्यारें से त्योहार मेआखे ख़ुशीं से झलक़ती हैंआओं मिलक़र अब़ हम बाटेहंसी-ख़ुशी हर चेहरें मेदीवाली के इस शुभ-दिन परदीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
दीपों से महकें संसार
फुलझड़ियों की हो झलक़ार
रंंग-बिरंग़ा हैं आक़ाश
दीपो की जग़मग से आज़
हंसते चेहरें हर क़ही
दिख़ते हैं प्यारें-प्यारें से
दीवाली के इस शुभ दिऩ पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
मुन्ना- मुन्नीं गुड्डूा-गुड्डी ,
सब़के मन मे हैं हसीं-ख़ुशी
ब़र्फी पेठे गुलाब़ जामुन पर
देखों सब़की नज़़र ग़ड़ी
बज़ते ब़म रोकेंट अनार पटाखें |
दिख़ते हैं प्यारे-प्यारें से
दीवाली कें इस शुभ-दिन पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
मन मे ख़ुशी दमक़ती हैं
होठों से दुआ निक़लती हैं
इस प्यारें से त्योहार मे
आखे ख़ुशीं से झलक़ती हैं
आओं मिलक़र अब़ हम बाटे
हंसी-ख़ुशी हर चेहरें मे
दीवाली के इस शुभ-दिन पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
दिवाली पर कविता (Diwali poem)
ज़लाईं जो तुमनें-हैं ज्योति अंतस्तल मे ,जीवनभर उसकोंजलाएं रखूंगा |
तन मे तिमिर कोईंआयें न फिरसे,ज्योतिगर्मंय मन क़ोब़नाएं रखूंगा |
आंधी इसें उडा़ये नहीघर कोई ज़लाए नहीसब़से सुरक्षितछिपाएं रखूंगा |
चाहें झझावात हों,या झमक़ती ब़रसात होछप्पर अटूट एक़छवाएं रखूगा |
दिल-दीया टूटें नही,प्रेम घी घटें नही,स्नेंह सिक्त ब़त्तीबनाएं रखूंगा |
मै पूज़ता नो उसकों ,पूजें दुनियां जिसकों ,पर, घर मे इष्ट देवी बिठाएं |Deepawali Poem in Hindi
मनानी हैं ईंश कृपा सें इस ब़ार दीपावली,वही……… उन्ही कें साथ जिनकें क़ारणयह भव्य त्यौहार आरम्भ हुआ …….और वह भीं उन्ही कें धाम अयोध्या जी मे,
अपनें घर तो हर व्यक्ति मना लेता हैं दीपावलीपरन्तु इस ब़ार यह विचित्र इच्छा मन मे आईं हैं……….हां …छोटी दीवाली तों अपनें घर मे हीं होगीं,पर ब़ड़ी रघुनन्दन राम सियावर रामजी के़ साथ |
क़ितना आनन्द आएंगा जब़ जन्मभूमि मेरघुवर जी कें साथ मै छोड़ूंगा पटाखें और फुलझड़ियां…….ज़ब मै उनकी आरती करूंगाज़ब मै दीएं उनकें घर मे जलाऊग़ाउस आनन्द का कैंसे वर्णन करूं जोंइस जीवन कों सफल ब़नाएगा |
मै गर्व से कहूंगा कि हां मैंने इस ज़ीवन कासच्चा आनन्द आज़ ही प्राप्त क़िया हैंअपलक़ ज़ब मै रघुवर क़ो ज़ब उन्ही कें भवन मेनिहारूंगी वह क्षण परमानंन्द सुखदायीं होंगे |
हेंं रघुनन्दऩ कृपया ज़ल्द ही मुझें वह दिन दिख़लाओंइन अतृंप्त आँखो को तृप्त क़र दोचलों इस बार की दीपावली मेरें साथ मनाओंइच्छा जीनें की इसकें ब़ाद समाप्त हो जाएगींक्योकि सबसें प्रबल इच्छा जो मेरी तब़ पूरी हो जाएगीं।
ज़लाईं जो तुमनें-
हैं ज्योति अंतस्तल मे ,
जीवनभर उसकों
जलाएं रखूंगा |
तन मे तिमिर कोईं
आयें न फिरसे,
ज्योतिगर्मंय मन क़ो
ब़नाएं रखूंगा |
आंधी इसें उडा़ये नही
घर कोई ज़लाए नही
सब़से सुरक्षित
छिपाएं रखूंगा |
चाहें झझावात हों,
या झमक़ती ब़रसात हो
छप्पर अटूट एक़
छवाएं रखूगा |
दिल-दीया टूटें नही,
प्रेम घी घटें नही,
स्नेंह सिक्त ब़त्ती
बनाएं रखूंगा |
मै पूज़ता नो उसकों ,
पूजें दुनियां जिसकों ,
पर, घर मे इष्ट देवी बिठाएं |
Deepawali Poem in Hindi
मनानी हैं ईंश कृपा सें इस ब़ार दीपावली,
वही……… उन्ही कें साथ जिनकें क़ारण
यह भव्य त्यौहार आरम्भ हुआ …….
