विपणन का अर्थ परिभाषा और प्रकृति बताइए: विपणन उन व्यवसायिक क्रियाओं का निष्पादन करना है जो उत्पादक से उपभोक्ता के बीच वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह का
विपणन का अर्थ परिभाषा और प्रकृति बताइए (Define Marketing in Hindi)
विपणन का अर्थ: विपणन व्यापारिक गतिविधियों की एक ऐसी प्रणाली है जो कि वर्तमान तथा संभावित उपभोक्ताओं के लिए संतोषप्रद प्रदार्थों के उत्पादन की योजना, मूल्य निर्धारण, उत्पादन वृद्धि एवं वितरण से संबंधित है विपणन को शुरुआती दौर में में सिर्फ वस्तुओं के क्रय-विक्रय तक ही सीमित माना जाता था जैसे जैसे बाजार में परिवर्तन आया नई अवधारणा बनी। विपणन की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
विपणन की परिभाषाएं (Definition of Marketing in Hindi)
1. अमेरिकन मार्केटिंग ऐसोसिएशन:- "विपणन उन व्यवसायिक क्रियाओं का निष्पादन करना है जो उत्पादक से उपभोक्ता के बीच वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह का नियमन करती है।"
2. पायले के अनुसार:- "विपणन में क्रय-विक्रय दोनों ही क्रियाएँ सम्मिलित होता है।"
3. व्हीलर के अनुसार:- "विपणन उन समस्त साधनों एवं क्रियाओं से संबंधित है जिनसे वस्तुएँ एवं सेवाएँ उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचाती हैं।"
ये परिभाषाएँ पूर्व अवधारणाओं पर आधारित है जब उत्पादन को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता था, तब विपणन का आंकलन नही होता था किंतु वर्तमान में प्रतिस्पर्धा बढ़ती ही जा रही है तथा बाजार में नित नये परिवर्तन हो रहे हैं तो परिभाषाओं में भी नई सोच का विलय हुआ है।
विपणन की नवीन परिभाषाएँ :-
1. विलियम जे स्टेन्टन के अनुसार :- "विपणन उन समस्त आपसी प्रभावकारी व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली है, जो विद्यमान एवं भावी ग्राहकों की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने वाले उत्पादों तथा सेवाओं का नियोजन करने मूल्य निर्धारण करने प्रचार-प्रसार करने तथा वितरण करने के लिए की जाती है। "
2. प्रो. पाल मजूर के अनुसार :- "समाज को जीवन स्तर प्रदान करना ही विपणन है।"
3. फिलिप कोटलर के अनुसार :- "विपणन वह मानवीय क्रिया है जो विनिमय प्रक्रियाओं के द्वारा आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की संतुष्टि के लिए की जाती है। "
4. कण्डिक स्टिल तथा गोवोनी के मतानुसार :- "विपणन वह प्रबंधकीय प्रक्रिया है जिसके द्वारा उत्पादों का बाजारों से मिलान किया जाता है तथा उसी के अनुरूप स्वामित्व का हस्तांतरण किया जाता है। "
5. हैन्सन के अनुसार :- "विपणन उपभोक्ता की आवश्यकताओं को खोजने एवं उनको वस्तुओं तथा सेवाओं में परिवर्तित करने की क्रिया है। तदुपरान्त अधिकाधिक उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं से अधिकाधिक आनंद प्राप्त करना है। "
विपणन की प्रकृति (NATURE OF MARKETING)
प्रायः लेखकों ने विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र दोनों का एक ही शीर्षक के अन्तर्गत वर्णन किया है तथा छात्र को यह बताने का प्रयास किया है कि इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है अर्थात् दोनों एक ही हैं अर्थात् दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है। यदि देखा जाये तो प्रकृति किसी विषय-वस्तु के स्वभाव को व्यक्त करती है। इस दृष्टिकोण से विपणन की प्रकृति का निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता है :
(1) मानवीय क्रिया (Human Activity ) – विपणन मूल रूप में एक मानवीय क्रिया है जिसके अन्तर्गत मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति मानवीय क्रियाओं द्वारा की जाती है। यह मानवीय सन्तुष्टि के लिए किया गया मानवीय प्रयास है।
