त्यागपथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए। कवि श्री 'अंचल' ने 'त्यागपथी' नामक खण्डकाव्य की कथावस्तु इतिहास की प्रसिद्ध घटना हर्ष-चरित्र से लिय
त्यागपथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
त्यागपथी' खण्डकाव्य की समीक्षा: कवि श्री 'अंचल' ने 'त्यागपथी' नामक खण्डकाव्य की कथावस्तु इतिहास की प्रसिद्ध घटना हर्ष-चरित्र से लिया है। कथानक के सभी पात्र ऐतिहासिक हैं। बिना किसी काल्पनिक घटना का समावेश किये, केवल ऐतिहासिक तथ्यों और पात्रों के आधार पर सारी कथा की बुनावट में किसी प्रकार की शिथिलता नहीं आने पायी है। कवि खण्डकाव्य के माध्यम से त्याग, स्वदेश-प्रेम, प्रजापालन, धर्म-निरपेक्षता, लोक-कल्याण आदि शाश्वत मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु हर्ष की राज्य-व्यवस्था को एक आदर्श गणतन्त्रात्मक शासन-प्रणाली माना है तथा युग चेतना के लिए अपना प्रेरणादायक स्वर मुखर किया है।
हर्ष की शासन व्यवस्था - हर्षवर्द्धन के युग में धार्मिक कट्टरता थी। बौद्धों और ब्राह्मणों में बराबर संघर्ष होता रहता था। छोटे- छोटे राज्य एक-दूसरे से लड़ते रहते थे। हूणों और यवनों के आक्रमण से देश की शान्ति को बराबर खतरा रहता था। हर्ष ने अपनी वीरता, पराक्रम, साहस, धैर्य और उदारता से देश की कुव्यवस्था में सुधार ला दिया।
छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर हर्ष ने उनका राज्य लिया नहीं, उन्हें लौटा दिया और उन्हें केन्द्रीय एकता के सूत्र में आबद्ध कर दिया। धार्मिक भेद-भाव को मिटाकर हर्ष ने धार्मिक एकता पर बल दिया और एक ऐसी प्रजानीति को जन्म दिया, जो आज के युग के लिए अत्यन्त ही प्रेरणादायक है। यथा-
न बौद्धों- आर्यों में हो कभी संघर्ष कोई।
रहे धर्मैक्य दोनों में विषमता हो न कोई ।।
हर्ष के राज्य में सभी लोग अपने धर्मपालन में स्वतन्त्र थे। शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, शैव सभी मत अपने पारस्परिक मतभेदों को भुलाकर लोक-कल्याण का कार्य करते थे। राज्य में विद्या, कला, विज्ञान की त्रिवेणी बहा करती थी। राज्य में सर्वत्र शान्ति थी—
बही विद्या कला विज्ञान की अनुपम त्रिधारा ।
सदाचारिणी अहिंसक था बना साम्राज्य सारा ।।
रस-निरूपण -‘त्यागपथी' काव्य में करुण, वीर और शान्त रस की ही प्रधानता है। करुण रस की व्यंजना देखिये–
माँ की ममता की मूर्ति राज्यश्री सुकुमारी ।
थी सदा पिता को माँ को प्राणोपम प्यारी ।
शान्त रस का उदाहरण देखिए-
हिंसा सदैव देती है जन्म घृणा को ।
पोषित करती रहती है धनतृष्णा को । ।
वीर रस की व्यंजना देखिए-
अरि रुण्ड है मंगल कलश, अरि मुंड के दीपक जलें।
चन्दन प्रलेपन रक्त का, दिग्पाल अंगों में मलें । ।
(ख) कलात्मक सौन्दर्य - भाषा-शैली - प्रस्तुत खण्डकाव्य की भाषा कथावस्तु के अनुकूल ही है । तत्सम शब्दों की बहुलता है, अवसर के अनुकूल भाषा का स्वरूप परिवर्तनशील है। कहीं-कहीं लचक, तनिक ज्यादा आदि उर्दू, दीन, रंच जैसे देशज शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। भाषा में सूक्तियों के प्रयोग से चमत्कार आ गया है।
छन्द और अलंकार - खण्डकाव्य में अधिकांश सर्ग 26 मात्राओं के गीतिका छन्द में वर्णित हैं। पाँचवें सर्ग के अन्त में घनाक्षरी छन्द का प्रयोग हुआ है। कवि ने छन्दों को अवसर के अनुकूल प्रयोग किया है, जिससे अभिव्यक्ति में स्वाभाविकता आ गयी है।
वातावरण का चित्रण - अपने सीमित क्षेत्र के अन्तर्गत कवि को जहाँ कहीं भी देश, काल अथवा परिस्थिति के चित्रण का अवसर मिला है, बड़ी ही सजीवता से उसे चित्रित किया है। प्रभाकरवर्द्धन की रोगशैय्या का राज्यश्री के अग्निदाह का, विन्ध्य के वनों का, हर्ष की राज्य-व्यवस्था का, पंचवर्षीय प्रयाग मोक्ष के मेला का वर्णन कवि ने बड़ी कुशलता से चित्रित किया है। चित्रण में सजीवता एवं स्वाभाविकता है।
