जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा अच्छा ही होगा" — एक प्रसिद्ध सूक्ति है जिसका अर्थ है कि जीवन में जो कुछ भी घटता है, वह किसी न किसी बड़े उद्देश्य की पूर्ति क
जो हुआ अच्छा हुआ पर निबंध (Jo Hua Acha Hua par Nibandh)
"जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा अच्छा ही होगा" — एक प्रसिद्ध सूक्ति है जिसका अर्थ है कि जीवन में जो कुछ भी घटता है, वह किसी न किसी बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है। जो बीत गया, उसके लिए पछताने का कोई लाभ नहीं, और जो आने वाला है, उसके प्रति भयभीत होने की आवश्यकता नहीं। हर घटना, हर अनुभव, चाहे वह सुखद हो या दुखद, हमारे जीवन को संवारने और परिपक्व बनाने के लिए होती है। यदि हम इस विचार को हृदय से स्वीकार कर लें, तो जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियाँ भी हमें विचलित नहीं कर सकतीं।
जो हुआ अच्छा हुआ
जीवन विधाता द्वारा रचित एक विराट ग्रंथ है, जिसके प्रत्येक अध्याय और हर पंक्ति का अपना महत्व है। मनुष्य, इस ग्रंथ का पात्र होकर भी, कभी-कभी घटनाओं के उलझे हुए ताने-बाने में फँसकर व्याकुल हो उठता है। कभी-कभी तो यह भी होता है कि हम किसी कार्य को भलाई समझ कर करते हैं और वही हमारे लिए मुसीबत बन जाता है। उदहारण के लिए एक सज्जन व्यक्ति किसी राह चलती महिला की मदद करने रुकता है, परन्तु वही महिला उसे अपमानित कर देती है। ऐसे में मन प्रश्न करता है — "क्या भलाई करना भी पाप है?" परंतु समय बीतने के साथ यह घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि अनुभव केवल मीठे ही नहीं, कड़वे भी ज़रूरी होते हैं। इन अनुभवों से ही आत्मा परिपक्व होती है।
हमारे दैनिक जीवन में भी ऐसी असंख्य घटनाएँ घटती हैं। एक छात्र जो कड़ी मेहनत के बाद भी प्रतियोगिता में सफल नहीं होता, उस समय उसे लगता है कि उसके सारे प्रयास व्यर्थ हो गए। परन्तु कभी-कभी वही असफलता उसे किसी ऐसे मार्ग पर ले जाती है, जहाँ उसका वास्तविक विकास होता है। वर्षों बाद, जब वह अपने बीते कल को देखता है, तो मन ही मन कह उठता है — “जो हुआ, अच्छा ही हुआ।”
इसी प्रकार एक पुरानी लोककथा है — एक किसान का बेटा घोड़े से गिरकर घायल हो गया। सबने कहा, "बुरा हुआ।" कुछ दिन बाद युद्ध छिड़ गया और गाँव के सभी नौजवानों को जबरन सेना में भेज दिया गया। वह लड़का अपने घाव के कारण बच गया। तब सबने कहा, "अच्छा हुआ।" जीवन का यह खेल ऐसा ही है — हम उस समय नहीं समझ पाते कि कौन सी घटना हमें किस दिशा में ले जाएगी।
जो होगा, वह भी अच्छा होगा
भविष्य एक बंद लिफाफा है, जिसके भीतर क्या छिपा है, कोई नहीं जानता। फिर भी, यह विश्वास कि “जो होगा, अच्छा ही होगा”, हमें उस लिफाफे को खोलने का साहस देता है। जैसे सुबह की ओस हर पत्ते को नई चमक देती है, वैसे ही यह विचार भविष्य की अनिश्चितताओं को आशा की रोशनी से भर देता है।
जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ, तो पांडवों ने अपार विनाश और अपनों की मृत्यु देखकर शोक प्रकट किया। पर उसी विनाश से धर्म की पुनः स्थापना हुई। अगर उस समय युद्ध का मार्ग न अपनाया गया होता, तो अधर्म का अंधकार गहरा जाता। इसीलिए, जो भी हुआ, वह धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक था।
रामायण में भी यही भाव झलकता है। जब माता सीता का अपहरण हुआ, तो वह रामजी के लिए असीम पीड़ा का कारण बना। किंतु उसी प्रसंग ने श्रीराम की लंका विजय का पथ प्रशस्त किया और अधर्म के प्रतीक रावण का अंत हुआ। यदि यह घटना न घटती, तो राम के आदर्श पुरुषोत्तम स्वरूप की स्थापना संभव नहीं थी।
निष्कर्ष:
अंततः, "जो हुआ अच्छा हुआ और जो होगा अच्छा ही होगा" केवल एक सूक्ति नहीं, बल्कि जीवन को देखने का एक नया दृष्टिकोण है। यह दृष्टिकोण हमें जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में सौंदर्य देखने की दृष्टि प्रदान करता है। जब हम बीते हुए का पछतावा और भविष्य की चिंता को छोड़ देते हैं, तो जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियाँ भी अवसर बन जाती हैं, और हमारे भीतर वह शक्ति जाग्रत होती है, जो असंभव को संभव कर देती है।
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