हिंदू विवाह के उद्देश्य (Hindu Vivah ke Uddeshya) धार्मिक कर्तव्यों का पालन पुत्र - प्राप्ति, यौन सम्बन्धों की पूर्ति, परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों
हिंदू विवाह के कोई पांच उद्देश्य लिखिए
- हिंदू विवाह के उद्देश्यों को समझाइये।
- हिंदू विवाह के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं ?
हिंदू विवाह के उद्देश्य (Hindu Vivah ke Uddeshya)
1. धार्मिक कर्तव्यों का पालन - हिंदू विवाह का सबसे प्रमुख उद्देश्य धार्मिक कर्तव्यों का पालन है। प्रत्येक हिंदू पुरुष के अपने जीवन में कुछ धार्मिक कर्तव्य होते हैं। जिन्हें निभाने के लिए पत्नी की आवश्यकता होती है। इसलिए विवाह न केवल आवश्यक है बल्कि अनिवार्य भी है। इन धार्मिक कर्तव्यों का दूसरा नाम पांच प्रकार के यज्ञ - ब्रह्मयज्ञ, भूतयज्ञ, पितयज्ञ, देवयज्ञ और अतिथि यज्ञ हैं। इन पाँचों यज्ञों को पूरा करने में पत्नी की आवश्यकता इसलिए भी होती है क्योंकि वेदों का आदेश है कि धार्मिक क्रियायें पुरुष को अपनी पत्नी के साथ ही मिलकर करनी चाहिए। इस प्रकार स्पष्ट है कि हिन्दू विवाह का प्रमुख उद्देश्य धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना है।
2. पुत्र - प्राप्ति - हिंदू विवाह का दूसरा उद्देश्य पुत्र प्राप्ति है। ऋग्वेद में 'पुत्र' की आंकाक्षा को अनेक स्थानों पर बड़ी तीव्रता से अभिव्यक्त किया गया है। विवाह के मन्त्रों में वर-वधू से कहता है कि मैं उत्तम सन्तान प्राप्त करने के लिए तुमसे विवाह कर रहा हूँ। पुरोहित तथा अन्य गुरुजन भी अपने आशीर्वाद में इसी इच्छा को प्रकट करते हैं। हिन्दुओं में पुत्र सन्तान का अधिक महत्व इस कारण है क्योंकि इसके द्वारा पितृ ऋण से अऋण होना तथा समाज की निरन्तरता सम्भव होती है। पुत्र तर्पण व पिण्डदान के द्वारा पितरों को नरक से बचाता है तथा उन्हें शान्ति प्रदान करता है।
3. यौन सम्बन्धों की पूर्ति - हिंदू विवाह का तीसरा उद्देश्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तरीके से यौन सम्बन्धों की पूर्ति करना है। समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तरीके से घर बसाना और यौन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पर्ति करना न केवल हिन्दू विवाह का बल्कि सभी समाजों में विवाह का उद्देश्य हआ करता है। यौन इच्छाओं की पूर्ति हिन्दू विवाह का एक सामान्य उद्देश्य माना जाता है। साथ ही हिन्दू धर्मशास्त्रों ने जहाँ एक ओर इसे मानव जीवन के लिए आवश्यक माना है, वहीं दूसरी ओर यह नियंत्रण भी लगाया कि पत्नी के अतिरिक्त अन्य किसी भी स्त्री से सम्भोग नहीं करना चाहिए और सम्भोग का मुख्य उद्देश्य उत्तम धार्मिक सन्तान की उत्पत्ति होना चाहिए। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि हिन्दू आदर्श के अनुसार यौन सम्बन्ध विवाह का तीसरा और कम महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
किसी पुरुष से विवाह होने के पश्चात उसमें कमियाँ होने पर भी दूसरे पुरुष का विचार न किया जाये। इसी प्रकार, सतीत्व का आदर्श यह है कि 'पत्नी अपनी सत्ता को पति में पूर्ण रूप से विलीन कर दें और पति को हर दशा में देवता समझे।
4. परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन - विवाह का एक अन्य उद्देश्य विवाह के द्वारा अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना है। बूढ़े माता-पिता के प्रति जो कर्तव्य या उनकी सेवा करने का जो उत्तरदायित्व हिन्दू समाज सन्तानों पर लादता है, उसे पूरा करने के लिए विवाह करना अति आवश्यक है।
5. समाज के प्रति कर्तव्यों का पालन - समाज के प्रति कर्तव्यों का पालन भी विवाह के द्वारा ही सम्भव हो सकता है। समाज या वंश की निरन्तरता को बनाये रखने के लिए विवाह करना अत्यन आवश्यक है, क्योंकि विवाह के द्वारा उत्पन्न सन्तानें मृत व्यक्तियों के खाली स्थान को भरती हैं।
6. व्यक्तित्व का विकास - विवाह स्त्री और पुरुष के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी आवश्यक है। मनु के अनुसार, पुरुष वही पूर्ण है जिसकी पत्नी और बच्चे हों। वह पुरुष वास्तव में आधा है जो एक पत्नी पर विजय नहीं पाता और वह तब तक सम्पूर्ण पुरुष नहीं है जब तक एक सन्तान को उत्पन्न नहीं करता है। स्त्री और पुरुष इस रूप में एक-दूसरे के परक हैं और एक-दूसरे के व्यक्तित्व के विकास में सहायक होते हैं।
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