झरोखे से बाहर रचनात्मक लेखन: झरोखा - एक छोटी सी खिड़की, जो हमें बंद कमरे से बाहर की दुनिया का एहसास दिलाती है। यह एक ऐसा द्वार है जो हमें कल्पनाओं और
झरोखे से बाहर रचनात्मक लेखन - Jharokhe se Bahar Rachnatmak Lekhan
झरोखा - एक छोटी सी खिड़की, जो हमें बंद कमरे से बाहर की दुनिया का एहसास दिलाती है। यह एक ऐसा द्वार है जो हमें कल्पनाओं और वास्तविकता के बीच झूलने का मौका देता है। कल्पना कीजिए, आप किसी ऊंची इमारत के शीर्ष तल पर खड़े हैं। आपके सामने एक विशाल झरोखा है, जो आपको शहर का मनोरम दृश्य दिखाता है। नीचे सड़कों पर वाहनों की कतारें, इमारतों का जंगल, और दूर क्षितिज पर फैला हुआ नीला आकाश। वहीं गाँव के मिट्टी के घरों में बने झरोखे थोड़े अलग होते हैं। वे आपको खेतों की हरियाली, पेड़ों की छांव, और दूर-दूर तक फैले हुए खुले आसमान का नज़ारा दिखाते हैं।
कभी-कभी, हम अपनी आँखों को ही झरोखा मान लेते हैं। जब हम किसी चीज को देखते हैं, तो हम उसे अपने नजरिए से, अपनी समझ से देखते हैं। लेकिन, यह सच है कि झरोखा हमें सीमित दुनिया ही दिखा सकता है। चाहे वो गगनचुम्बी इमारत का झरोखा हो या गाँव के मिट्टी के घर का, हमेशा उससे परे एक और दुनिया होती है। जिसे देखने के लिए हमें झरोखे से बाहर निकलना होता है।
यदि हम वास्तव में दुनिया का अनुभव करना चाहते हैं, तो हमें झरोखे से बाहर निकलना होगा। हमें उन जगहों पर जाना होगा जिन्हें हमने झरोखे से देखा है, उन लोगों से मिलना होगा जिन्हें हमने दूर से देखा है, और उन चीजों को छूना होगा जिन्हें हमने सिर्फ अपनी आँखों से देखा है। परन्तु जब हम मानसिक रूप से झरोखे से बाहर निकलते हैं, तो हम अपने पुराने विचारों और धारणाओं को छोड़ देते हैं। हम नई चीजों को सीखने के लिए तैयार रहते हैं और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने का प्रयास करते हैं। यह हमें अधिक खुले विचारों वाला और समझदार इंसान बनाता है।
झरोखे से बाहर पर निबंध - Jharokhe se Bahar par Nibandh
व्याख्यात्मक हल - झरोखा है- भीतर से बाहर की ओर झाँकने का माध्यम और बाहर से भीतर देखने का रास्ता। हमारी आँखें भी तो झरोखा ही हैं- मन-मस्तिष्क को संसार से और संसार को मन-मस्तिष्क से जोड़ने का। मन रूपी झरोखे से किसी भक्त को संसार के कण-कण में बसने वाले ईश्वर के दर्शन होते हैं तो मन रूपी झरोखे से ही किसी डाकू - लुटेरे को किसी धनी सेठ की धन-संपत्ति दिखाई देती है जिसे लूटने के प्रयत्न में वह हत्या जैसा जघन्य कोई कार्य करने में तनिक नहीं झिझकता। झरोखा स्वयं कितना छोटा-सा होता है पर उसके पार बसने वाला संसार कितना व्यापक है जिसे देख तन-मन की भूख जाग जाती है और कभी-कभी शांत भी हो जाती है। किसी पर्वतीय स्थल पर किसी घर के झरोखे से गगन चुंबी पर्वतमालाएँ, ऊँचे-ऊँचे पेड़, डरावनी खाइयाँ यदि पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं तो दूर-दूर तक घास चरती भेड़ -बकरियाँ भी मन मोह लेती हैं। झरोखे तो छोटे-बड़े कई होते हैं पर उनके बाहर के दृश्य तो बहुत बड़े होते हैं जो कभी-कभी आत्मा तक को झकझोर देते हैं।
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