भारत में किसानों की स्थिति पर निबंध: भारत में यदि कोई वर्ग सबसे ज़्यादा परिश्रमी, सबसे अधिक सहनशील और सबसे उपेक्षित रहा है — तो वह है किसान। महात्मा
भारत में किसानों की स्थिति पर निबंध (Bharat mein Kisanon ki Sthiti par Nibandh)
प्रस्तावना: भारत में यदि कोई वर्ग सबसे ज़्यादा परिश्रमी, सबसे अधिक सहनशील और सबसे उपेक्षित रहा है — तो वह है किसान। महात्मा गांधी ने कहा था – "भारत का हृदय गाँवों में धड़कता है।" और इन गाँवों की आत्मा है किसान। पर अफ़सोस, वही किसान आज सबसे ज़्यादा संकट में है। किसानों की आत्महत्याएँ केवल आंकड़े नहीं हैं, वे हर बार एक संदेश छोड़ जाती हैं — जिसमें लिखा होता है कि "अब और सहा नहीं जाता"। क्या यह उस देश की सच्चाई है, जो 'जय जवान, जय किसान' का नारा लगाता है?
किसान की स्थिति: किसान की सबसे बड़ी समस्या है उसकी आय की अनिश्चितता। आज भी भारत के 60% से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं, पर जब बात आय की आती है, तो वही किसान सबसे पीछे खड़ा दिखता है। फसल की कीमतें कभी इतनी गिर जाती हैं कि किसान को लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में उन्हें कर्ज़ लेना पड़ता है, और वह कर्ज़ धीरे-धीरे उनके जीवन का अभिशाप बन जाता है।
जिस देश की मिट्टी को अपने पसीने से सींचकर किसान सोना उगाता है, वही किसान आज भी सबसे अधिक दुखों से घिरा है। उसकी आंखों में नींद नहीं, चिंता होती है। कहीं बादल बरसे तो आफ़त, न बरसे तो भी आफ़त। मौसम की मार, महंगाई की चोट, और बाज़ार की बेरुख़ी — मानो सबकुछ उसकी परीक्षा लेने पर तुला हो। सुभद्राकुमारी चौहान की एक पंक्ति याद आती है –
"नहीं काल का भय जिनको, वे कर्तव्य मार्ग के पथिक।"
हमारे किसान भी ऐसे ही पथिक हैं, जो हर मौसम, हर संकट में अडिग खड़े रहते हैं।
सरकारों ने समय-समय पर योजनाएं चलाई हैं — जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, और ई-नाम पोर्टल। इनका उद्देश्य किसान को आर्थिक सहायता देना, जोखिम से बचाना और फसल की सही कीमत दिलाना है। लेकिन अफ़सोस, इन योजनाओं की जानकारी ज़्यादातर किसानों तक नहीं पहुँच पाती। जो पहुँचती भी है, वह जटिल प्रक्रियाओं में उलझ जाती है। गाँवों में आज भी डिजिटल साक्षरता की कमी और बिचौलियों का वर्चस्व किसानों को अपने अधिकारों से दूर रखता है।
आशा की किरण: नई सोच, नई राह
आज कुछ युवा किसान जैविक खेती, हाई-टेक ग्रीनहाउस, ड्रिप इरिगेशन, और स्मार्ट फार्मिंग की ओर बढ़ रहे हैं। इन नवाचारों से न केवल उत्पादन बढ़ा है, बल्कि आय भी दोगुनी हुई है। उदाहरण के लिए — महाराष्ट्र के कुछ किसानों ने वर्टिकल फार्मिंग अपनाई है, जहाँ कम ज़मीन में अधिक उत्पादन हो रहा है। उत्तराखंड की महिलाओं ने सहकारी खेती शुरू कर महिला सशक्तिकरण की मिसाल कायम की है। अगर ऐसे प्रयोग गांव-गांव तक पहुंचाए जाएं, तो किसान की हालत जरूर सुधरेगी।
उपसंहार: निष्कर्षतः भारत का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा जब उसका अन्नदाता खुशहाल होगा। हमें मिलकर यह प्रयास करना होगा कि किसान को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाए, बल्कि उसे सम्माननीय पेशा भी बनाया जाए, लेकिन एक नए नज़रिए से — जहाँ वे ट्रैक्टर नहीं, तकनीक चलाएं। जहाँ मिट्टी से रिश्ता हो, लेकिन विज्ञान की रोशनी भी हो। एक मजबूत किसान ही एक मजबूत भारत की नींव रख सकता है।
"जिस दिन किसान मुस्कुराएगा, उस दिन भारत सच्चे अर्थों में विकासशील नहीं, विकसित कहलाएगा।"
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