किस्मत का खेल हिंदी कहानी : इस लेख में हम पढ़ेंगे किस्मत का खेल हिंदी कहानी जिसमें हम जानेंगे की प्रत्येक व्यक्ति को उतना ही मिलता है जितन...
किस्मत का खेल हिंदी कहानी : इस लेख में हम पढ़ेंगे किस्मत का खेल हिंदी कहानी जिसमें हम जानेंगे की प्रत्येक व्यक्ति को उतना ही मिलता है जितना ईश्वर ने उसके भाग्य में दिया। Kismat ka Khel Hindi Kahani यह कहानी हमें स्वयं पर घमंड न करने की शिक्षा देती है।
किस्मत का खेल हिंदी कहानी Kismat ka Khel Hindi Kahani For Kids and Students
अत्यन्त प्राचीनकाल में दक्षिण दिशा में एक राज्य था। वहां देवशक्ति नामक एक राजा राज्य करता था। उसका एक ही पुत्र था। उसके पेट में एक सर्प ने निवासस्थान बना रखा था। उस उदरस्थ सर्प के कारण वह दिन-प्रतिदिन दुर्बल होता जा रहा था। अनेक वैद्यों की चिकित्सा से निराश होकर राजा ने जब हार मान ली, तो राजकुमार भी निराश होकर एक दिन चुपचाप विदेश चला गया। वह उस अपरिचित देश में भिक्षाटन करके अपनी क्षुधा शान्त करता था और एक देवालय में जाकर सो जाता था।
उस देश का राजा बालिदत्त दो कन्याओं का पिता था। दोनों अद्वितीय रूपसी एवं शालीन युवतियां थीं। प्रतिदिन प्रातःकाल दोनों अपने पिता के चरण स्पर्श करती थीं। बड़ी राजकुमारी रुक्मिणी प्रणाम के पश्चात् कहती थी-“महाराज की जय हो। मैं आपकी आभारी हूं, क्योंकि आपकी कृपा से मुझे संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं।” किन्तु छोटी राजकुमारी पमिनी सदा चरण स्पर्श के समय चुप रहा करती थी।
एक दिन बालिदत्त ने पमिनी से पूछा-“बेटी ! तू प्रणाम करते समय सदा चुप क्यों रहती हैं ?” “पिताजी!” पमिनी ने दृष्टि झुकाते हुए सलज्ज भाव में कहा-“मैं उस ईश्वर को मन ही मन धन्यवाद देती हैं जिसकी कृपा से आप राजा हैं। और मैं राजकुमारी वर्ना इस संसार में हम भी कहीं मजदूरी कर रहे होते।” यह सुनते ही बालिदत्त क्रोध से बोला-“यह राज्य हमने ईश्वर की कृपा से नहीं, अपनी योग्यता से प्राप्त किया है। इसको बनाये रखने में मेरा पुरुषार्थ कार्य कर रहा है, ईश्वर की कृपा नहीं।”
“पिताजी! पुरुषार्थ भी भाग्य के प्रभाव से ही फल देता है और भाग्य का निर्धारण मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों के द्वारा होता है। ईश्वर की कृपा न हो और कर्मफल सशक्त न हो; तो पुरुषार्थ भी निष्फल हो जाता है।” पद्मिनी ने विनम्र स्वर में कहा। “अच्छी बात है। इसकी भी परीक्षा हो जायेगी।” राजा ने क्रोधित होकर अपने राज्य कर्मचारियों से कहा-“इस कटुभाषिणी कन्या का विवाह किसी भिखमंगे से कर दो ताकि इसके कथन की परीक्षा हो सके।
राज्य कर्मचारियों ने राजा की आज्ञा से पदमिनी के लिए किसी भिक्षुक की खोज प्रारम्भ कर दी। एक दिन उन्होंने उस भिक्षुक राजकुमार को पकड़ लिया और राजदरबार में ले गये। राजा ने उसी से पद्मिनी का विवाह तय कर दिया। यह देखकर रुक्मिणी ने उपहास उड़ाते हुए कहा-“व्यर्थ की बातें करके तमने पिताश्री को क्रोधित कर दिया। अब भी समय है। तु उनसे क्षमा मांग ले। क्या तुझे इतना भी पता नहीं कि किसी शक्तिशाली या अपने किसी गुरुजन की भावनाओं को चोट पहुंचाना उचित नहीं है ?"
