रंगभूमि' उपन्यास की कथावस्तु की प्रमुख विशेषताओं की समीक्षा कीजिए। काशी के बाहरी भाग में बसे पांडेपुर गाँव को 'रंगभूमि' का कथा-मंच बनाया गया है। ग्वा
रंगभूमि' उपन्यास की कथावस्तु की प्रमुख विशेषताओं की समीक्षा कीजिए।
काशी के बाहरी भाग में बसे पांडेपुर गाँव को 'रंगभूमि' का कथा-मंच बनाया गया है। ग्वाले, मजदूर, गाडीवान और खोमचे वालों की उस गरीब बस्ती में सूरदास नामक एक गरीब और अन्धा चमार रहता है। वह है तो भिखारी किन्तु पुरखों की 10 बीघा धरती भी उसके पास है, जिसमें गाँव के ढ़ोर चरते -विचरते हैं। सामने ही एक खाल का गोदाम है। उसका आढ़ती है एक ईसाई - जॉन सेवक। वह सिगरा मुहल्ले का निवासी है। 'रंगभूमि' की मुख्य कथा के साथ जुडने वाली उपकथा है - सोफिया और विनय के परस्पर प्रेम का ।
जॉन सेवक के परिवार से या का श्री गणेश करने के साथ-साथ सूरदास, सोफिया, जॉन सेवक आदि का सामान्य परिचय उपन्यास के पाठक का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। कथा के भावी विकास के लिए सामग्री जुटने लगती है और उस में विश्वसनीयता भी आजाती है।
कथा का विकास क्रम :-
रंगभूमि में कथा के विकास के लिए संकेत विधि को भी उपन्यासकार प्रेमचन्द ने अपना या है। कथोपकथन द्वारा भावी वे भावी घटनाओं का संकेत देते हैं जैसे- मिसेज सेवक तथा जान सेवक के वार्तालाप द्वारा सूरदास की जमीन लेने की भावी घटना का संकेत मिल जाता है । द्वितीय, संकल्प एवं प्रतिज्ञा द्वारा भी भावी घटनाओं का संकेत देते हुए कथा का विकास होता है, यथा- सूरदास ताहिर अली के सामने अपना संकल्प बतादेता है, "मेरे जीते जी तो जमीन न मिलेगी, हाँ मर जाऊँ तो भले ही मिल जाए।' यहाँ जमीन के लिए अवश्यंभावी संघर्ष का प्रतीक है। इसी प्रकार सोफिया के संकल्प से उसके घर से निकलने की सूचना मिल जाती है, "अब इस घर में रहना नरकवास के समान है। इस बेहयाई की रोटियाँ खाने से भूखों मर जाना अच्छा बला से लोग हँसेंगे, आजाद तो हो जाऊँगी। किसी के ताने तो न सुनने पडेंगे।"
3. भविष्यवाणी - कथा का विकास :-
'रंगभूमि' उपन्यास में भविष्यवाणी द्वारा भी कथा का विकास हुआ है। यह भविष्यवाणी कहीं शाप के रूप में प्रकट होती है, तो कहीं आशंका के रूप में। उदाहरण के लिए जेलर की भूढ़ी माँ अपने बेटे की हत्या से दुःखी होकर सोफिया को शाप देती है - " जैसा तूने किया वैसा तेरे आगे आएगा । मेरी भाँति तेरे दिन भी रोते बीतें । " फलतः, सोफिया और विनय सचमुच विवाह का सुख नहीं भोग पाते अपितु दोनों को आत्महत्या के लिए विवश होना पडता है । इन्दु भी विनय और सोफिया के प्रेमभाव पर अमंगल की आशंका करते हुए कहती है - " यह आग सारे घर को जला देगी, विनय के ऊँचे-ऊँचे मंसूबे, माता की बडी-बडी अभिलाषाएँ, पिता के बडे-बडे अनुष्ठान सब विध्वांस हो जायेंगे।'' इन्दु की आशंका सत्य-सिद्ध निकलती है ।
‘रंगभूमि' उपन्यास के कथानक में कुछ उलझने तथा बाधाएँ होने पर भी कथाक्रम में कहीं रुकावट नहीं आती। औद्योगीकरण की समस्या का विशद चित्रण करके भी कथानक को आगे बढ़ाया गया है। सामन्ववादी समस्या भी इस में सम्मिलित हो गया है। एक ओर जॉन सेवक के हथकण्डे चलते हैं, तो दूसरी और सूरदास का संकल्प अउजाता है । आँद्योगीकरण की विजय के साथ-संघर्ष समाप्त हो जाता है।
3. नाटकीय संरचना :-
कथानक को रोचक और उत्सुकता पूर्ण बनाने के लिए 'रंगभूमि' में नाटकीय प्रसंगों और कौतूहलपूर्ण घटनाओं का समावेश हुआ है। सोफिया का घर से निकल पडना, जलती हुई आग में कूद पडना, विनय को आग से बचाना, वीरपाल का जेल में सेंध लगाना, सोफिया के पत्थर लग जाने पर विनय का गोली चला देना, सोफिया का गायब होना, भीलों की बस्ती में सोफिया और विनय का साल भर रहना आदि घटनाएँ रोचकता एवं कौतूहल उत्पन्न करती हैं।
