महावीर जयंती पर निबंध: महावीर जयंती जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह भगवान महावीर के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है, जो जैन
महावीर जयंती पर निबंध हिंदी में - Essay on Mahavir Jayanti in Hindi
महावीर जयंती पर निबंध: महावीर जयंती जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह भगवान महावीर के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है, जो जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जीवन सत्य, अहिंसा और तपस्या की अद्भुत मिसाल है। महावीर जयंती न केवल जैन समाज के लिए, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए एक प्रेरणादायक अवसर है, क्योंकि भगवान महावीर की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी कि उनके समय में थीं।
भगवान महावीर का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व बिहार के वैशाली में हुआ था। उनका बचपन एक राजकुमार के रूप में बीता, लेकिन सांसारिक सुखों से वे कभी मोहित नहीं हुए। जब वे लगभग 30 वर्ष के थे, तब उन्होंने घर-परिवार, ऐश्वर्य और राजसी जीवन का त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया। इसके बाद उन्होंने बारह वर्षों तक घोर तपस्या की और आत्मज्ञान प्राप्त किया। इसके पश्चात उन्होंने समस्त मानवता को सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसे महान सिद्धांतों का उपदेश दिया।
महावीर जयंती का उत्सव पूरे देश में बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से जैन मंदिरों को आकर्षक फूलों और दीपों से सजाया जाता है। भक्तगण प्रभात फेरी निकालते हैं, जिसमें भगवान महावीर की प्रतिमा को एक रथ में बिठाकर नगर में शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दौरान जैन समाज के लोग उनके उपदेशों को दोहराते हैं और भजन-कीर्तन के माध्यम से आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करते हैं।
इस दिन अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें प्रवचन, ध्यान, भक्ति और सेवा कार्य प्रमुख होते हैं। जैन अनुयायी इस अवसर पर जरूरतमंदों की सहायता करते हैं, गरीबों को भोजन कराते हैं और अस्पतालों में फल व दवाइयाँ बाँटते हैं। महावीर स्वामी की शिक्षाओं में करुणा और परोपकार का विशेष स्थान है, इसलिए इस दिन विशेष रूप से जीवों पर दया और सेवा का भाव प्रकट किया जाता है।
भगवान महावीर का सबसे महत्वपूर्ण संदेश अहिंसा था। वे मानते थे कि किसी भी जीव को कष्ट पहुँचाना पाप है। उन्होंने न केवल शारीरिक अहिंसा की बात की, बल्कि मानसिक और वाणी की अहिंसा को भी उतना ही महत्वपूर्ण बताया। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने विचारों और शब्दों में भी दूसरों के प्रति दयालु और संवेदनशील होना चाहिए। यदि संसार उनके इस सिद्धांत को पूरी तरह अपना ले, तो निश्चित रूप से दुनिया से हिंसा, युद्ध और द्वेष समाप्त हो सकते हैं।
इसके अलावा, भगवान महावीर ने अपरिग्रह का सिद्धांत भी दिया, जिसका अर्थ है – आवश्यकता से अधिक संग्रह नहीं करना। आज के समय में जब हर व्यक्ति अधिक से अधिक धन, वस्त्र और सुविधाओं की लालसा में लगा हुआ है, तब महावीर स्वामी का यह संदेश अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होता है। यदि मनुष्य अपने लोभ को नियंत्रित कर ले और केवल उतना ही संचय करे जितना आवश्यक है, तो समाज में धन का सही वितरण होगा और गरीबी जैसी समस्याएँ समाप्त हो सकती हैं।
महावीर स्वामी ने सत्य और अचौर्य (चोरी न करने) को भी जीवन का मूल आधार बताया। वे मानते थे कि सत्य ही ईश्वर है और झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं। जीवन में सच्चाई अपनाने वाला व्यक्ति हमेशा सुख और शांति पाता है, जबकि झूठ बोलने वाला अंततः परेशानी में फँस जाता है। इसी प्रकार, बिना परिश्रम किए किसी अन्य की वस्तु को चुराना या हड़पना भी पाप माना गया है। भगवान महावीर के ये सिद्धांत आज भी नैतिक जीवन जीने के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
महावीर जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का अवसर है। इस दिन लोग अपने भीतर झाँककर यह विचार करते हैं कि वे अपने जीवन में कितनी ईमानदारी, सच्चाई और अहिंसा का पालन कर रहे हैं। महावीर स्वामी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और सादगी में है। यदि हम उनके बताए मार्ग पर चलें, तो हमारा जीवन न केवल सफल होगा, बल्कि हम समाज के लिए भी प्रेरणा बन सकते हैं।
आज के आधुनिक समय में जब हिंसा, असहिष्णुता और लालच बढ़ता जा रहा है, तब महावीर स्वामी की शिक्षाएँ और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं। हमें केवल महावीर जयंती के दिन ही नहीं, बल्कि जीवन भर उनके सिद्धांतों को अपनाने का प्रयास करना चाहिए। यदि हम अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य और संयम के मार्ग पर चलें, तो हमारा समाज पहले से अधिक शांतिपूर्ण और खुशहाल बन सकता है।
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