“शक्ति से भयभीत होकर, श्रद्धा से मूक होकर, अपने सुख की लालसा में या अपनी सम्भावित हानि से घबराकर जो व्यक्ति सत्य का दामन छोड़ देते हैं, उनसे ईश्वर भी विमुख हो जाते हैं। गुरुजनों के प्रति श्रद्धा और विनम्रता का यह अर्थ नहीं है कि उनके अहंकार, उनकी अज्ञानता और उनके अविवेक का भी समर्थन किया जाये। मेरे भाग्य में यदि भीख मांगना ही लिखा है, तो उसे कौन रोक सकता है ?"
रुक्मिणी कुढ़कर रेह गयी। पमिनी का विवाह उसी भिक्षुक राजकुमार से हो गया। राजा ने उसे दो-चार सेवक एवं कुछ धन दे दिया। राजकुमारी पद्मिनी प्रसन्नता से अपने पति के साथ दूसरे राज्य की ओर चल पड़ी। मार्ग में एक जलाशय था। उसके तट पर विशाल वटवृक्ष था। राजकुमारी ने पति को वहीं विश्राम करने के लिए कहा और भृत्यों को भोजन बनाने का निर्देश दिया। इसके पश्चात् वह स्नान करने चली गयी।
पद्मिनी जब स्नान करके वापस आयी, तो उसने देखा कि उसका पति एकान्त में सोया हुआ है। भृत्य कुछ दूरी पर भोजन बना रहे हैं। राजकुमार के मुख से एक सर्प अपना फन बाहर निकाले ताजी हवा का आनन्द ले रहा था। समीप ही एक बिल से भी एक भयानक सर्प फन बाहर निकाले घूम रहा था। दोनों क्रोधित भाव से एक-दूसरे को देखते हुए बहस कर रहे थे। बिल वाले सर्प ने कहा--"अरे दुष्ट! तू इस सुकुमार सुन्दर राजकुमार का जीवन क्यों नष्ट कर रहा है ?”
“तूने भी तो अपने बिल के अन्दर के विशाल खजाने को दूषित कर रखा है?“तुझे तो मैंने कुछ नहीं कहा ?” मुख वाले सर्प ने कहा। “मुझे तो महाराज भोज को अपने पूर्वजों द्वारा दिया गया वचन निभाना है। इस खजाने की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है।” "हूं.... तू क्या रक्षा करेगा ? कोई व्यक्ति तेरे बिल में मात्र दो वाल्टी गरम खौलता हुआ पानी डाल दे, तो तू मर जायेगा और खजाना भी उसका हो जायेगा। कोई इस रहस्य को नहीं जानता, इसलिए तू अब तक जीवित है।” तू भी तो इसी कारण जीवित है मूर्ख कि तेरा रहस्य कोई नहीं जानता लेकिन जिस दिन किसी को ज्ञात हो गया कि पुरानी कांजी और राई का काढ़ा बनाकर इस राजकुमार को गर्म-गर्म पिलाने से तू मर जायेगा, उसी दिन तेरी दुष्टता भी समाप्त हो जायेगी।”
राजकन्या यह जानकर विस्मित हो उठी कि उसका पति किसी देश का राजकुमार है। उसने एक भृत्य को भेजकर गांव से पुरानी कांजी और राई मंगवायी, फिर उसका काढ़ा बनाकर राजकुमार को पिला दिया। इसके पश्चात् उसने बड़े टोकने में पानी खौलाकर उस बिल में डाल दिया। दोनों सर्प तड़पते हुए बाहर निकले और मर गये। राजकुमारी ने वह स्थान खुदवाया, तो वहां इतना स्वर्ण और जवाहरात निकला, जिससे दस राज्यों को वैभवशाली बनाया जा सकता था। तभी राजकुमार ने स्थान को पहचानते हुए कहा कि वह उसका राज्य है। राजकुमारी ने एक भृत्य को राजा के यहां भेजा, तो वह प्रसन्नता से अपने पुत्र एवं पुत्रवधु को साथ ले गया। बालिदत्त को सूचना मिली तो उसने लज्जित होकर पुत्री से क्षमा मांग ली।
रहस्य ही सुरक्षा है, अजेय से अजेय दुर्ग भी गोपनीयता भंग होने पर विजित किये जा सकते हैं।
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