(2) विनिमय प्रक्रिया (Exchange Process ) — विपणन एक विनिमय प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उत्पादक एवं सम्भावित उपभोक्ता के मध्य मूल्य के बदले वस्तु, सेवा अथवा अन्य उपयोगी वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है।
(3) सामाजिक-आर्थिक क्रिया (Socio-economic Activity ) — विपणन एक सामाजिक-आर्थिक क्रिया है जिसका उद्देश्य समाज के प्राणियों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करके उचित लाभ कमाना है।
(4) गतिशील प्रक्रिया (Dynamic Process ) — विपणन सर्वाधिक गतिशील प्रक्रिया है । विपणनकर्ता सदैव तेजी से बदलते हुए फैशन, बाजार प्रवृत्तियों, ग्राहक रुचियों, ग्राहक माँगों, पसन्द एवं आधुनिक परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित करता है।
(5) विपणन कला एवं विज्ञान दोनों (Art and Science Both ) – यदि देखा जाए तो विपणन कला एवं विज्ञान दोनों ही है। विपणन सही स्थान पर, सही रूप से, सही हाथों तक सही समय पर, सही मूल्यों पर एवं सही किस्म का माल पहुँचाने की कला है। साथ ही यह गतिशील एवं विकासशील विज्ञान भी है क्योंकि यह पूर्ति को माँग के अनुरूप बनाये रखने पर जोर देता है। इस सबके होने पर भी विपणन को भौतिक विज्ञान की श्रेणी में रखना उपयुक्त नहीं है। हम इसे चिकित्सा तथा इन्जीनियरिंग की श्रेणी में रख सकते हैं।
(6) उपयोगिताओं का सृजन करना (Creation of Utilities ) — विपणन उपयोगिताओं का सृजन करने वाली क्रिया है। अर्थशास्त्र के छात्र जानते हैं कि उपयोगिता मुख्य रूप में निम्न चार प्रकार की होती है— (i) रूप उपयोगिता (Form Utility), (ii) समय उपयोगिता (Time Utility), (iii) स्थान उपयोगिता (Place Utility) तथा (iv) स्वामित्व उपयोगिता (Ownership Utility)। विपणन इन चारों प्रकार की उपयोगिताओं का सृजन करती है। रिचर्ड बसबर्क (Richard Busbirk) के अनुसार, “विपणन एक सुग्रथित कार्य प्रणाली है जो वस्तुओं में रूप, स्थान, समय तथा स्वामित्व उपयोगिताओं द्वारा मूल्य उत्पन्न करती है।"
(7) जीवन-स्तर प्रदान करना ( Delivery of Standard of Living) – पॉल मजूर ( Paul Mazur) के अनुसार, “विपणन समाज को जीवन-स्तर प्रदान करता है।" जिस क्षेत्र में विपणन जितना अधिक प्रगति कर गया है, उस क्षेत्र के लोगों का जीवन-स्तर उतना ही ऊँचा है। इसकी स्पष्ट झलक मुम्बई नगर में रहने वाले लोगों के रहन-सहन तथा मुम्बई में ही झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के रहन-सहन के स्तर को देखने में मिलती है। विकसित देशों में निवास करने वाले व्यक्ति आज उच्च जीवन स्तर का उपभोग इस कारण कर रहे हैं क्योंकि वहाँ पर विपणन प्रगति की चरम सीमा पर है। इसके विपरीत, अविकसित देशों (जैसे – अफ्रीका, बांग्लादेश आदि) में रहने वाले व्यक्ति निम्न श्रेणी के जीवन स्तर का उपभोग इस कारण कर रहे हैं क्योंकि वहाँ पर विपणन अत्यन्त पिछड़ी अवस्था में है । इन देशों में न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति भी कठिनाई से हो पाती है।
(8) विपणन एक प्रणाली है (Marketing is a System ) — विपणन की प्रणालीकृत प्रकृति के अनुसार विपणन क ऐसी प्रणाली है जिसमें अनेक क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो परस्पर सम्बन्धित हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं, जैसे— सन्तुलन एवं प्रभावी विपणन संगठन की स्थापना करना।
फिलिप कोटलर के अनुसार, “विपणन प्रणाली उन महत्वपूर्ण संस्थाओं और प्रवाहों का समूह है जोकि एक संगठन को उसके बाजारों से जोड़ता है।"
(9) आय सृजन करना (Generation of Revenue ) — विपणन की इस प्रकृति के अनुसार, आय का सृजन करने वाली सभी क्रियाएँ विपणन में आती हैं। विपणन से आय का सृजन होता है और आय से व्यवसाय का विकास होता है जो 'दिन दूनी रात चौगुनी' गति से पनपता है ।
