मोटरकार और बैलगाड़ी आपस में बात कर पाते तो क्या-क्या बातें करते कल्पना के आधार पर संवाद लिखो। बैलगाड़ी: अरे भाई, नमस्ते! पहली बार हमारे गांव में तुम्ह
मोटरकार और बैलगाड़ी आपस में बात कर पाते तो क्या-क्या बातें करते कल्पना के आधार पर संवाद लिखो।
(एक गांव की कच्ची सड़क पर मोटरकार और बैलगाड़ी की मुलाकात होती है। दोनों आपस में बातें करने लगते हैं।)
बैलगाड़ी: अरे भाई, नमस्ते! पहली बार हमारे गांव में तुम्हें देख रहा हूं। इतनी जल्दी में कहां से आ रहे हो?
मोटरकार: नमस्ते, दादा! मैं शहर से आया हूं। मालिक ने मुझे गांव घूमने और कुछ सामान लाने के लिए भेजा है। लेकिन आप तो यहां के पुराने वासी लगते हो।
बैलगाड़ी: हां, मैं तो बरसों से इस गांव की सेवा कर रहा हूं। खेतों से अनाज लाना, लकड़ी ढोना, और गांव वालों का सामान पहुंचाना मेरा रोज़ का काम है। लेकिन तुम्हें देखकर लग रहा है कि अब तुम मेरी जगह लेने को तैयार हो रहे हो।
मोटरकार: (हंसते हुए) अरे नहीं दादा, तुमसे मुकाबला करना मेरे बस की बात नहीं। तुम तो बड़े धैर्यवान और मेहनती हो। मैं तो बस तेज़ चलता हूं, लेकिन तुम्हारी तरह हर काम में निपुण नहीं हूं।
बैलगाड़ी: (मुस्कुराते हुए) तेज़ चलने का क्या फायदा, बेटा, जब तुम्हें हर थोड़ी देर में पेट्रोल चाहिए? मैं तो सिर्फ हरी घास और पानी पर चल पड़ता हूं।
मोटरकार: यह तो सही कहा तुमने। लेकिन मेरे बिना लोग लंबी दूरी के सफर पर कैसे जाएंगे? तुम्हारे साथ तो घंटों लग जाते हैं।
बैलगाड़ी: यह भी सच है। लेकिन बेटा, मेरी रफ्तार धीमी है, फिर भी मैं पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता। तुम्हारे धुंए से तो गांव का वातावरण खराब हो सकता है।
मोटरकार: (संकोच से) यही तो मेरी कमजोरी है, दादा। मैं मानता हूं कि मेरी वजह से प्रदूषण होता है। लेकिन क्या करूं, मैं ऐसा बनाया ही गया हूँ।
बैलगाड़ी: (सहानुभूति से) कोई बात नहीं, बेटा। समय के साथ बदलाव तो होता ही है। तुम नई पीढ़ी के हो, तुम्हारे भी अपने फायदे हैं। लेकिन ध्यान रखना कि तुम्हारी तेज़ रफ्तार कहीं दुर्घटनाओं का कारण न बने।
मोटरकार: आपकी सीख हमेशा याद रखूंगा, दादा। वैसे, मैं भी देख रहा हूं कि आपकी सादगी और शांति में जो सुख है, वह मेरी तेज़ रफ्तार में नहीं।
बैलगाड़ी: (हंसते हुए) धन्यवाद, बेटा। तुम भी बुरे नहीं हो। तुम्हारे आने से लोगों का जीवन आसान हुआ है। लेकिन अगर हम दोनों साथ मिलकर काम करें, तो यह दुनिया और भी बेहतर बन सकती है।
मोटरकार: (खुश होकर) यह तो बिल्कुल सही कहा आपने। चलिए, अब मैं चलता हूं। गांव वालों के लिए सामान लेकर जाना है।
बैलगाड़ी: ठीक है, बेटा। अपना ध्यान रखना और धीरे चलना। गांव की कच्ची सड़कों पर तुम्हारी रफ्तार तेज कभी-कभी मुसीबत बन सकती है।
मोटरकार: जी दादा, आपकी बात हमेशा याद रखूंगा। नमस्ते!
बैलगाड़ी: नमस्ते, बेटा।
(दोनों अपनी-अपनी राह पर चल पड़ते हैं, लेकिन एक-दूसरे की बातों से बहुत कुछ सीखकर।)
मोटर कार और बैलगाड़ी के बीच संवाद लेखन
मोटरकार: नमस्ते बैलगाड़ी! तुम्हारी धीमी चाल देखकर मुझे हंसी आ रही है। तुम इतनी धीमी क्यों चलती हो?
बैलगाड़ी: अरे मोटरकार! तुम्हारी तेज़ रफ्तार देखकर मुझे लगता है कि तुम जिंदगी को कितनी जल्दी बिता देते हो। मैं तो अपनी धीमी चाल से ही खुश हूँ। कम से कम मेरे यात्री प्रकृति का आनंद तो ले पाते हैं।
मोटरकार: हाँ, यह बात तो सही है। लेकिन मैं तुमसे ज्यादा लोगों को एक साथ ले जा सकती हूँ और उन्हें जल्दी से उनकी मंजिल तक पहुँचा सकती हूँ। तुम तो बीते जमाने की बात हो।
बैलगाड़ी: मैं बीते जमाने की ही सही लेकिन मैं पर्यावरण के अनुकूल हूँ। मैं वायु प्रदूषण नहीं फैलाती और न ही शोर करती हूँ। तुम्हारे धुएं से पूरा शहर दूषित हो जाता है।
मोटरकार: तुम्हारी बातें सही हैं, बैलगाड़ी। लेकिन समय की मांग को देखते हुए, लोग मुझ पर निर्भर हैं। मैं उन्हें समय पर उनकी मंजिल तक पहुँचा सकती हूँ। तुम्हारी धीमी चाल से वे अपने काम को समय पर नहीं कर पाएंगे।
बैलगाड़ी: समय की मांग तो समझ में आती है, मोटरकार। लेकिन क्या हमें इतनी तेजी से जीने की जरूरत है? क्या हम थोड़ा आराम से नहीं जी सकते? मैं तो अपने यात्रियों को जीवन की सच्ची खुशियाँ दे सकती हूँ, जो तुम्हारी तेज रफ्तार में नहीं मिल सकतीं।
मोटरकार: तुम्हारी बातें वाकई सोच पर मजबूर करती हैं, बैलगाड़ी। शायद हम दोनों की अपनी-अपनी जगह और महत्ता है। तुम लोगों को प्रकृति के करीब ले जाती हो और मैं समय की मांग को पूरा करती हूँ। हम दोनों का अपना-अपना महत्व है।
बैलगाड़ी: बिल्कुल, मोटरकार। हम दोनों का ही अपना-अपना महत्व है। आइए, हम दोनों अपनी-अपनी भूमिका निभाएं और जीवन को आसान बनाएं।
इस तरह, मोटरकार और बैलगाड़ी ने एक दूसरे की विशेषताओं को समझा और सम्मान किया, जिससे उन्हें एहसास हुआ कि दुनिया में हर चीज़ का अपना एक महत्व है।
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