राजा विक्रम की कहानी : बहुत समय पहले की बात है । एक बार राजा विक्रमादित्य को किसी कारणवश अपना राज्य छोड़ना पड़ा। घूमते-घूमते वे एक दूसरे राज्य हौलापुर में आ गए । विक्रमादित्य को पता चला कि हौलापुर का राजा प्रतिदिन रात को अपने शयनकक्ष के द्वार पर एक नया पहरेदार नियुक्त करता है और सुबह उस पहरेदार को राजदरबार में बुलाकर एक प्रश्न पूछता है ।
राजा विक्रम की कहानी - प्रेम न जाने जाति कुजाति
बहुत समय पहले की बात है । एक बार राजा विक्रमादित्य को किसी कारणवश अपना राज्य छोड़ना पड़ा। घूमते-घूमते वे एक दूसरे राज्य हौलापुर में आ गए । विक्रमादित्य को पता चला कि हौलापुर का राजा प्रतिदिन रात को अपने शयनकक्ष के द्वार पर एक नया पहरेदार नियुक्त करता है और सुबह उस पहरेदार को राजदरबार में बुलाकर एक प्रश्न पूछता है । उत्तर न दे पाने के कारण उस पहरेदार को फाँसी की सजा हो जाती है ।
इस प्रकार शयनकक्ष पर पहरा देनेवाला कोई पहरेदार जीवित नहीं बचता है क्योंकि कोई भी उत्तर नहीं दे पाता है । राजा विक्रमादित्य को यह जानकार बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने हौलापुर के राजा से निवेदन किया कि वह उन्हें एक रात के लिए अपने शयनकक्ष का पहरेदार नियुक्त कर लें । राजा तैयार हो गया और विक्रमादित्य शयनकक्ष की पहरेदारी करने लगे ।
आधी रात को विक्रमादित्य ने राजा को अपने शयनकक्ष से बाहर निकलते देखा । विक्रमादित्य भी चुपके-चुपके राजा का पीछा करने लगे । राजा छिप-छिपकर श्मशान-घाट पहुँचा जहाँ पहले से ही डोम की पुत्री बेसब्री से राजा की प्रतीक्षा कर रही थी । राजा वहीं रखी एक टूटी खाट पर बैठकर डोम की पुत्री से प्रेम भरी बातें करने लगा । कुछ समय बाद राजा बोला कि भूख लगी है । डोम की पुत्री ने कहा कि अभी खाने के लिए मेरे पास शवों पर चढ़ाए गए मिठाई-बतासे आदि हैं । राजा ने मिठाई-बतासे आदि खाकर उसी टूटी खाट पर सो गया । सूर्योदय के पहले ही राजा उठा और राजमहल में आ गया । राजा से पहले ही विक्रमादित्य भी राजमहल पहुँच गए और शयनकक्ष की पहरेदारी शुरु कर दी।
जब राजदरबार लगा तो राजा ने शयनकक्ष के पहरेदार (विक्रमादित्य) को बुलाया और कहा, "कहो पहरेदार रात की बात ।"इस पर विक्रमादित्य ने कहा, महाराज संकेत के रूप में कहता हूँ ताकि राजदरबार और आपकी गरिमा बनी रहे ।
इसके बाद विक्रमादित्य ने कहा, "भूख न जाने जूठी भात, नींद न जाने टूटी खाट, और प्रेम न जाने, जाति कुजाति ।" विक्रमादित्य के इस उत्तर से राजा बहुत प्रभावित हुआ और राजपाठ त्यागकर तपस्या करने वन में चला गया ।
यह कहानी एक भोजपुरी लोककथा है। आपको यह कहानी कैसी लगी हमें अवश्य बताएं।
इस प्रकार शयनकक्ष पर पहरा देनेवाला कोई पहरेदार जीवित नहीं बचता है क्योंकि कोई भी उत्तर नहीं दे पाता है । राजा विक्रमादित्य को यह जानकार बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने हौलापुर के राजा से निवेदन किया कि वह उन्हें एक रात के लिए अपने शयनकक्ष का पहरेदार नियुक्त कर लें । राजा तैयार हो गया और विक्रमादित्य शयनकक्ष की पहरेदारी करने लगे ।
आधी रात को विक्रमादित्य ने राजा को अपने शयनकक्ष से बाहर निकलते देखा । विक्रमादित्य भी चुपके-चुपके राजा का पीछा करने लगे । राजा छिप-छिपकर श्मशान-घाट पहुँचा जहाँ पहले से ही डोम की पुत्री बेसब्री से राजा की प्रतीक्षा कर रही थी । राजा वहीं रखी एक टूटी खाट पर बैठकर डोम की पुत्री से प्रेम भरी बातें करने लगा । कुछ समय बाद राजा बोला कि भूख लगी है । डोम की पुत्री ने कहा कि अभी खाने के लिए मेरे पास शवों पर चढ़ाए गए मिठाई-बतासे आदि हैं । राजा ने मिठाई-बतासे आदि खाकर उसी टूटी खाट पर सो गया । सूर्योदय के पहले ही राजा उठा और राजमहल में आ गया । राजा से पहले ही विक्रमादित्य भी राजमहल पहुँच गए और शयनकक्ष की पहरेदारी शुरु कर दी।
जब राजदरबार लगा तो राजा ने शयनकक्ष के पहरेदार (विक्रमादित्य) को बुलाया और कहा, "कहो पहरेदार रात की बात ।"इस पर विक्रमादित्य ने कहा, महाराज संकेत के रूप में कहता हूँ ताकि राजदरबार और आपकी गरिमा बनी रहे ।
इसके बाद विक्रमादित्य ने कहा, "भूख न जाने जूठी भात, नींद न जाने टूटी खाट, और प्रेम न जाने, जाति कुजाति ।" विक्रमादित्य के इस उत्तर से राजा बहुत प्रभावित हुआ और राजपाठ त्यागकर तपस्या करने वन में चला गया ।
यह कहानी एक भोजपुरी लोककथा है। आपको यह कहानी कैसी लगी हमें अवश्य बताएं।
Innocent
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