श्रीराम शर्मा जी का जीवन परिचय Shri Ram Sharma Biography : Writer of Smriti श्रीराम शर्मा केवल एक व्यक्ति ही नहीं थे, वे एक संस्था भी ...
श्रीराम शर्मा जी का जीवन परिचय Shri Ram Sharma Biography : Writer of Smriti
श्रीराम शर्मा केवल एक व्यक्ति ही नहीं थे, वे एक संस्था भी थे, जिससे परिचित होना हिंदी साहित्य के गौरवशाली अध्याय से परिचित होना है। स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी पं० श्रीराम शर्मा ने शुक्लोत्तर युग में लेखन कार्य करते हुए पत्रकारिता के क्षेत्र में उपलब्धि हासिल की। सर्वप्रथम आपको रेखाचित्र लेखक होने का गौरव प्राप्त है।
जीवन परिचय— शिकार-साहित्य के प्रणेता पं० श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में मक्खनपुर के समीप किरथरा नामक गाँव में 1896 ई० को हुआ था। अपनी प्रारंभिक शिक्षा इन्होंने मक्खनपुर में ही की थी। इसके बाद इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये बचपन से ही साहसी और आत्मविश्वासी थे। देशप्रेम की भावना इनके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई थी। कुछ अवसरों पर इन्होंने अपने गुणों का परिचय भी दिया था। ये शिकार-साहित्य के सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखक हैं। वास्तव में इनका इस दिशा में किया गया लेखन सर्वप्रथम किन्तु सफल प्रयास था। महात्मा गाँधी के साथ असहयोग-आंदोलन में भाग लेने वाले तथा महान् देशभक्त श्रीराम शर्मा लंबी बीमारी के चलते सन् 1967 में सदा के लिए इस संसार से विदा हो गए।
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साहित्यिक सेवाएँ— श्रीराम शर्मा ने आरंभ में शिक्षण का कार्य किया परंतु उनका झुकाव लेखन और पत्रकारिता की तरफ था। श्रीराम जी ने लंबे समय तक ‘विशाल भारत’ पत्रिका का संपादन किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने श्री गणेश शंकर के दैनिक पत्र ‘प्रताप’ में भी सह-संपादक के रूप में कार्य किया। हिंदी साहित्य में शिकार-साहित्य का प्रारंभ इन्हीं के द्वारा हुआ है। शिकार-साहित्य से संबंधित लेखों में घटना विस्तार के साथ-साथ पशुओं के मनोविज्ञान का सम्यक् परिचय देते हुए इन्होंने उन्हें पर्याप्त रोचक बनाने में सफलता प्राप्त की है। इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। श्रीराम शर्मा जी की रचनाआें में सेवाग्राम की डायरी, सन् बयालीस के संस्मरण, जंगल के जीव, प्राणों का सौदा, बोलती प्रतिमा, शिकार आदि प्रमुख हैं। जीवनी, संस्मरण व शिकार साहित्य आदि विधाओं पर लेखनी चलाने वाले श्रीराम शर्मा साहित्य जगत में अपनी उपलब्धियों के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे।
भाषा-शैली— श्रीराम शर्मा की भाषा सहज, सरल, बोधगम्य एवं प्रवाहगम्य है। भाषा की दृष्टि से इन्हें प्रेमचंद के निकट कहा जा सकता है। अपनी भाषा को सरल बनाने के लिए इन्होंने उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी एवं लोक-प्रचलित शब्दों का भी यथास्थान प्रयोग किया है। मुहावरों व लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा में और भी अधिक रोचकता व व्यावहारिकता उत्पन्न हुई है।
इनकी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते हैं–
(अ) चित्रात्मक शैली— इस शैली के माध्यम से इन्होंने अपने बचपन के दिनों और शिकार की घटनाओं पर आधारित चित्र प्रस्तुत किए हैं।
(ब) आत्मकथात्मक शैली— शर्मा जी ने इस शैली का प्रयोग अपने संस्मरण-साहित्य में किया हैं। ‘सन बयालीस के संस्मरण’ और ‘सेवाग्राम की डायरी’ में इस शैली का प्रयोग है।
(स) वर्णनात्मक शैली— शर्मा जी ने इस शैली का प्रयोग शिकार-साहित्य में किया है। इस शैली की भाषा सरल और सुबोध है।
(द) विवेचनात्मक शैली— गंभीर और विचारपूर्ण निबंधों में शर्मा जी ने इस शैली का प्रयोग किया है। इसमें संस्कृतनिष्ठ एवं अपेक्षाकृत बड़े वाक्यों का प्रयोग हुआ है।
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