मुक्ति दूत' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए: डॉ. राजेन्द्र मिश्र द्वारा रचित 'मुक्तिदूत' नामक खण्डकाव्य गाँधी जी के जीवन दर्शन का एक पक्ष चित्
मुक्ति दूत' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
मुक्ति दूत' खण्डकाव्य की सारांश: डॉ. राजेन्द्र मिश्र द्वारा रचित 'मुक्तिदूत' नामक खण्डकाव्य गाँधी जी के जीवन दर्शन का एक पक्ष चित्रांकित करता है। इस कथानक की घटनाएँ सत्य एवं ऐतिहासिक हैं । कवि ने इसके कथानक को पाँच सर्गों में विभाजित किया है। प्रथम सर्ग में कवि ने महात्मा गाँधी के अलौकिक एवं मानवीय स्वरूप की विवेचना की है। पराधीनता के कारण उस समय भारत की दशा अत्यन्त दयनीय थी। आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सभी परिस्थितियों में भारत का शोषण हो रहा था। इन्ही अन्यायों के समापन के लिए मोहनदास नाम से एक महान विभूति का जन्म हुआ । द्वितीय सर्ग में गाँधीजी की मनोदशा का चित्रण किया गया है। उनका हृदय यहाँ के निवासियों की दयनीय दशा को देखकर व्यथित और उनके उद्धार के लिए चिन्तित था । तृतीय सर्ग में अंग्रेजो की दमन नीति के प्रति गाँधी जी का विरोध व्यक्त हुआ है। देश में अंग्रेजो का शासन था और उनके अत्याचार चरम सीमा पर थे। भारतीयों की दयनीय दशा देखकर गाँधीजी का हृदय द्रवित हो उठा उनकी आँखों में खून उतर आया। इस युग पुरूष क्रोध का जहर पीकर सभी को अमृतमय आशा प्रदान थी और यह निश्चित कर लिया कि अंग्रेजों को अब भारत में अधिक दिनों तक नहीं रहने देगें। चतुर्थ सर्ग में भारत की स्वतंत्रता के लिए गाँधीजी द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलनो का वर्णन है। असहयोग आन्दोलन को देखकर अंग्रेजों को निराशा हुयी। उन्होने भारतीयों पर 'साइमन कमीशन' थोप दिया। मुक्तिदूत के पंचम सर्ग में स्वतंत्रता प्राप्ति तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है। कारागार में गाँधीजी के अस्वस्थ होने के कारण सरकार ने उन्हे मुक्त कर दिया। सन् 1947 ई. में प्रधानमंत्री ने जून 1947 ई. से पूर्व अंग्रेजो के भारत छोड़ने की घोषणा की। भारत में हर्षोल्लास छा गया। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया और देश की बागडोर जवाहर लाल नेहरू के हाथों में आ गयी। गाँधीजी ने अनुभव किया कि उनका स्वतंत्रता का लक्ष्य पूर्ण हो गया। अत: वे संघर्षपूर्ण राजनीति से अलग हो गये।
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