हमारे शरीर में विद्यमान सन्धियों (जोड़ों) में निम्नलिखित गतियाँ होती हैं- 1. संकुचन (Contraction), 2. फैलना (Extension) , 3. पर्यावर्तन (Circumduction
शरीर के जोड़ों की विभिन्न गतियों को परिभाषित कीजिए।
हमारे शरीर में विद्यमान सन्धियों (जोड़ों) में निम्नलिखित गतियाँ होती हैं- 1. संकुचन (Contraction), 2. फैलना (Extension) , 3. पर्यावर्तन (Circumduction), 4. ग्लाइडिंग (Gliding Movement), 5. व्युत्क्रम (Inversion), 6. बहिवर्तन (Eversion)
1. संकुचन (Contraction) - जब एक अंग दूसरे अंग की तरफ खिंचता है तो उसे संकुचन कहा जाता है। उदाहरण के लिए कोहनी को मोड़कर अग्रबाहु को पश्चबाहु के पास लाया जा सकता है। इसे कोहनी का संकुचन कहेंगे।
2. फैलना (Extension) - यह उपर्युक्त क्रिया के विपरीत क्रिया होती है, जैसे - अग्रबाहु का सामने की तरफ फैलने के बाद बाहु से दूर चला जाना ।
3. पर्यावर्तन (Circumduction) - जब कोई अंग अपने अक्ष पर इस प्रकार घूमे कि चारों ओर घूमकर एक शंकु बन जाये तो इस प्रकार की गति को पर्यावर्तन कहते हैं।
4. ग्लाइडिंग (Gliding Movement) - इस प्रकार की गति में एक तल दूसरे तल पर बिना किसी कोणीय अथवा आवर्तन के गति करता है । पर्शुका कशेरुकी जोड़ सिर को थोड़ा सा सरकने देता है। शरीर पर पसलियों की गुलिकाओं तथा कशेरूकाओं की अनुप्रस्थ कण्टिका को भी थोड़ा हिलने देता है ।
5. व्युत्क्रम (Inversion) - इस प्रकार की गति में पैर के तलुवे की गुल्फ अन्दर की ओर गति करती है ।
6. बहिवर्तन (Eversion) - यह गति तब होती है जब पैर के तलुवे की गुल्फ बाहर की ओर गति करती है ।
सन्धियों की उपर्युक्त मुख्य गतियों के अतिरिक्त दो अन्य प्रकार की गतियाँ भी देखी जा सकती है, जिन्हें क्रमशः अभिवर्तन तथा अपवर्तन कहा जाता है। अभिवर्तन (adductin) के अन्तर्गत शरीर के किसी अंग को शरीर की मध्य रेखा की ओर खीचने की क्रिया होती है। इससे भिन्न अपवर्तन ( abduction) के अन्तर्गत शरीर के किसी अंग को शरीर की मध्य रेखा से बाहर की ओर ले जाया जाता है।
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