वीरजी का चरित्र चित्रण: वीर जी खून का रिश्ता कहानी के सहायक पात्र हैं। वे बाबूजी के पुत्र और मंगलसेन के भतीजे हैं। वीरजी का चरित्र सादगी, विनम्रता और
वीरजी का चरित्र चित्रण (Veer Ji Ka Charitra Chitran)
सच्चा प्रेमी: वीरजी प्रेम के मामले में आधुनिक होते हुए भी उसमें आज के युवाओं जैसी उच्छृंखलता नहीं है। वह पति-पत्नी के पवित्र संबंधों और कोमल भावनाओं को समझता है और उन्हें महत्व देता है। अपनी सगाई के थाल पर रखे लाल रूमाल को देखकर वह प्रभा के प्रति प्रेम और उत्साह का अनुभव करता है।
थाल पर रखे लाल रूमाल को देखते ही उनका रोम-रोम पुलकित हो उठा। सहसा ही वह ससुराल की चीजों से गहरा लगाव महसूस करने लगे। इस रूमाल को जरूर प्रभा ने अपने हाथ से छुआ होगा। उनका जी चाहा कि रूमाल को हाथ में लेकर चूम लें। इस भेंट को देखकर उनका मन प्रभा से मिलने के लिए बेताब होने लगा। वीरजी को महसूस हुआ, जैसे प्रभा ने अपने गोरे गोरे हाथों से इन चीजों को करीने से सजाकर रखा होगा।
पारिवारिक प्रेम की धारा (Parivaaric Prem ki Dhaara): वीरजी के चरित्र का सबसे प्रमुख पहलू उनका पारिवारिक प्रेम है। वे अपने गरीब चाचा मंगलसेन से गहरा लगाव रखते हैं। उनके लिए सामाजिक या आर्थिक अंतर मायने नहीं रखते। जब बाबूजी चाचा मंगलसेन को सगाई में शामिल करने से इनकार करते हैं, तो वीरजी दृढ़ता से उनका विरोध करते हैं। यह दृश्य वीरजी के अटूट पारिवारिक प्रेम को उजागर करता है।
कथनी और करनी में एकरूपता: वीरजी केवल बातें करने वाला युवक नहीं है, बल्कि अपने सिद्धांतों पर चलने वाला दृढ़ निश्चयी व्यक्ति है। उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। माता-पिता से भी वह यही अपेक्षा रखता है। अपनी सगाई में सादगी बनाए रखने और दहेज न लेने के अपने फैसले पर वह अडिग रहता है। वह बाबू जी से स्पष्ट कहता है, "मैंने कह दिया, पिताजी, आप अकेले जाइए और सवा रुपया लेकर सगाई डलवा लाइए।"
खून के रिश्तों का हिमायती: वीरजी मानवतावादी युवा है और खून के रिश्तों की अहमियत समझता है। वह गरीब और उपेक्षित चाचा मंगलसेन को सगाई में अपने पिता के साथ भेजने का निर्णय लेता है। वह बाबू जी सेस्पष्ट कहता है, "यदि आप अकेले नहीं जाना चाहते तो चाचाजी को साथ ले जाइए। बस दो जने चले जाएँ।" एक अन्य दृश्य में वह अपनी माँ से कहता है, "माँजी, अभी तो आप कह रही थीं, खून का रिश्ता है । किधर गया खून का रिश्ता? चाचाजी गरीब हैं, इसीलिए?"
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