कथोपकथन - काव्य में हर्ष - राज्यश्री, हर्ष - आचार्य दिवाकर मित्र, राज्यश्री और दिवाकर मित्र, हर्ष और महारानी यशोमती, हर्ष और प्रभाकरवर्द्धन, हर्ष और राज्यवर्द्धन आदि के बीच कथोपकथन का आयोजन किया गया है। कथोपकथन अत्यन्त ही नाटकीय एवं काव्यमय है। उसमें स्वाभाविकता, सरलता और प्रभावोत्पादकता है।
‘त्यागपथी' खण्डकाव्य का उद्देश्य
प्रस्तुत खण्डकाव्य ‘त्यागपथी' का उद्देश्य हर्ष और राज्यश्री के चरित्र के माध्यम से पाठकों में देश-प्रेम, त्याग-भावना, आदर्श गणतन्त्र की स्थापना, धर्म-नीति, न्याय, अहिंसा, प्रेम, शान्ति आदि शाश्वत मानवीय मूल्यों की स्थापना है।
किसी भी साहित्यिक कृति में जब किसी सद्गुणी, सदाचारी और महान व्यक्तित्व रखने वाले ऐतिहासिक पुरुष को चित्रित किया जाता है तो इसका एकमात्र उद्देश्य जनसाधारण में उन सद्गुणों के प्रति भावात्मक संवेदना जाग्रत करना होता है। इतिहास से इन गुणों की केवल जानकारी प्राप्त होती है, किन्तु साहित्य में इन गुणों को रस - पाक का सम्प्रेषण प्राप्त होता है, जो मनुष्य की आत्मा को भावात्मक उदात्तता की स्थिति में पहुँचा देता है और उन सद्गुणों की व्यापक छाप पाठक के अन्तर्मन में पैठती है।
प्रस्तुत खण्डकाव्य ‘त्यागपथी' का उद्देश्य भी यही है। इसमें हर्षवर्द्धन के महान गुणों को भावात्मक अभिव्यक्ति देकर उसके असाधारण व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। कवि का उद्देश्य जन-चेतना में, विशेष रूप से युवा चेतना में इन सद्गुणों के प्रति भावात्मक संवेदना उत्पन्न करना है। खण्डकाव्य की भाषा-शैली, अभिव्यंजना - शक्ति एवं उदात्त रस-योजना कवि के इस उद्देश्य को प्राप्त करने की दृष्टि से पूर्णतः सफल सिद्ध हुई है । 'त्यागपथी' एक उदात्त गुणों के प्रति मन में भावात्मक संवेगों को उत्पन्न करने में सक्षम खण्डकाव्य है।
‘त्यागपथी' खण्डकाव्य की विशेषताएं निम्नलिखित हैं —
- 'त्यागपथी' की कथावस्तु का मूल आधार ऐतिहासिक है। कवि ने प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्द्धन के जीवन-प्रसंगों को लेकर इस कथावस्तु का संगठन किया है। यद्यपि इनके गठन में कवि ने अपनी मौलिकता का परिचय दिया है, तथापि इस कथावस्तु का मूल आधार ऐतिहासिक ही है।
- इसकी कथावस्तु सम्राट हर्षवर्द्धन के राज्यारोहण से लेकर उनके विशाल साम्राज्य गठन एवं शान्ति स्थापना के बाद उनके त्यागमय जीवन से सम्बन्धित है। इसके पश्चात् भी इस विस्तृत पृष्ठभूमि पर आधारित कथानक के अन्तर्गत ही हर्षवर्द्धन के युद्धों एवं साम्राज्य गठन आदि का अत्यन्त प्रभावकारी चित्रण दृष्टव्य है।
- कथावस्तु का संगठन अत्यन्त सुनियोजित रूप में हुआ है। शिकार के समय हर्षवर्द्धन को पिता की मृत्यु की सूचना प्राप्त होने से इस कथावस्तु का प्रारम्भ होता है और यह अनवरत सुनियोजित रूप से विकसित होती हुई हर्षवर्द्धन के त्याग का चित्रण कर समाप्त हो जाती है।
- इस खण्डकाव्य की कथावस्तु में हर्षवर्द्धन एवं राज्यश्री दो ही पात्र प्रमुख हैं। इनकी चारित्रिक विशेषताओं को प्रकाशित करने के लिए अन्य पात्रों को भी सम्मिलित किया गया है।
- इसकी कथावस्तु में देश-काल एवं वातावरण का चित्रण अत्यन्त कुशलता से किया गया है। काव्यगत रचना में इस प्रकार के चित्रण में कई समस्याएँ होती हैं, किन्तु कवि ने इस दृष्टि से पूर्ण सफलता प्राप्त की है।
- इस खण्डकाव्य की कथावस्तु का चयन एवं समायोजन देशप्रेम, मानवीय संवेदना, उत्तम राज्य - प्रशासन, त्याग एवं आदर्श की उदात्त अभिव्यक्ति हेतु किया गया है।
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