महाराणा प्रताप का जीवन परिचय ( इतिहास ) Maharana Pratap Biography in Hindi : महाराणा प्रताप का नाम हमारे देश के इतिहास में महान देशभक्त के रूप में आज भी अमर है । महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के उदयपुर नगर में हुआ था। बचपन से ही उनमें वीरता कूट-कूट कर भरी थी। गौरव, सम्मान, स्वाभिमान व स्वतंत्रता के संस्कार उन्हें पैतृक रूप में मिले थे। राणा प्रताप का व्यक्तित्व ऐसे अपराजेय पौरुष तथा अदम्य साहस का प्रतीक बन गया है कि उनका नाम आते ही मन में स्वाभिमान, स्वातंत्र्य-प्रेम तथा स्वदेशानुराग के भाव जाग्रत हो जाते हैं।
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय ( इतिहास ) Maharana Pratap Biography in Hindi
नाम
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महाराणा प्रताप
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जन्म
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9 मई 1540
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जन्म स्थान
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उदयपुर, मेवाड
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पिता का नाम
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राणा उदयसिंह
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माता का नाम
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जयवंता बाई
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मृत्यु
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19 जनवरी 1597
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"मेवाड़ की सारी सेना छिन्न-भिन्न हो चुकी थी । धन सम्पत्ति कुछ भी नहीं बचा था। सेना को संगठित करने हेतु तथा मुगल सैनिकों से अपने को बचाने के लिए वह राजपुरुष परिवार सहित जंगल में भटक रहा था। पूरे परिवार ने कई दिनों से खाना नहीं खाया था। पास में थोड़ा आटा था। उनकी पत्नी ने रोटियाँ बनाई। सभी खाने की तैयारी कर रहे थे तभी एक जंगली बिलाव रोटियाँ उठा ले गया। पूरा परिवार भूख से छटपटाता रह गया। भूख से बच्चों की हालत गंभीर हो रही थी। ऐसी दशा देखकर पत्नी ने पुनः घास की रोटियाँ बनाई जिन्हें खाकर पूरे परिवार ने अपनी भूख शान्त की।"
त्याग, बलिदान, निरन्तर संघर्ष और स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में देशवासी जिस महापुरुष को सदैव याद करते हैं, उनका नाम है ‘महाराणा प्रताप’। उन्होंने आदर्शों, जीवन मूल्यों एवं स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दिया। इसी कारण महाराणा प्रताप का नाम हमारे देश के इतिहास में महान देशभक्त के रूप में आज भी अमर है । महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के उदयपुर नगर में हुआ था। बचपन से ही उनमें वीरता कूट-कूट कर भरी थी। गौरव, सम्मान, स्वाभिमान व स्वतंत्रता के संस्कार उन्हें पैतृक रूप में मिले थे। राणा प्रताप का व्यक्तित्व ऐसे अपराजेय पौरुष तथा अदम्य साहस का प्रतीक बन गया है कि उनका नाम आते ही मन में स्वाभिमान, स्वातंत्र्य-प्रेम तथा स्वदेशानुराग के भाव जाग्रत हो जाते हैं।
अकबर की महत्वाकांक्षा
मुगल सम्राट अकबर एक महत्वाकांक्षी शासक था। वह सम्पूर्ण भारत पर अपने साम्राज्य का विस्तार चाहता था। उसने अनेक छोटे-छोटे राज्यों को अपने अधीन करने के बाद मेवाड़ राज्य पर चढ़ाई की। उस समय मेवाड़ में राणा उदय सिंह का शासन था। राणा उदय सिंह के साथ युद्ध में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ सहित राज्य के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया। राणा उदय सिंह ने उदयपुर नामक नई राजधानी बसाई। 1572 ई0 में प्रताप के शासक बनने के समय राज्य के सामने बड़ी संकटपूर्ण स्थिति थी। शक्ति और साधनों से सम्पन्न आक्रामक मुगल सेना से मेवाड़ की स्वतंत्रता और परम्परागत सम्मान की रक्षा का कठिन कार्य प्रताप के साहस की प्रतीक्षा कर रहा था।
महाराणा व अकबर में संघर्ष
