विकास और विवृद्धि में अंतर (Vikas aur Vivriddhi mein Antar) विकास का प्रारम्भ विवृद्धि से पहले होता है। विवृद्धि केवल परिपक्वावस्था तक होती है परन्तु
विकास और विवृद्धि में अंतर (Vikas aur Vivriddhi mein Antar)
विकास का अर्थ: विकास का अर्थ गुणात्मक परिर्वतनों से है। विकास की परिभाषा क्रमिक सम्बद्धतापूर्ण परिवर्तनों की प्रकृतिपूर्ण श्रृंखला के रूप में दी जा सकती है। प्रगतिपूर्ण का अर्थ है कि परिवर्तन दिशात्मक होते हैं तथा पृष्ठोन्मुख की अपेक्षा अग्रोन्मुख होते है। एक नवजात 'शिशु का बैठना - उठना और चलना आदि नहीं जानता हैं, परन्तु जैसे-जैसे उसका विकास होने लगता हैं, वह ये सभी क्रियाएँ करना सीख लेता है। अतः कह सकते है कि बालकों में इन क्रियाओं में प्रगतिपूर्ण परिवर्तन (Progressive changes ) हुए है। विकास सम्बन्धी सभी प्रगतिपूर्ण परिवर्तन एक-दूसरे से सम्बन्धित और क्रमबद्ध होते है ।
विवृद्धि का अर्थ: कुछ मनोवैज्ञानिक विकास और विवृद्धि शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में करते है परन्तु वास्तव में यह भिन्न है। विकास की अपेक्षा विवृद्धि एक संकुचित प्रत्यय है। हरलॉक के अनुसार, गर्भधारण के बाद ही गर्भस्थ शिशु में विवृद्धि होने लगती है। यह विवृद्धि गर्भस्थ शिशु के आकार और संरचना में होती है। यह परिपक्वावस्था तक चलती रहती है । विवृद्धि बालक के शरीर और संरचना में ही नहीं होती है बल्कि यह उसके आन्तरिक अंगों और मस्तिष्क में भी होती है। मष्तिष्क में जैसे-जैसे विवृद्धि होती जाती है, बालक में सीखने, स्मरण तथा तर्क आदि की अधिक क्षमता आती जाती है।
विकास तथा विवृद्धि में अंतर यह निम्न प्रकार है
- विकास का प्रारम्भ विवृद्धि से पहले होता है।
- विवृद्धि केवल परिपक्वावस्था तक होती है परन्तु विकास तो जीवन पर्यन्त चलता रहता है।
- विवृद्धि से संरचना में परिवर्तनों का बोध होता है तथा विकास से प्रकार्यों में परिवर्तनों का बोध होता है।
- विवृद्धि में परिवर्तन केवल रचनात्मक होते है, दूसरी ओर विकास में परिवर्तन रचनात्मक भी हो सकते है तथा विनाशात्मक भी।
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