राष्ट्रीय एकता का अर्थ परिभाषा तथा राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका बताइए - राष्ट्रीय एकता की भावना वास्तव में इस ओर इंगित करती है कि व्यक्ति राष्ट
राष्ट्रीय एकता का अर्थ परिभाषा तथा राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका बताइए
राष्ट्रीय एकता का अर्थ (Meaning of National Integration) - राष्ट्रीय एकता की भावना वास्तव में इस ओर इंगित करती है कि व्यक्ति राष्ट्र के लिए है, राष्ट्र व्यक्ति के लिए नहीं। यह वह भावना है जो व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत हितों को त्याग कर राष्ट्र-कल्याण के लिए प्रेरित करती है। इसका तात्पर्य एक राष्ट्र के निवासियों की उस आन्तरिक एकता से है, जिसमें वह अपनी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, संस्कृति एवं प्रान्त के संकीर्ण हितों को भूलकर सम्पूर्ण राष्ट्र के हितों का ध्यान रखते हैं। इसी कारण विचारकों का मानना है कि राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक स्थिति एवं एकीकरण की भावना है जो व्यक्ति को विघटनकारी प्रवृत्तियों से दूर रखती है। यह भावना व्यक्तियों के अंदर उन गुणों को पल्लवित करती है जो राष्ट्र के विकास में सहयोग देते हैं। वास्तव में यदि देखा जाए तो भारतवर्ष में राष्ट्रीय एकता एक सर्वोपरि आवश्यकता है। डॉ. श्रीमाली ने ठीक ही कहा है- “यदि हम मुश्किल से मिलने वाली अपनी आजादी की सुरक्षा एवं समृद्धि चाहते हैं तो हमें राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया को जारी रखना और शक्तिशाली बनाना पड़ेगा।
राष्ट्रीय एकता की परिभाषा - Definition of National Integration in Hindi
1. ब्रूबेकर के अनुसार- “राष्ट्रीयता वह सम्बोध है, जो विद्या की जागृति के प्रमुख रूप धारण कर रहा है, विशेष तौर पर फ्रांसीसी क्रान्ति के बाद। सामान्य रूप यह देशभक्तित की बात नहीं करता वरन् यह स्वामिभक्ति से सम्बन्ध रखता है। साथ ही साथ एकता के अतिरिक्त इसमें प्रजाति, इतिहास, भाषा, संस्कृति एवं परम्पराओं की भी एकता निहित होती है।”
("Nationalism is a term has come into prominence since the renaissance and particularly since the French revolution. It ordinarily indicates a wider scope of loyality than patriotism. In addition to ties of place, nationalism is evidenced by such other ties as race, histoy, language, culture and tradition." - Brubacher)
2. डॉ. वेदी के अनुसार “राष्ट्रीय एकता का अर्थ है- देश के विभिन्न राज्यों के व्यक्तियों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तथा भाषा विषयक विभिन्नताओं को वांछनीय सीमा के अंतर्गत रखना और उनमें भारत की एकता का समावेश करना।"
("National integration means bringing about economic, social, cultural and lingustic differences among the people of various states in the country within tolerable range and imparting to the people a feeling of the oneness of India." - Dr. J.S. Bedi)
3. एम. के. मूर्ति के अनुसार “राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय है देश के नागरिकों में एकता का भाव होना, यह कुछ नहीं है वरन् विभिन्नता में एकता स्थापित करना है। इसमें राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं संवेगात्मक एकता को सम्मिलित किया जाता है।”
("National integration means the feeling of oneness among all the people of the nation. It is nothing but achievement of unity in diversity, it includes political, economic, social, cultural and emotional integration." - S.K. Murty)
राष्ट्रीय एकीकरण में उत्पन्न बाधाओं का उल्लेख कीजिए
भारत में राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधाएं (Obstacles in the way of Nationality in India)
भारत में राष्ट्रीयता का समुचित विकास नहीं हो रहा है। राष्ट्रीयता के विकास के मार्ग में कई कठिनाईयाँ हैं। यहां पर हम केवल चार मुख्य बाधाओं की ओर संकेत करेंगे:-
1. क्षेत्रीयता (Regionalism) - भारत बहुत विशाल देश है। इसमें इस समय अनेक राज्य और कई केन्द्र-शासित क्षेत्र है। व्यक्ति को अपना क्षेत्र बहुत रूचिकर प्रतीत होता है। जहां पर उसने जन्म लिया है, जिस स्थान की मिट्टी में वह पका है, उसके प्रति प्रेम होना स्वाभाविक है। यहां तक तो ठीक है, किन्तु कुछ व्यक्ति इससे कई कदम आगे बढ़ जाते हैं। उनकी समझ में केवल उनका ही क्षेत्र सबसे अच्छा है। दूसरा क्षेत्र निकृष्ट है। वे अपने क्षेत्र के हितों को पूरे देश के हित के सामने भी नहीं त्यागते। यहां पर कठिनाई उत्पन्न हो जाती है और राष्ट्रीयता का विकास नहीं हो पाता ।
2. जातीयता (Castisem ) - भारत में अनेक जातियाँ हैं। प्राचीन काल से व्यावसायिक दृष्टिकोण से भारतीय समाज को चार वर्गों में बाँटा गया था। अब वर्ग तो रहा नहीं। हाँ, वर्ग के नाम पर जन्म से निर्धारित जाति, उपजाति और उपजाति की उपजाति रह गयी है। हम कभी-कभी अपनी जाति के प्रति इतना प्रेम दिखाते हैं कि नियुक्ति, पदोन्नति आदि के समय केवल अपनी जाति के व्यक्ति का ही ध्यान रखते हैं। बड़ी-बड़ी जगहों पर भी ऐसा सुनायी पड़ जाता है। जहां पर जाति के प्रति भक्ति है वहां तो देश-भक्ति भी नहीं पनपेगी, तब राष्ट्रीयता का विकास कैसे संभव है ?
