आन का मान’ नाटक के आधार पर औरंगजेब का चरित्र-चित्रण कीजिए: श्री हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित ‘आन का मान’ नाटक में औरंगजेब को एक खलनायक तथा वीर दुर्गादा
आन का मान’ नाटक के आधार पर औरंगजेब का चरित्र-चित्रण कीजिए।
श्री हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित ‘आन का मान’ नाटक में औरंगजेब को एक खलनायक तथा वीर दुर्गादास राठौर के प्रतिद्वंदी के रूप में चित्रित किया गया है। वह एक महत्वाकांक्षी बादशाह है जिसे पूरे भारत पर राज करने की प्रबल इच्छा है। लेकिन यह महत्वाकांक्षा उसे कठोर और क्रूर बना देती है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. क्रूर और निर्दयी शासक: सत्ता हथियाने के लिए औरंगजेब किसी भी हद तक जा सकते थे। उन्होंने अपने भाइयों दारा और शुजा को मौत के घाट उतारा था। अपने पिता शाहजहाँ, बेटे कामबख्श और बेटी जेबुन्निसा को भी उन्होंने कैद कर लिया था। यह दर्शाता है कि सत्ता के लिए वह खून के रिश्तों को भी ताक पर रख सकते थे।उनका शासन अत्याचारों से भरा हुआ था, जिससे जनता त्रस्त थी।
2. धार्मिक संकीर्णता: धर्म के मामले में औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। उनके लिए इस्लाम ही एकमात्र सच्चा धर्म था। इस दृढ़ विश्वास ने उन्हें असहिष्णु बना दिया। वह हिंदू धर्म और संस्कृति के प्रति घृणा रखते थे और अपने पूरे शासनकाल में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने और लोगों को जबरन धर्मांतरण कराने की नीतियों को लागू करते रहे। वह जोधपुर के कुमार अजीतसिंह को भी मुसलमान बनाना चाहते है।
3. सादा जीवन: विलासिता से दूर औरंगजेब सरल जीवन व्यतीत करने का पक्षधर था। वह शाही खजाने से पैसे नहीं लेता था बल्कि टोपी सीकर और कुरान की आयतें लिखकर अपना गुजारा चलाता था।
4. आत्मग्लानि से ग्रस्त: नाटक में दिखाया गया है कि वृद्धावस्था में, औरंगजेब को अपने नृशंस कार्यों पर पश्चाताप होता है। उसे अपने किए पर दुख होता है। अपनी वसीयत में, वह अपने पुत्रों से क्षमा मांगता है और अपने पुत्र अकबर द्वितीय को गले लगाने के लिए आतुर रहता है जो ईरान चला गया है। मेहरुन्निसा से वह कहता है कि "औरंगजेब बातों के जहर से मरने वाला नहीं है।" मेहर द्वारा दंडित किए जाने पर वह कहता है, "हाथ थक गए हैं बेटी! सिर काटते-काटते।" ये कथन उसके भीतर के द्वंद्व को उजागर करते हैं।
5. स्नेहसिक्त पिता: युवावस्था में अपने पिता और बच्चों के प्रति क्रूरता बरतने वाले औरंगजेब में बुढ़ापे में स्नेह की झलक दिखाई देती है। ईरान भागे अपने बेटे अकबर को वापस लाने और अपने परिवार से मिलने की उनकी तीव्र इच्छा यह दर्शाती है कि उनके हृदय में कहीं प्रेम का भाव भी था।
निष्कर्ष:
नाटक में औरंगजेब एक कठोर शासक के रूप में सामने आते हैं, मगर अंत में उनके चरित्र में परिवर्तन भी दिखाई देता है, वह दयालु एवं स्नेही व्यक्ति के रूप में बदल जाता है।
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