भारतीय संसद की संरचना का वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये। भारतीय संसद की संरचना द्विसदनीय है। भारत की संघीय विधायिका को संसद कहा जाता ह
भारतीय संसद की संरचना का वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
- भारतीय संसद की संरचना से आप क्या समझते हैं ?
- भारतीय संसद की शक्तियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- क्या भारत का राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है, टिप्पणी कीजिए ?
- संसद की विधायी शक्तियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- संसद की कार्यपालिका शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- संसद की वित्तीय शक्तियों पर संक्षेप में प्रकाश डालें।
- संसद की संविधान संशोधन की शक्ति का वर्णन कीजिए!
संसद की संरचना
भारतीय संसद की संरचना द्विसदनीय है। भारत की संघीय विधायिका को संसद कहा जाता है। जब विधायिका के दो सदन होते हैं तो ऐसी विधायिका को द्विसदनीय विधायिका कहा जाता है। भारतीय संसद भी द्विसदनीय विधायिका का उदाहरण है क्योंकि इसके भी दो सदन है। एक - राज्यसभा, जिसे उच्च सदन कहते हैं। यह राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। दूसरा, लोकसभा, जिसे निम्न सदन कहते हैं। लोकसभा को प्रतिनिधि सदन या लोकप्रिय सदन भी कहा जाता है क्योंकि यह जनता का प्रतिनिधित्व करता है।
भारतीय संसद के कार्य एवं शक्तियाँ
भारतीय संसद को अत्यन्त व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए संसद द्वारा निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं -
- विधायी कार्य
- कार्यपालिकीय शक्तियाँ
- वित्तीय शक्तियाँ
- संविधान संशोधन की शक्तियाँ
- विदेशी मामलों से सम्बद्ध कार्य
- अन्य कार्य
1. विधायी कार्य - संसद का सर्वप्रमुख कार्य कानून का निर्माण करना है। संसद को सातवीं अनुसूची में वर्णित संघ सूची एवं समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर कानून निर्माण का अधिकार है तथा संघ राज्य क्षेत्रों के लिए विधि निर्माण कार्य भी संसद द्वारा ही किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्य सभा अपने 2/3 बहुमत से राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे तो संसद को ऐसे विषय पर विधि निर्माण की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
2. कार्यपालिकीय शक्तियाँ - संसद का एक प्रमुख कार्य मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण रखना है। चूंकि संसद के अंतर्गत जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि रहते हैं तथा मंत्रिपरिषद का निर्माण संसद सदस्यों से ही किया जाता है।
3. वित्तीय शक्तियाँ - संसद राष्ट्रीय वित्त पर पूर्ण नियंत्रण रखती है। संसद की स्वीकृति के बिना सरकार न तो आय कर लगा सकती है और न ही व्यय कर ही लगा सकती है। सरकार का वार्षिक आयव्यय का विवरण (बजट) संसद में ही पेश किया जाता है तथा उसे पारित करने का कार्य भी संसद करती है।
4. संविधान संशोधन की शक्तियाँ - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान में संशोधन का कार्य संसद के द्वारा ही किया जा सकता है। भारतीय संसद द्विसदनीय है। राज्य सभा तथा लोकसभा, संविधान संशोधन के सम्बन्ध में राज्यसभा तथा लोकसभा की स्थिति समान है। क्योंकि संविधान संशोधन विधेयक (अनुच्छेद 109 के तहत वित्त विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं) दोनों में से किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं और उन्हें तभी पारित समझा जायेगा जबकि उन्हें संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपने कुल बहमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दें। कुछ प्रावधान ऐसे हैं जिनमें संशोधन करने के लिए राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति लेनी पड़ती है शेष सभी प्रावधानों में संसद को स्वयं ही संशोधन करने का अधिकार रखती है। यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद को यह अधिकार नहीं प्राप्त है कि वह संविधान के मूल ढाँचे या आधारभूत स्वरूप को ही बदल दे अथवा नष्ट कर दे।
5. विदेशी मामलों से सम्बद्ध कार्य - विदेशी मामलों से संबंधित अनेक कार्य संसद द्वारा संपादित किये जाते हैं। विदेशी राष्ट्रों के साथ पारस्परिक संबंधों का निर्धारण, युद्ध एवं शान्ति की घोषणा तथा विभिन्न सन्धियों का संपादन यद्यपि मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है, किन्तु जब तक संसद द्वारा इन कार्यों का अनुमोदन नहीं कर दिया जाता, उन्हें लागू नहीं किया जा सकता।
6. अन्य कार्य - संसद द्वारा अन्य विविध कार्य भी किये जाते हैं, जो निम्न प्रकार हैं -
- संसद राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है।
- संविधान को संशोधित करने का कार्य संसद द्वारा ही किया जाता है।
- संसद उच्च एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव लाकर उन्हें पदच्युत भी कर सकती है।
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