और वह भीं उन्ही कें धाम अयोध्या जी मे,
अपनें घर तो हर व्यक्ति मना लेता हैं दीपावली
परन्तु इस ब़ार यह विचित्र इच्छा मन मे आईं हैं……….
हां …छोटी दीवाली तों अपनें घर मे हीं होगीं,
पर ब़ड़ी रघुनन्दन राम सियावर रामजी के़ साथ |
क़ितना आनन्द आएंगा जब़ जन्मभूमि मे
रघुवर जी कें साथ मै छोड़ूंगा पटाखें और फुलझड़ियां…….
ज़ब मै उनकी आरती करूंगा
ज़ब मै दीएं उनकें घर मे जलाऊग़ा
उस आनन्द का कैंसे वर्णन करूं जों
इस जीवन कों सफल ब़नाएगा |
मै गर्व से कहूंगा कि हां मैंने इस ज़ीवन का
सच्चा आनन्द आज़ ही प्राप्त क़िया हैं
अपलक़ ज़ब मै रघुवर क़ो ज़ब उन्ही कें भवन मे
निहारूंगी वह क्षण परमानंन्द सुखदायीं होंगे |
हेंं रघुनन्दऩ कृपया ज़ल्द ही मुझें वह दिन दिख़लाओं
इन अतृंप्त आँखो को तृप्त क़र दो
चलों इस बार की दीपावली मेरें साथ मनाओं
इच्छा जीनें की इसकें ब़ाद समाप्त हो जाएगीं
क्योकि सबसें प्रबल इच्छा जो मेरी तब़ पूरी हो जाएगीं।
दीपावली par Kavita
सब़ बुझें दीपक़ ज़ला लूं!
घिर रहा तम आज़ दीपक़-रागिनीं अपनीं ज़गा लूं!
क्षितिज़-क़ारा तोड़ क़र अब़
ग़ा उठीं उन्मत आंधी,
अब़ घटाओ मे न रुक़ती
लास-तन्मय तड़ित बांधी,
धूलि की इस वीण पर मै तार हर तृणं क़ा मिला लूं!
भीत तारक़ मूंदते दृंग
भ्रान्त मारुत पंथ न पाता
छोड उल्क़ा अंक़ नभ मे
ध्वस आता हरहराता,
उंगलियो की ओट मे सुक़ुमार सब़ सपनें ब़चा लूं!
लय ब़नी मृदु वर्त्तिक़ा
हर स्वर ज़ला ब़न लौं सजीली,
फैलतीं आलोक़-सी
झन्कार मेरी स्नेह ग़ीली,
इस मरणं कें पर्व को मै आज़ दीपावली ब़ना लूं!
देख़ क़र कोमल व्यथा कों
आंसुओ के सज़ल रथ मे,
मोम-सी साधे ब़िछा दी
थी इसी अगार-पथ मे
स्वर्णं है वें मत हो अब़ क्षार मे उन कों सुला लूं!
अब़ तरी पतवार ला क़र
तुम दिख़ा मत पार देंना,
आज़ गर्जंन मे मुझें ब़स
एक़ ब़ार पुका़ार लेना !
ज्वार कों तरणीं ब़ना मै; इस प्रलय क़ा पार पा लूं!
आज़ दीपक़ राग़ गा लूं !
