विज्ञान के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम पर निबंध:भारत, जिसे प्राचीन काल में ज्ञान और विज्ञान का केंद्र माना जाता था, आधुनिक युग में भी अपनी वैज्ञानिक
विज्ञान के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम पर निबंध
प्रस्तावना:भारत, जिसे प्राचीन काल में ज्ञान और विज्ञान का केंद्र माना जाता था, आधुनिक युग में भी अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों के माध्यम से विश्व में अपनी पहचान बना रहा है। अंतरिक्ष अनुसंधान से लेकर जैव प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा तक, भारत ने हर क्षेत्र में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। विज्ञान के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम न केवल देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को दर्शाते हैं, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के समाधान में भी योगदान दे रहे हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत का विज्ञान के प्रति योगदान प्राचीन काल से ही विश्व प्रसिद्ध रहा है। आर्यभट्ट ने शून्य की अवधारणा और खगोलीय गणनाओं को परिष्कृत किया, भास्कराचार्य ने गणित और खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, और सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा की नींव रखी। हालांकि, औपनिवेशिक काल में भारत का वैज्ञानिक विकास ठप हो गया परन्तु स्वतंत्रता के बाद भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थानों जैसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई। इन संस्थानों ने भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रमुख उपलब्धियाँ
अंतरिक्ष अनुसंधान: इसरो ने कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाले अंतरिक्ष मिशनों के माध्यम से विश्व में अपनी पहचान बनाई है। चंद्रयान-1 (2008) ने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की खोज की, जबकि मंगलयान (2014) ने भारत को पहली कोशिश में मंगल की कक्षा में उपग्रह स्थापित करने वाला पहला देश बनाया। अगस्त 2023 में चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग ने भारत को यह उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बनाया, जिसने नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया।
सूचना प्रौद्योगिकी: भारत को 'आईटी हब' के रूप में जाना जाता है। बेंगलुरु, जिसे "भारत की सिलिकन वैली" कहा जाता है, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इन्फोसिस, और विप्रो जैसी कंपनियों का गढ़ है। इसके अलावा, स्टार्टअप इकोसिस्टम ने पेटीएम, बायजूस, और ओला जैसे यूनिकॉर्न्स को जन्म दिया। आधार कार्ड और यूपीआई जैसी तकनीकों ने डिजिटल समावेशन को बढ़ावा दिया है।
परमाणु और रक्षा प्रौद्योगिकी: भारत ने परमाणु ऊर्जा और रक्षा प्रौद्योगिकी में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। पोखरण-II (1998) परमाणु परीक्षण ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाया। अग्नि-V मिसाइल (5,000 किमी की रेंज) और तेजस लड़ाकू विमान जैसे स्वदेशी रक्षा उपकरण भारत की सामरिक क्षमता को दर्शाते हैं। डीआरडीओ और निजी क्षेत्र की भागीदारी ने रक्षा नवाचार को और बढ़ावा दिया है।
जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा: कोविड-19 महामारी ने भारत की जैव प्रौद्योगिकी क्षमता को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया। भारत ने कोविशील्ड और कोवैक्सिन जैसी स्वदेशी वैक्सीन विकसित कीं और 100 से अधिक देशों को 200 मिलियन से अधिक खुराक निर्यात की, जिसे "वैक्सीन मैत्री" पहल के तहत लागू किया गया। भारत की जेनेरिक दवा उद्योग, जो विश्व की 20% जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है, ने इसे "विश्व की फार्मेसी" का खिताब दिलाया। हाल ही में, एमआरएनए वैक्सीन और कैंसर अनुसंधान में भारत की प्रगति ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है।
नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ने सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है। भारत ने 2015 में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य सौर ऊर्जा को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन से निपटने और ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना है। गुजरात का भादला सौर पार्क, जो विश्व का सबसे बड़ा सौर पार्क है, भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करना है, जिसमें सौर ऊर्जा का हिस्सा 300 गीगावाट होगा।
प्रमुख चुनौतियाँ
विज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रगति के बावजूद, कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। भारत का अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) पर खर्च जीडीपी का केवल 0.7% है, जो अमेरिका (3.5%) और चीन (2.4%) की तुलना में काफी कम है, और निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी नवाचार को बाधित करती है। शिक्षा के क्षेत्र में, विश्वविद्यालयों में अनुसंधान-उन्मुख शिक्षा और आधुनिक पाठ्यक्रमों की कमी है, जिसके परिणामस्वरूप भारत के केवल 10 संस्थान ही वैश्विक शीर्ष 200 अनुसंधान संस्थानों में शामिल हैं। इसके अलावा, कई भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर बेहतर अवसरों के लिए विदेश चले जाते हैं, जैसे कि सिलिकन वैली में कार्यरत 15% तकनीकी पेशेवर भारतीय मूल के हैं। जटिल नियामक ढांचा और धीमी मंजूरी प्रक्रिया भी स्टार्टअप्स और अनुसंधान परियोजनाओं के लिए बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
निष्कर्ष: विज्ञान के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम न केवल देश की प्रगति का प्रतीक हैं, बल्कि वैश्विक समस्याओं जैसे जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के समाधान में भी योगदान दे रहे हैं। यदि भारत अपनी चुनौतियों पर काबू पा ले और अनुसंधान में निवेश बढ़ाए, तो वह निश्चित रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व गुरु बन सकता है। यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक सकारात्मक बदलाव लाएगा।
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