4. वस्तु-विन्यास :-
'रंगभूमि' उपन्यास की कथा का वृत्तान्त मूलतः तत्कालीन भारतीय समाज है । उपन्यासकार प्रेमचन्द ने जीवन के प्रायः सभी रूपों का पूर्णतया आभव्यक्त करने का प्रयत्न किया। धार्मिक, सामाजिक तथा मानवीय वर्गों का चित्रण हुआ है। औद्योगीकरण में उत्पन्न विविध समस्याओं का विशद चित्र अंकित किया गया है । उपन्यासकार प्रेमचन्द ने व्यापकता के निर्वाह के लिए कथा के तीन केन्द्र रखे हैं - (1) पहला केन्द्र पांडेपुर । आधिकारिक कथा का केन्द्र सूरदास इसका नायक है। (2) दूसरा केन्द्र काशी है। यहाँ से जॉनसेवक, सोफिया, विनय, राजा महेन्द्रकुमार तथा इन्द्र से सम्बन्धित कथा का पल्लवन होता है। (3) तीसरा केन्द्र उदयपुर की रियासत है। इसके सूत्रधार विनयकुमार हैं।
इन कथाओं के अतिरिक्त अनेक उपकथाएं समानान्तर चलती रहती हैं । - जैसे भैरों-सुभागी, ताहिर अली और उसका परिवार आदि की उपकथाएँ ।
रंगभूमि की कथा को प्रेमचन्द ने दुःखान्त में परिवर्तित किया है । वह प्रायः पात्रों की मृत्यु, हत्या अथवा आत्महत्या द्वारा होता है । उपन्यास में इन्द्रदत्त की मृत्यु गोली लगने से होती है, विनय आत्महत्या करलेता है, सोफिया गंगा में डूब कर प्राण खो देती है, सूरदास अस्पताल में मर जाता है, और राजा महेन्द्र कुमार सिंह सूरदास की प्रस्तर प्रतिमा के नीचे दबकर प्राण खो देते हैं। इस प्रकार 'रंगभूमि' उपन्यास की कथा दुखान्त होती है।
5. अन्तर कथाएँ :-
कथानक की आधारशिला पांडेपुर में रखी गई है। काशी का घटनाक्रम उस में आकर जुड जाता है और दोनों कथाएँ साथ-साथ चलती हैं। 'रंगभूमि' उपन्यास का आधार औद्योकीकरण है । औद्योगीकरण की आरम्भिक परिस्थितियों को प्रकट करने के लिए उपन्यासकार ने दो कथाओं की योजना प्रस्तुत है। दोनों कथाएँ आपस में गुँथ गये हैं। उदयपुर रियासत से सम्बन्धित अनेक घटनाएँ अप्रासंगिक हो गई है। किन्तु, रानी जाह्नवी की विनय के प्रति महत्वाकांक्षा इस कथा का मूल स्रोत है । वह विनय को वीर, कर्मनिष्ठ, आत्म-त्यागी और समाज सेवक के रूप में देखना चाहती है । सोफिया के प्रति उसकी अनुराग-वृद्धि को रोकने तथा इस प्रेम को अशरीरी बनाने के लिए लेखक कुछ समय के लिए उसे मुख्य रंगभूमि से हटाकर जसवन्तनगर भेज देता है ।
कथा-शिल्प की दृष्टि से ताहिर अली की कथा भी आलोच्य है । ताहिरअली के और उसके समस्त परिवार की कथा में उपन्यासकार का विशेष उद्देश्य है । इस के द्वारा मध्यम वर्गीय परिवार की समस्याओं का चित्रण हुआ है। दस बीधे भूमि की रक्षा - हित की गई स्वार्थमूलक व्यक्ति परक लडाई न होकर, भारतीय ग्रामीण जीवन तथा निम्न-मध्य वर्ग के अधिकारों की लडाई बन जाती है।
दोष
वस्तु-शिल्प की दृष्टि से ‘रंगभूमि' के कथाक्रम में कुछ दोष भी आ ही गये हैं। पहला दोष है कि उपन्यासकार बीच-बीच में आकर बार-बार टीका-टिप्पणी करने लगता है । फलतः कथाकीगति मंद पड जाती है । दूसरा दोष है - कथाक्रम में कुछ घटनाओं का आकस्मिक, अस्वाभाविक एवं अप्रासंगिक रूप में समावेश कई जगह अपने आदर्शों के लिए उपन्यासकार प्रेमचन्द ने कथा को तोडा है । कथानक में उक्त दोष होते हुए थी। 'रंगभूमि' उपन्यास तत्कालीन संपूर्ण समाज को उपन्यासकार अपने कथानक के भीतर समेटे हुए हैं। ‘रंगभूमि' में भारतीय समाज की सम्पूर्ण को गाथाबद्ध करने का प्रयास हुआ है।
निष्कर्ष
'रंगभूमि' उपन्यास में उपन्यासकार का व्यापक दृष्टिकोण और कथा की सुदृढ़ पकड़ दोनों ही सुन्दर बडे हैं। अनेक आख्यानों एवं घटनाओं का विस्तार में चित्रण हुआ है। मानव जीवन के अखण्ड चित्र को चित्रित करने के महान उद्देश्य पर 'रंगभूमि' की रचना हुई है।
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