भारत में बेरोजगारी : समस्या एवं समाधान पर निबन्ध | Unemployment in India in Hindi : बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति अपनी जीविका के उपार्जन के लिए काम करने की इच्छा और योग्यता रखते हुए भी काम प्राप्त नहीं कर पाता। यह स्थिति जहॉ एक ओर पूर्ण बेरोजगारी के रूप में पायी जाती है, वहीं दूसरी ओर यह अल्प बेरोजगारी या मौसमी बेरोजगारी के रूप में भी देखने को मिलती है। बेरोजगारी के कारण : भारत में बेरोजगारी की समस्या के अनेक कारण हैं जो निम्नलिखित हैं
भारत में बेरोजगारी : समस्या एवं समाधान पर निबन्ध | Unemployment in India in Hindi
प्रस्तावना : स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से ही
हमारे देश को अनेक समस्याओ का सामना करना पड़ा है। इनमें से कुछ समस्याओ का तो
समाधान कर लिया गया है किंतु कुछ समस्याएँ निरंतर विकट रूप लेती जा रही
हैं।बेरोजगारी की समस्या भी एक ऐसी ही समस्या है। हमारे यहाँ अनुमानतः लगभग 50 लाख व्यक्ति प्रति वर्ष बेरोजगारी की पंक्ति में खड़े हो जाते हैं। हमें शीघ्र
ही ऐसे उपाय करने होंगे जिससे इस समस्या की तीव्र गति को रोका जा सके।
बेरोजगारी से तात्पर्य : बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति है
जब व्यक्ति अपनी जीविका के उपार्जन के लिए काम करने की इच्छा और योग्यता रखते हुए
भी काम प्राप्त नहीं कर पाता। यह स्थिति जहॉ एक ओर पूर्ण बेरोजगारी
के रूप में पायी जाती है,
वहीं दूसरी ओर यह अल्प बेरोजगारी या मौसमी बेरोजगारी
के रूप में भी देखने को मिलती है। अल्प तथा मौसमी बेरोजगारी के अन्तर्गत या तो
व्यक्ति को जो सामान्यत: 8 घण्टे कार्य करना चाहता है 2 या 3 घण्टे ही कार्य मिलता है या वर्ष में 3-4 महीने ही उसके पास काम रहता है। दफ्तरों मेँ कार्य पाने के इच्छुक शिक्षित
बरोजगारों की सख्या भी करोडों में है, जिसमे लगभग एक करोड़ स्नातक तथा उससे अधिक शिक्षित हैं।
बेरोजगारी के कारण : भारत में बेरोजगारी की समस्या के अनेक कारण हैं जो निम्नलिखित हैं
(क) जनसंख्या में निरंतर वृद्धि : बेराजगारी का पहला
और सबसे मुख्य कारण जनसंख्या में निरंतर वृद्धि का होना है, जबकि रिक्तियों की संख्या उस अनुपात में नहीं बढ पाती है। भारत में जनसंख्या' लगभग 2.0% वार्षिक की दर से बढ रही है, जिसके लिए 50 लाख व्यक्तियों को प्रतिवर्ष रोजगार देने की आवश्यकता हैं, जबकि रोजगार प्रतिवर्ष केवल 5-6 लाख लोगों को ही उपलब्ध
हो पाता हैं।
(ख) दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली : हमारी शिक्षा-प्रणाली
दोषपूर्ण है, जिसके कारण शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है।
यहाँ व्यवसाय-प्रधान शिक्षा का अभाव है। हमारे स्कूल और कॉलेज केवल लिपिकों को
पैदा करने वाले कारखाने मात्र बन गए हैं।
(ग) लघु तथा कुटीर उद्योगों की अवनति : बेरोजगारी की
वृद्धि में लघु और कुटीर उद्योगों की अवनति का भी महत्वपूर्ण योगदान है। अंग्रेजों
ने अपने शासन-काल में ही भारत के कुटीर उद्योगों को पंगु बन दिया था। इसलिए इन
कामों में लगे श्रमिक धीरे-धीरे इन उद्योगों को छोड़ रहे हैं। इससे भी बेरोजगारी
की समस्या बढ़ रही है।
(घ) यन्त्रीकरण और औद्योगिक क्रान्ति : यन्त्रीकरण ने
