मछुआरा और जिन्न हिंदी कहानी : समुद्र तट पर एक गांव बसा था। वहां एक मछुआरा रहता था। वह दिन में तीन बार समुद्र में जाल देखता था। जाल में फंसी हुई मछलियों को बेच कर अपना गुजारा करता था। एक दिन उसने हमेशा की तरह मछली पकड़ने के लिए जाल फेंका। जब उसने जाल को बाहर खींचने की कोशिश की तो उसे भारी पाया। उसमें एक जानवर का मृत शरीर था। मछुआरे ने उसे बाहर निकालकर दोबारा जाल फेंका। कम से कम इस बार तो अच्छी मछलियां जाल में फंस जाए, वह मन ही मन प्रार्थना करने लगा। इस बार भी उसने बड़ी मुश्किल से जाल बाहर खींचा। जाल में एक बड़ा घड़ा फंसा हुआ था।
मछुआरा और जिन्न हिंदी कहानी
समुद्र तट पर एक गांव बसा था। वहां एक मछुआरा रहता था। वह दिन में तीन बार समुद्र में जाल देखता था। जाल में फंसी हुई मछलियों को बेच कर अपना गुजारा करता था। एक दिन उसने हमेशा की तरह मछली पकड़ने के लिए जाल फेंका। जब उसने जाल को बाहर खींचने की कोशिश की तो उसे भारी पाया। उसमें एक जानवर का मृत शरीर था।
मछुआरे ने उसे बाहर निकालकर दोबारा जाल फेंका। कम से कम इस बार तो अच्छी मछलियां जाल में फंस जाए, वह मन ही मन प्रार्थना करने लगा। इस बार भी उसने बड़ी मुश्किल से जाल बाहर खींचा। जाल में एक बड़ा घड़ा फंसा हुआ था। उसमें पत्थर, मिट्टी और कांच के टुकड़े भरे हुए थे। हाय ! यह कैसी परीक्षा, एक भी मछली हाथ नहीं आई। मछुआरा निराश हो गया।
अब उसने आखरी बार जाल फेंका। तीसरी बार भी जाल भारी था। अरे यह क्या, जाल में एक पीतल की सुराही थी। कम से कम इसे बेच कर आज के खाने का इंतजाम तो कर ही लूंगा, यह सोचते हुए मछुआरे ने सुराही को खोला। उसके अंदर कुछ भी नहीं था। अचानक उसमें से काला धुआं निकलने लगा। धुआं धीरे-धीरे फैल कर आसमान तक पहुंच गया। अब उसमें से एक आकार उभरा। वह एक जिन्न था। देखते ही देखते जिन्न का सिर आसमान को छूने लगा। उसकी आंखें हीरे जैसी चमक रही थी। मुंह गुफा की तरह था।
उसे देखते ही मछुआरे के होश उड़ गए। डर के मारे उसके हाथ-पैर कांपने लगे। मुंह सूख गया। वह मूर्ति के समान जड़ हो गया। जिन्न बोला, ”अब मैं तुमको मार डालूंगा।” मछुआरे ने साहस करके कहा, “मैंने ही तो तुम्हें समुद्र से बाहर निकाला है, फिर तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो।”
जिन्न ने कहा कि मैं कई सदियों से सुराही में बंद पड़ा था। शुरू में मैंने सोचा कि जो भी मुझे आजाद करेगा, उसे बहुत सारी संपत्ति दूंगा। लेकिन कोई भी नहीं आया। मछुआरे ने पूछा फिर क्या हुआ ? जिन्न ने कहा, “इस तरह 400 साल बीत गए, तब मैंने सोचा कि जो भी मुझे मुक्त करेगा उसे मैं 3 वरदान दूंगा।” तब भी कोई नहीं आया। फिर मैंने निश्चय किया कि जो भी मुझे आजाद करेगा उसे मैं मार डालूंगा। दुर्भाग्यवश अब तुमने मुझे आजाद कर दिया है। यह कैसा इंसाफ है, मदद करने पर भला कोई दंड देता है - मछुआरे ने हिम्मत जुटाकर कहा।
हां ! अब मेरा समय और बर्बाद मत करो, “ कहते हुए जिन्न मछुआरे के करीब आने लगा। इस जिन्न से कैसे बचूं? मछुआरा सोचने लगा।
फिर उसने जिन्न को बातों में लगाया, “ठीक है, मगर मेरी एक शंका है। तुम तो इतने बड़े हो कि आकाश को छू सकते हो। तुम्हारे पैर के नाखून भी इस सुराही के अन्दर नहीं घुश सकते। फिर तुम इसके अन्दर इतने साल कैसे रहे होगे? कहीं तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो? मछुआरा जिन्न का मजाक उड़ाने लगा।
जिन्न ने तुरंत कहा, “ अरे ! तुम्हे मेरी बात पर विश्वास नहीं। यह लो! मैं अभी इसके अन्दर घुसकर दिखाता हूँ।” वह अपने शरीर को सिकोड़ते हुए सुराही के अन्दर घुस गया।
बस! मौक़ा पाते ही मछुआरे ने झट से सुराही का ढक्कन बंद कर दिया। “हजार साल और इसी तरह पड़े रहो” कहते हुए मछुआरे ने सुराही को समुद्र में वापिस फेंक दिया।
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