(10) विपणन क्रियात्मक है (Marketing is Functional) – विपणन की इस प्रकृति के अनुसार विपणन उन क्रियाकलापों का अध्ययन करता है जो उत्पादन केन्द्रों से उपभोग केन्द्रों तक वस्तुएँ पहुँचाने से सम्बन्धित होती हैं।
(11) ग्राहकोन्मुखी प्रक्रिया (Consumer-orinted Process ) — विपणन की आधुनिक प्रकृति के अनुसार विपणन उपभोक्ताओं की माँगों को सन्तुष्टि प्रदान करता है। यदि देखा जाये तो समूचा उत्पादन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं, इच्छाओं एवं रुचियों के अनुरूप ही किया जाता है । इस दृष्टि से यह ग्राहकोन्मुखी प्रक्रिया है क्योंकि इसका केन्द्र बिन्दु ग्राहक है। विपणन का प्रारम्भ एवं अन्त ग्राहक से ही होता है।
(12) विपणन व्यावसायिक दर्शन है (Marketing is Business Philosophy) – विपणन की इस प्रकृति के अनुसार, ‘“विपणन एक आधारभूत व्यावसायिक दर्शन है।” विलियम जे. स्टेण्टन (William J. Stanton) के अनुसार, “विपणन एक दर्शन है, एक मन:स्थिति अथवा व्यावसायिक चिन्तन की विधि है । "
(13) लक्ष्य-प्रधान प्रक्रिया (Goal-oriented Process ) — अन्य व्यावसायिक क्रियाओं की तरह विपणन भी लक्ष्य - प्रधान क्रिया है जिसके अन्तर्गत कुछ लाभदायक परिणामों की प्राप्ति के प्रयास किये जाते हैं। विपणन का अन्तिम लक्ष्य मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि द्वारा लाभों को अर्जित करना है, जैसे— परिस्थितियों के अनुसार विपणन समस्याओं का अध्ययन करना एवं उनके समाधान प्रस्तुत करना, विपणन विधियों एवं उनको लागू करने के सम्बन्ध में मार्गदर्शक नीतियों को सुझाना, विपणन की वर्तमान प्रणाली में कमियों का विश्लेषण करना आदि ।
(14) अन्तर-विषयक अवधारणा (Inter-disciplinary Concept ) — विपणन की अन्तर - विषयक अवधारणा है। इसका आशय यह है कि विपणन के अध्ययन एवं व्यवहार में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि विषयों का ज्ञान होना परम आवश्यक है।
(15) व्यापक क्षेत्र (Wide Scope ) — विपणन का अत्यधिक व्यापक है। इसमें उत्पादन से पूर्व एवं विक्रय के उपरान्त सम्पन्न होने वाली समस्त क्रियाएँ, जैसे – उत्पाद की ग्राहक सन्तुष्टता, विक्रयोपरान्त ग्राहक सेवाएँ, निरन्तर उत्पादक-ग्राहक सम्पर्क होना परम आवश्यक हैं।
(17) गतिशील प्रक्रिया :- विपणन की प्रक्रिया कभी रुकती नही अनवरत् चलित रहती है। विपणनकर्ता बाजार की परिवर्तित होने वाली ग्राहकों की आवश्यकताओं फैशन, पसंद, रुचियों पर ध्यान रखकर वस्तुओं में परिवर्तन करते रहते हैं । अतः इसे गतिशील प्रक्रिया कहा जाता है।
(18) सार्वभौमिक क्रिया :- यह एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। हर एक देश में इस प्रक्रिया का होना एक अनिवार्य क्रिया है जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बनाए रखने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। विपणन के बिना किसी भी देश समाज को सुचारु रूप से नहीं चलाया जा सकता है।
(19) विभिन्न क्रियाओं का समायोजन :- विपणन में विभिन्न क्रियाओं का समायोजन है जिसके बिना विपणन पूर्ण नहीं होता है जैसे उत्पाद व वस्तु नियोजन एवं उन्नति, विपणन अनुसंधान, भौतिक वितरण, मूल्य निर्धारण, उत्पाद भण्डारण, विज्ञापन, प्रचार, विक्रय संबंधित आदि सम्मिलित है।
12. उपभोक्ता प्रधान प्रक्रिया :- विपणन पूर्णतः उपभोक्ता पर केन्द्रीत होता है इसकी सभी गतिविधियाँ उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं, माँग व व्यवहार पर आधारित होता है। उपभोक्ताओं की इच्छा व आवश्यकताओं से प्रारंभ होकर उनकी संतुष्टि पर जानकर विपणन कार्य पूर्ण होता है।
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