असंख्य लोगों के हाथों से काम छीनकर उन्हें बेरोजगार बना दिया है। अब देश में
स्वचालित मशीनों की बाढ़-सी आ गयी है। एक मशीन कई श्रमिकों का कार्य स्वयं
निपटा देती है। हमारा देश कृषिप्रधान देश है। कृषि
में भी यन्त्रीकरण हो रहा है, जिसके फलस्वरूप बहुत बडी
संख्या मेँ कृषक-मजदूर भी रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त और भी अनेक कारण इस
समस्या को बिकराल रूप देने में उत्तरदायी रहे हैं। जैसे-त्रुटिपूर्ण नियोजन¸ उद्योगों व व्यापार का अपर्याप्त विकास तथा विदेशों से भारतीयों का
निकाला जाना। महिलाओं द्वारा नौकरी में प्रवेश से भी पुरूषों में बेरोजगारी बढ़ी
है।
समस्या का समाधान : बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये जा सकते हैँ
(क) जनसंख्या-वृद्धि पर नियंत्रण : बेरोजगारी को कम
करने का सर्वप्रमुख उपाय जनसंख्या-वृद्धि पर रोक लगाना है। इसके लिए जन-साधारण को
छोटे परिवार की अच्छाइयों की और आकर्षित किया जाना चाहिए।
ऐसा करने पर बेरोजगारी की बढती गति में अवश्य ही कमीं आएगी।
(ख) शिक्षा प्रणाली में परिवर्त्तन : भारत में शिक्षा
प्रणाली को परिवर्तित कर उसे रोजगारोन्मुख बनाया जाना चाहिए। इसके लिए
व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा का विस्तार किया जाना चाहिए, जिससे शिक्षा पूर्ण करने के बाद विद्यार्थी क्रो अपनी योग्यतानुसार
जीविकोपार्जन का कार्य मिल सके।
(ग) कुटीर और लघु उद्योगों का
विकास : बेरोजगारी कम करने के यह अति आवश्यक है कि कुटीर तथा
लघु उद्योगों का विकास किया जाए। सरकार द्वारा धन, कच्चा माल, तकनीकी सहायता देकर तथा इनके तैयार माल की खपत कराकर
इन उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
(घ) कृषि के सहायक उद्योग-धन्धों का विकास : कृषि
प्रधान देश होने के कारण भारत में कृषि में अर्द्ध-बेरोजगारी व मौसमी बेरोजगारी है। इसकी दूर करने के लिए मुर्गीपालन, मत्स्यपालन, दुग्ध व्यवसाय, बागवानी आदि को कृषि के सहायक उद्योग-घन्धों के रूप मेँ विकसित किया जाना
चाहिए।
(ङ) निर्माण कार्यों का विस्तार : सरकार को सडक-निर्माण¸वृक्षारोपण¸ सिंचाई के लिए नहरों के निर्माण आदि को योजनाओं
को कार्यान्वित करते रहना चाहिए, जिससे बेरोजगार व्यक्तियों को काम मिल सके और देश भी विकास के पथ पर अग्रसर हो
सके।
इनके अतिरिक्त, बेरोज़गारी की समस्या को दूर करने के' लिए सरकार को प्राकृतिक साधनों और भण्डारों की खोज करनी चाहिए और उन
सम्भावनाओं का पता लगाना चाहिए जिनसे नबीन
उद्योग स्थापित किये जा सके। गाँवों
में बिजली की सुविधाएँ प्रदान
की जाएँ, जिससे वहॉ छोटे-छोटे लघु उद्योग पनप सके।
उपसंहार : संक्षेप मेँ हम कह सकते हैं
कि जन्म-दर में कमीं करके, शिक्षा का व्यवसायीकरण करके तथा देश के स्वायत्तशासी ढांचे और लघु
उद्योग-धन्धों के' प्रोत्साहन से ही बेरोजगारी की समस्या का स्थायी
समाधान सम्भव है। जब तक इस समस्या का उचित समाधान नहीं होगा, तब तक समाज में न तो सुंख-शान्ति रहेगी और न राष्ट्र का व्यवस्थित एवं
अनुशासित ढाँचा खड़ा हो सकेगा। अतः इस दिशा में प्रयत्न कर रोजगार बढ़ाने के
स्त्रोत खोजे जाने चाहिए क्योंकि आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ नागरिक ही एक प्रगतिशील
राष्ट्र के निर्माणकर्त्ता होते हैं।
COMMENTS