3. साम्प्रदायिकता (Communalism) - भारत में विभिन्न सम्प्रदाय हैं। यहां पर हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी आदि सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। हिन्दुओं में भी सिख, जैन, बौद्ध, कबीरपंथ, गोरखपंथ, आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज, सनातन धर्म आदि सम्प्रदाय हैं। यदि हम किसी सम्प्रदाय विशेष में आस्था रखते हैं तो अच्छा है, लेकिन इस सम्प्रदाय के जोश में दूसरे सम्प्रदायों को हेय, काफिर एवं निकृष्ट समझना ठीक नहीं है। सामाजिक संबंधों में एवं लाभ के पदों पर हमें राष्ट्रीयता के आधार पर कार्य करना चाहिए, न कि साम्प्रदायिकता के आधार पर।
4. भाषावाद (Linguism) - भारत में अनेक भाषाएं हैं। चौदह भाषाओं का उल्लेख संविधान ने किया है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी भी है। हिन्दी जैसी भाषा की अनेक उपभाषाएं या बोलियाँ भी है। हम मातृभाषा बोलते हैं। मातृभाषा से प्रेम होना स्वाभाविक है। किन्तु पूरे राष्ट्र के लिए एक राष्ट्रभाषा का होना आवश्यक है तभी राष्ट्रीयता का समुचित विकास होगा। कभी-कभी हम अपनी मातृभाषा के प्रेम में आकर अन्य भाषाओं की निन्दा करते है और राष्ट्रभाषा के विकास के मार्ग में बाधा उपस्थित करते हैं।
राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका (Role of Education in National Integration Hindi)
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतवर्ष में क्षेत्रीयता, जातीयता, साम्प्रदायिकता एवं भाषावाद की कठिनाईयाँ विद्यमान हैं। राष्ट्रीयता का विकास तभी संभव है, जब हम इन कठिनाईयों पर विजय पाएं। राष्ट्रीयता का विकास करना शिक्षा का आवश्यक कार्य है। विद्यालयों में हम कुछ ऐसे कार्य सकते हैं, जिनमें राष्ट्रगान को प्रोत्साहन मिल सके। आगे इन कार्यों की ओर संकेत किया जा रहा है:-
- प्रतिदिन विद्यालय का कार्य प्रारम्भ होने से पहले 'राष्ट्रगान गाया जाय।
- राष्ट्रीय पर्वों यथा 'स्वतंत्रता दिवस' एवं 'गणतंत्र दिवस' को धूमधाम से मनाया जाय।
- जिन महापुरूषों ने राष्ट्रीय एकता के लिए कार्य किया है, उनके जन्मदिन पर समारोह किये जाएं।
- शिक्षक एवं शिक्षार्थी अपने दैनिक जीवन में राष्ट्रभाषा का अधिकाधिक उपयोग करें।
- यदा-कदा राष्ट्रीय महत्व के व्यक्तियों से राष्ट्रीयता पर व्याख्यान करवाये जाएं।
- छात्रों को भारतीय इतिहास एवं भारतीय संस्कृति से परिचित कराया जाए।
- विद्यालय में जाति, सम्प्रदाय, एवं क्षेत्र के आधार पर पक्षपात न किया जाए। प्रवेश, कक्षोन्नति आदि के समय निष्पक्षता बरती जाए।
- वर्ष में एक या दो बार छात्रों के सहभोज का आयोजन करना जिसमें सभी जाति एवं सम्प्रदाय के छात्र आपस में मिल-जुलकर खानपान कर सकें।
- छात्रों राष्ट्रीय ध्वज के महत्व को बताना। उसके फहराने के अवसर पर पालन किये जाने वाले नियमों से अवगत करना ।
- देश की बुराईयों से परिचित कराकर उन्हें दूर करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करना।
- राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्रीय पुष्प (कमल), राष्ट्रीय पक्षी ( मयूर) के प्रति छात्रों में सम्मान कीभावना उत्पन्न करना।
इस प्रकार हम चाहें तो विद्यालय में राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन दे सकते हैं।
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