आन का मान' नाटक के प्रमुख पात्र (दुर्गादास राठौर) का चरित्र-चित्रण कीजिए: श्री हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित "आन का मान" नाटक के केंद्रीय पात्र तथा नायक
आन का मान' नाटक के प्रमुख पात्र (दुर्गादास राठौर) का चरित्र-चित्रण कीजिए
श्री हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित "आन का मान" नाटक के केंद्रीय पात्र तथा नायक वीर दुर्गादास राठौर हैं। नाटक का सम्पूर्ण घटनाक्रम इनके चारों ओर ही घूमता है। उनके व्यक्तित्व में उच्च कोटि के मानवीय गुण विद्यमान हैं। दुर्गादास न केवल एक वीर योद्धा हैं बल्कि आदर्शों का भी प्रतीक हैं। आइए उनके चरित्र की विभिन्न विशेषताओं को देखें:
वीर दुर्गादास राठौर के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं:
मानवतावादी दृष्टिकोण: दुर्गादास एक ऐसे सच्चे और उदार मानव हैं जो मानवता को सर्वोपरि मानते हैं. धर्म भले ही भिन्न हो, पर वे किसी भी ऐसे सिद्धांत का समर्थन नहीं करते जो इंसानियत के खिलाफ हो. औरंगजेब के बेटे को अपना मित्र बना लेना इसका जीता जागता उदाहरण है. प्राणों की बाजी लगाकर अकबर द्वितीय की बेटी सफीयत की रक्षा करना उनकी इसी मानवतावादी सोच का परिचायक है. उनके शब्दों में, "मानवता का मानव के साथ जो नाता है, वह स्वार्थ का नाता नहीं, शाहजादा हुजूर!"
सच्चा मित्र: वीर दुर्गादास एक सच्चे मित्र हैं। औरंगजेब का पुत्र अकबर द्वितीय उनका मित्र है। वे मित्रता को ईमानदारी और सच्चाई से निभाते हैं। जब अकबर द्वितीय के सभी साथी उसका साथ छोड़ देते हैं, तब दुर्गादास सच्चे मित्र की तरह उसके साथ खड़े रहते हैं। वे अकबर द्वितीय को औरंगजेब के हाथों से बचाने के लिए उसे ईरान भेज देते हैं।
हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक: दुर्गादास धार्मिक भेदभाव में विश्वास नहीं रखते। धार्मिक भेदभाव की खाई उन्हें मंजूर नहीं। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक हैं। वे इन संस्कृतियों के बीच खींची गई दीवार को तोड़ना चाहते हैं, एक ऐसा समाज बनाना चाहते हैं जहां सभी मिलजुलकर रहें। उनकी दृष्टि में मानवता ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है। यह स्पष्ट हो जाता है जब वे कहते हैं, "न केवल मुसलमान ही भारत हैं, और न केवल हिन्दू ही। दोनों को यहीं जीना है, यहीं मरना है।"
स्वामिभक्त और निःस्वार्थ: दुर्गादास अपने स्वामी के प्रति पूर्ण समर्पित हैं। वे निस्वार्थ भाव से उनकी सेवा करते हैं। अपने गुणों को दांव पर लगाकर वे कुंवर अजीतसिंह की रक्षा करते हैं और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाते हैं।कासिम उनके बारे में सत्य ही कहता है, "संसार भर में हाथ में दीपक लेकर घूम आएँगे, तब भी दुर्गादास जैसा शुभचिन्तक, वीर, स्वामिभक्त और निश्छल व्यक्ति न पाएँगे।"
सत्य, न्याय और राष्ट्रप्रेम: दुर्गादास सत्य के प्रतीक हैं। न्याय में उनका दृढ़ विश्वास है और वे सच्चे देशभक्त हैं।उनका यह कथन उनकी देशभक्ति और न्यायप्रियता को दर्शाता है, "राजपूतों की तलवार सदा सत्य, न्याय, स्वाभिमान और स्वदेश की रक्षक होकर रही है।"
आन का पक्का राजपूत: एक सच्चे राजपूत के रूप में, दुर्गादास अपने वचनों के प्रति दृढ़ हैं। उनके लिए, "मान रखना राजपूत की आन होती है और इस आन का मान रखना उसके जीवन का व्रत होता है।" यह वचन उनके चरित्र की नींव है, जिस पर उनका पूरा जीवन टिका हुआ है।
कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक: दुर्गादास कर्तव्यनिष्ठा की मूर्ति हैं। वे परिस्थिति कैसी भी हो, अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखते हैं। औरंगजेब भी उनकी इस कर्तव्यनिष्ठा का सम्मान करता है।
सुशासन का प्रबल समर्थक: दुर्गादास सुव्यवस्था और अच्छे शासन के प्रबल समर्थक हैं। उनका मानना है कि सुशासन ही प्रजा के सुख का आधार होता है। वे कहते हैं, "सुशासन को प्रजा; राजा का प्यार और भगवान का वरदान मानती है।"
राष्ट्रीयता की भावना: दुर्गादास के हृदय में राष्ट्रीयता का भाव प्रज्वलित है। वे भारत को सिर्फ हिंदुओं या मुसलमानों का देश नहीं मानते। उनका सपना एक ऐसे भारत का निर्माण करना है जहां सभी धर्मों और समुदायों के लोग सौहार्द्रपूर्ण ढंग से रह सकें। वे कहते हैं, “न केवल मुसलमान ही भारत हैं, और न केवल हिन्दू ही। दोनों को यहीं जीना है, यहीं मरना है।”
निष्कर्ष: "आन का मान" नाटक में वीर दुर्गादास का चरित्र आदर्शों से युक्त है। वह एक सच्चा देशभक्त, वीर योद्धा और निष्ठावान मित्र है। नाटक में धार्मिक सद्भावना, राष्ट्रीयता और मानवतावाद जैसे महत्वपूर्ण विषयों को उजागर किया गया है।
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