पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, द्विवेदी युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म 27 मई 1894 को खैरागढ़, छत्तीसगढ़ में हुआ था। इनके पिता उमराव बख्शी व पितामह पुन्नालाल बख्शी ‘खैरागढ़’ के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। 14वीं शताब्दी में बख्शी जी के पूर्वज श्री लक्ष्मीनिधि राजा के साथ मंडला से खैरागढ़ में आए थे ओर तब ये यहीं बस गए। बख्शी जी के पूर्वज फतेह सिंह और उनके पुत्र श्रीमान राजा उमराव सिंह दोनों के शासनकाल में श्री उमराव बख्शी राजकवि थे। पदुमलाल बख्शी की प्राइमरी की शिक्षा खैरागढ़ में ही हुई। 1911 में यह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में बैठे। हेडमास्टर एन. ए . गुलाम अली के निर्देशन पर उनके नाम के साथ उनके पितामह का नाम पुन्नालाल लिखा गया। तब से यह अपना पूरा नाम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी लिखने लगे।
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जीवन परिचय Padumlal Punnalal Bakshi ka Jeevan Parichay
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, द्विवेदी युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। ये एक कुशल आलोचक, हास्य-व्यंग्यकार तथा गंभीर विचारक थे। बख्शी जी अपने ललित निबंधों के लिए विशेष रूप से स्मरणीय रहेंगे। ये अंग्रेजी कवि वर्ड्सवर्थ से बहुत प्रभावित थे, जिनसे प्रेरित होकर इन्होंने स्वच्छांदतावादी कविताएँ लिखी। बख्शी जी की प्रसिद्धि का मुख्य आधार आलोचना और निबंध लेखन है।
जीवन परिचय— पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म 27 मई 1894 को खैरागढ़, छत्तीसगढ़ में हुआ था। इनके पिता उमराव बख्शी व पितामह पुन्नालाल बख्शी ‘खैरागढ़’ के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। 14वीं शताब्दी में बख्शी जी के पूर्वज श्री लक्ष्मीनिधि राजा के साथ मंडला से खैरागढ़ में आए थे ओर तब ये यहीं बस गए। बख्शी जी के पूर्वज फतेह सिंह और उनके पुत्र श्रीमान राजा उमराव सिंह दोनों के शासनकाल में श्री उमराव बख्शी राजकवि थे। पदुमलाल बख्शी की प्राइमरी की शिक्षा खैरागढ़ में ही हुई। 1911 में यह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में बैठे। हेडमास्टर एन. ए . गुलाम अली के निर्देशन पर उनके नाम के साथ उनके पितामह का नाम पुन्नालाल लिखा गया। तब से यह अपना पूरा नाम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी लिखने लगे। मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में यह अनुत्तीर्ण हो गए। उसी वर्ष इन्होंने साहित्य जगत में प्रवेश किया। 1912 में उन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने बनारस के सेंट्रल हिंदू कॉलेज में प्रवेश लिया। सन् 1913 में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। १९१६ में उन्होंने बी़ ए. की उपाधि प्राप्त की तथा फिर उनकी नियुक्ति स्टेट हाईस्कूल राजानंदगाँव में संस्कृत अध्यापक के पद पर हुई। सन् 1971 ई. में हिंदी साहित्य के इस महान आधार स्तंभ का निधन हो गया।
रचनाएँ— बख्शी जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं–
(अ) काव्य— अश्रुदल, शतदल
(ब) आलोचना— विश्व साहित्य, हिंदी कहानी साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श, हिंदी उपन्यास साहित्य
(स) निबंध-संग्रह— पंच-पात्र, पद्म वन, प्रबंध-पारिजात, कुछ बिखरे पन्ने, कुछ यात्री
(द) कहानी संग्रह— झलमला, अंजलि
(य) अनूदित— तीर्थस्थल, प्रायश्चित, उन्मुक्ति का निबंध
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की भाषा-शैली : बख्शी जी की भाषा में जटिलता और रूखापन नहीं है। इनकी भाषा में कहीं-कहीं उर्दू अंग्रेजी के शब्द भी मिलते हैं, जो भाषा को सरल व प्रवाहमय बनाते हैं। इनकी भाषा एक आदर्श भाषा है। बख्शी जी के अनुसार भाषा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें सभी प्रकार के विषयों का विवेचन किया जा सके। बख्शी जी ने अपने कथात्मक निबंधों में भावात्मक शैली का प्रयोग किया है, जिसमें छोटे-छोटे वाक्य हैं, जिनकी सहायता से भावों की अभिव्यंजना बड़ी कुशलता के साथ हुई है। यह शैली सरल व सरस है तथा इसमें चित्रात्मकता, सजीवता व गतिशीलता भी है। इनके आलोचनात्मक निबंधों में गंभीर विषयों को प्रस्तुत करने के लिए व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग हुआ है, जो कहीं-कहीं पर क्लिष्ट भी हो गई है। इनके कुछ निबंधों में विचारात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं।
COMMENTS