समष्टि वृद्धि वक्र (संभार तंत्र वृद्धि) की व्याख्या समीकरण सहित कीजिए: इस प्रकार के वृद्धि प्रतिरूप में किसी समष्टि में जीवों की संख्या प्रारम्भ में ध
समष्टि वृद्धि वक्र (संभार तंत्र वृद्धि) की व्याख्या समीकरण सहित कीजिए
संभार-तंत्र या समष्टि वृद्धि वक्र S वक्र या सिग्मॉइड वृद्धि चक्र (S-curve or Sigmoid Growth Curve): इस प्रकार के वृद्धि प्रतिरूप में किसी समष्टि में जीवों की संख्या प्रारम्भ में धीरे-धीरे बढ़ती है, यह वृद्धि धनात्मक प्रावस्था में होती है। परन्तु बाद में ऋणात्मक प्रावस्था में धीरे-धीरे समष्टि घनत्व घटती है। अन्त में वृद्धि दर शून्य हो जाती है, जिस पर समष्टि वृद्धि स्थायी हो जाती है।
जब जीव अपने आपको वातावरण के अनुरूप व्यवस्थित करता है, तो वृद्धि दर धीमी गति से होती है। असीमित संसाधन की उपस्थिति में वृद्धि दर तीव्र हो जाती है एवं अन्ततः पर्यावरणीय प्रतिरोधों के बढ़ने एवं संसाधन में कमी के कारण वृद्धि दर घटने लगती है एवं एक समय पर स्थायी हो जाती है।
अतः समष्टियों की वृद्धि दर विशिष्ट स्थान में उपस्थित संसाधनों की मात्रा पर निर्भर करता है। स्थायीकरण प्रावस्था अथवा शून्य वृद्धि दर को स्थायी मान या संतृप्त मान 'k' कहा जाता है। इसके लिए निम्न समीकरण प्रस्तुत किया गया है-
J-वक्र (J-Curve) - किसी नयी वातावरणीय स्थान अथवा आवास में, विशिष्ट जीव की समष्टि आकार चार घातांकीय रूप से तेजी से बढ़ती है, लेकिन पर्यावरणीय प्रतिरोध जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रजनन प्रावस्था का समाप्त हो जाना आदि के प्रभाव से समष्टि आकार अचानक से घट जाती है, या वृद्धि दर रुक जाती है। इस प्रकार की समष्टि के लिए J - आकार का वक्र प्राप्त होता है । J- आकार में समष्टि वृद्धि को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-
चार घातांकी समीकरण में समाकलन सिद्धान्त की सहायता से इस समीकरण के समाकलिक रूप को दिया जा सकता है। जहाँ,
प्रायः समष्टि वृद्धि S-आकार की ही होती है । उदाहरण के लिए मनुष्य का उद्विकास एवं सतत् विकास S-आकार के वक्र को प्रदर्शित करता है।
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