अकबर की साम्राज्य विस्तार की लालसा तथा राणा प्रताप की स्वातंत्र्य-रक्षा के दृढ़ संकल्प के बीच संघर्ष होना स्वाभाविक था। अकबर ने राणा प्रताप के विरुद्ध ऐसी कूटनीतिक व्यूह रचना की थी कि उसे मुग़ल सेना के साथ ही मान सिंह के नेतृत्व वाली राजपूत सेना से भी संघर्ष करना पड़ा। इतना ही नहीं, राणा का अनुज शक्ति सिंह भी मुग़ल सेना की ओर से युद्ध में सम्मिलित हुआ। ऐसी विषम स्थिति में भी राणा ने साहस नहीं छोड़ा और अपनी छोटी सी सेना के साथ हल्दीघाटी में मोर्चा जमाया। हल्दीघाटी युद्ध में मुग़ल सेना को नाकों चने चबाने पड़े। राणा के संहारक आक्रमण से मुगल सेना की भारी क्षति हुई, किन्तु विशाल मुग़ल सैन्य शक्ति के दबाव से घायल राणा को युद्ध-भूमि से हटना पड़ा।
इस घटना से सरदार झाला, राणा के प्रिय घोड़े चेतक और अनुज शक्ति सिंह को विशेष प्रसिद्धि मिली। सरदार झाला ने राणा को बचाने के लिए आत्म बलिदान किया। उसने स्वयं राणा का मुकुट पहन लिया, जिससे शत्रु झाला को ही राणा समझकर उस पर प्रहार करने लगे। घोड़े चेतक ने घायल राणा को युद्ध-भूमि से बाहर सुरक्षित लाकर ही अपने प्राण त्यागे तथा शक्ति सिंह ने संकट के समय में राणा की सहायता कर अपने पहले आचरण पर पश्चाताप किया।हल्दी घाटी का युद्ध भारतीय इतिहास की प्रसिद्ध घटना है। इससे अकबर और राणा के बीच संघर्ष का अंत नहीं हुआ वरन् लम्बे संघर्ष की शुरुआत हुई। राणा प्रताप ने समय और परिस्थितियों के अनुसार अपनी युद्ध नीति को बदला तथा शत्रु सेना का यातायात रोक कर और छापामार युद्ध की नीति अपनाकर मुग़ल सेना को भारी हानि पहँुचाई। इससे मुग़ल सेना के पैर उखड़ने लगे। धीरे-धीरे राणा ने चित्तौड़, अजमेर तथा मंडलगढ़ को छोड़कर मेवाड़ का सारा राज्य मुग़लों के अधिकार से मुक्त करा लिया।
बीस वर्षों से अधिक समय तक राणा प्रताप ने मुग़लों से संघर्ष किया। इस अवधि में उन्हें कठिनाइयों तथा विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। सारे किले उनके हाथ से निकल गये थे। उन्हें परिवार के साथ एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर भटकना पड़ा। कई अवसरों पर उनके परिवार को जंगली फलों से ही भूख शान्त करनी पड़ी, फिर भी राणा प्रताप का दृढ़ संकल्प हिमालय के समान अडिग और अपराजेय बना रहा। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं मुग़लों की अधीनता कदापि स्वीकार नहीं करुँगा और जब तक चित्तौड़ पर पुनः अधिकार न कर लूँगा तब तक पत्तलों पर भोजन करुँगा और जमीन पर सोऊँगा। उनकी इस प्रतिज्ञा का मेवाड़ की जनता पर व्यापक प्रभाव पड़ा और वह संघर्ष में राणा के साथ जुड़ी रही।
भामाशाह का संपत्ति दान और महाराणा प्रताप की मृत्यु
संकट की इस घड़ी में मेवाड़ की सुरक्षा के लिए उनके मंत्री भामाशाह ने अपनी सारी सम्पत्ति राणा को सौंप दी। वर्ष 1572 ई0 में सिंहासन पर बैठने के समय से लेकर 1597 ई0 में मृत्यु पर्यन्त राणा ने अद्भुत साहस, शौर्य तथा बलिदान की भावना का परिचय दिया। मेवाड़ उत्तरी भारत का एक महत्वपूर्ण तथा शक्तिशाली राज्य था। राणा सांगा के समय में राजस्थान के लगभग सभी शासक उनके अधीन संगठित हुए थे। अतः मेवाड़ की प्रभुसत्ता की रक्षा तथा उसकी स्वतंत्रता को बनाए रखना राणा प्रताप के जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य था। इसी के लिए वे जिए और मरे। युवराज अमर सिंह सुख-सुविधापूर्ण जीवन के अभ्यस्त थे। महाराणा को अपनी मरणासन्न अवस्था में इसी बात की सर्वाधिक चिन्ता थी कि अमर सिंह मेवाड़ की रक्षा के लिए संघर्ष नहीं कर सकेगा। इस चिन्ता के कारण उनके प्राण शरीर नहीं छोड़ पा रहे थे। वे युवराज और राजपूत सरदारों से मेवाड़ की रक्षा का वचन चाह रहे थे। अमर सिंह और उपस्थित राजपूत सरदारों ने उनकी मनोदशा को समझकर अन्तिम साँस तक मेवाड़ को स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया। आश्वासन पाने पर उन्होंने प्राण त्याग दिया।
युगपुरुष महाराणा प्रताप को श्रद्धांजली
राणा प्रताप का नाम हमारे इतिहास में महान देशभक्त के रूप में अमर है। वीर महाराणा प्रताप के अदम्य साहस तथा शौर्य की सराहना करते हुए प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार कर्नल टाड ने लिखा है कि ‘‘अरावली की पर्वतमाला में एक भी घाटी ऐसी नहीं है, जो राणा प्रताप के पुण्य कार्य से पवित्र न हुई हो, चाहे वहाँ उनकी विजय हुई हो या यशस्वी पराजय।’’ प्रताप का जीवन स्वतंत्रता-प्रेमियों को सतत् प्रेरणा प्रदान करने का अनन्त स्रोत है। उनका वीरतापूर्ण संघर्ष साधारण जन-मानस में उत्साह की भावना जाग्रत करता रहेगा।
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