बारिश की एक शाम पर निबंध - Barish ki ek Shaam par Nibandh: ऐसे तो वर्षा ऋतु निःसर्ग सुन्दरी है लेकिन बारिश की शाम या रात कभी-कभी अतिशय सुहावनी लगती ह
बारिश की एक शाम पर निबंध - Barish ki ek Shaam par Nibandh
वर्षा ऋतु अपने सजल सौन्दर्य के कारण ऋतुओं की रानी मानी जाती है। यह ऋतु सबके मन को भाती है। वर्षा का आगमन बड़ा ही सुखद तथा शीतल आनन्द प्रदान कर है। कली-कली, फूल-फूल, पेड़-पेड़ तथा धरा का कण-कण वर्षा ऋतु का खुले दिल से स्वागत करते हैं।
ऐसे तो वर्षा ऋतु निःसर्ग सुन्दरी है लेकिन बारिश की शाम या रात कभी-कभी अतिशय सुहावनी लगती है। बारिश की शाम अत्यन्त ही लुभावनी लगती है। शाम के समय उमड़ती -घुमड़ती घटा के प्रलयंकारी रूप को देखकर घर से बाहर रहने वाले लोग जल्दी-जल्दी घर लौट आते हैं। देखते- देखते हवा की गतिशीलता थोड़ी बढ़ जाती है। घटाओं में कम्पन छा जाता है। लगता है मानो बादल लटककर धरती पर चले आएँगे। फिर तो बूँदा-बाँदी शुरू और उसके बाद तड़ातड़ बूँदों का आघात प्रारम्भ हो जाता है। शाम की शान्ति और नीरवता पर जल-बूँदों के आघात से उत्पन्न अशान्ति एक अजीब विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न करती है। कभी भगवती वर्षा के कारण संध्या में ही रात्रि की भयंकरता का आभास होने लगता है। यदि हल्दी-फुल्की वर्षा हुई तो ठीक, वर्ना चलो दिन भर के उमस से त्राण तो मिला। अब रात्रि सुशीतल होगी, लेकिन यदि वर्षा प्रचण्ड रूप में अपनी स्वरूप दिखाती रही तो वर्षा की शाम और रात्रि अतिशय भयावह हो जाती है।
वस्तुतः बारिश की शाम और रात का मजा उन्हीं लोगों के लिए है, जिनके मकान चुस्त-दुरुस्त हैं। घर में खाद्य सामग्री पर्याप्त हैं। सुरक्षा के साधन मौजूद हैं। जो इन विभिन्न साधनों से हीन हैं, उनके लिए वर्षा की संध्या और वर्षा की रात तो प्रलय की घण्टी सुनाती आती है। झोपड़ियों में रहने वाले गरीब की रात को प्रलय की रात के रूप में मनाने के लिए बाध्य जाते हैं। उन्हें हर क्षण डर लगा रहता है कि वर्षा की मार से कहीं उनकी झोपड़ी न बैठ जाए। वहाँ रात भर वर्षा होती रहती है और यहाँ ये बेचारे रात भर जागकर भोर का स्वागत करते हैं। अपनी चूती हुई झोंपड़ी में सपरिवार रात बिताते हैं। उनके कपड़े भीगे रहते हैं। वे बरसात की रात को प्रलय की रात और बरसात की संध्या को प्रलय की संध्या मानते हैं।
गाँव-देहातों में बरसात की रात असुरक्षा तथा चोरी- डकैती की रात होती है। बरसात की शाम ढलते ही इसकी सम्भावना बनने लगती है। शहरों में भी बरसात की शाम और रात हत्याओं तथा डकैतियों की शाम और रात होती है, लेकिन भावना के तल पर बरसात की शाम बरसात की रात मादक होती है। वियोग, पीड़ा से पीड़ित इन्सान के लिए बरसात की शाम और बरसात की रात अंगारों की शाम तथा नागिन की रात हो जाती है। मानो बरसात की रात शामत का पैगाम लेकर आती है।
वस्तुतः बारिश की शाम या रात हमारी मानसिक, वैचारिक तथा भौतिक स्थिति और परिवेश के अनुकूल ही प्रभावकारी होती है। अन्य प्राकृतिक उपादानों की तरह यह भी एक अविस्मरणीय उपादान के रूप में हमारे जीवन के साथ हुड़ी हुई हैं। काश मैं एक कवि होता ! आपको सही बता देता है कि बरसात की संध्या या रात क्या और कैसी होती है।
COMMENTS