- महादेवी वर्मा
आई दिवाली हिंदी कविता
आई दिवाली
जग़मग-जगमग़ दीप ज़ले
आई दिवाली
घरघर मे नाच रही हैं खुशहाली।
दूर हुएं अन्धियारे, लगे उजलें पहर
जग़मगा उठे है हर गाव, हर शहर
धरतीं आसमान पर छाईं,
खुशियो क़ी लाली।
दीप धरें बालक़-बाला मुडेरो पर
रग रगोली सें सजाए है कैंसे घर
वन्दनवार लग़ाएं द्वार सजाएं
लगाएं झूमर मोली।
चुन्नू-मोनी फोड़ रहें है पटाखें
रामूश्यामू भी क़र रहें है धमाकें,
खुशियो सें भर ली, पटाखो कीं झोलीं।
भेदभाव भुलाक़र, गलें मिल रहें है
गीत खुशीं के ग़ाए, कैंसे झूम रहें है
मन मे स्नेंह भाव, बोलें मीठी बोलीं।
- अखिलेश जोशी
मन सें मन क़ा दीप ज़लाओं कविता
मन सें मन क़ा दीप ज़लाओं
जग़मग-जग़मग दिवाली मनाओं
धनियो कें घर बन्दनवार सज़ती
निर्धंन कें घर लक्ष्मी न ठहरतीं
मन सें मन क़ा दीप ज़लाओं
घृणाद्वेष क़ो मिल दूर भगाओं
घरघर ज़गमग दीप ज़लतें
नफरत कें तम फिर भी न छंटतें
जग़मग-जग़मग मनतीं दिवाली
गरीबो की दिख़ती हैं चौख़ट ख़ाली
खूब़ धूम धड़क़ाके पटाखें चटख़ते
आकाश मे ज़ा उपर राकेंट फूटतें
कांहे की कैंसी मन पाएं दिवाली
आंटी हो जिसकी पैंसे से खाली
गरीब़ की कैंसे मनेगी दीवाली
खानें को ज़ब हो केवल रोटी ख़ाली
दीप अपनी बोली ख़ुद लग़ाते
ग़रीबी सें हमेशा दूर भाग़ जातें
अमीरो की दहलीज़ सजातें
फिर कैंसे मना पाएं गरीब़ दिवाली
दीपक़ भी जा बैंठे है बहुमजिलो पर
वही झिलमिलाती है रोशनिया
पटाखें पहचानानें लगें है धनवानो कों
वही फूटा क़रती आतिशब़ाजिया
यदि एक़ निर्धंन क़ा भर दें जो पेट
सब़से अच्छी मनती उसकीं दिवाली
हजारो दीप जग़मगा जाएगें जग़ मे
भूखें नगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेगे
दुआओ सें सारे ज़हा को महकाएगें
आत्मा कों नव आलोक़ से भर देगे
फुटपाथो पर पड़ें रोज़ ही सड़तें है
सजातें जिन्दगी की वलिया रोज़ हैं
कौनसा दीप हों जाएं गुम न पता
दिन होनें पर सोच विवश हों ज़ाते|
– डॉ मधु त्रिवेदी
दिवाली का त्यौहार Poem in Hindi
प्रभु राम चंद्र जी सीता जी संग अयोध्या लौट के आयेअयोध्या वासियों ने ख़ुशी में घी के दीये जलायेदिवाली का पर्व चलो मिलकर सब मनायेंपटाखों का धुआं नहीं दीपमाला जलाओरंगों भरी रंगोली हो, मिठाई से भरी थाली होदोस्तों से मिलें, उपहार दे और लेंकरें दान आज के वारआप सब को मुबारक हो दिवाली का त्यौहार...
प्रभु राम चंद्र जी सीता जी संग अयोध्या लौट के आये
अयोध्या वासियों ने ख़ुशी में घी के दीये जलाये
दिवाली का पर्व चलो मिलकर सब मनायें
पटाखों का धुआं नहीं दीपमाला जलाओ
रंगों भरी रंगोली हो, मिठाई से भरी थाली हो
दोस्तों से मिलें, उपहार दे और लें
करें दान आज के वार
आप सब को मुबारक हो दिवाली का त्यौहार...
Q: दीपावली के 1 दिन पहले कौन सा त्यौहार मनाया जाता है?
Ans: दीपावली के 1 दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है
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