NCERT Solutions for मीरा के पद का सारांश Class 11: प्रस्तुत अध्याय 'मीरा' में संकलित दोनों पद नरोत्तम दास स्वामी द्वारा सम्पादित मीराँ मुक्तावली से लि
NCERT Solutions for मीरा के पद का सारांश Class 11
मीरा के पद का सारांश: प्रस्तुत अध्याय 'मीरा' में संकलित दोनों पद नरोत्तम दास स्वामी द्वारा सम्पादित मीराँ मुक्तावली से लिए गये हैं। पहले पद में मीरा ने कृष्ण से अपनी अनन्यता व्यक्त की है। मोर मुकुटधारी श्रीकृष्ण को अपना पति और सर्वस्व मानते हुए मीरा कहती है कि श्रीकृष्ण के सिवा इस दुनिया में उनका और कोई अपना नहीं है। उन्होंने लोक-लाज सब त्याग कर स्वंय को श्रीकृष्ण भक्ति में लीन कर लिया है। श्रीकृष्ण के प्रेम में पड़कर मीरा को आनंद की अनुभूति हो रही है। जिस प्रकार दूध में मथनी डालकर दही से मक्खन निकाला जाता है और बची हुई छाछ को अलग कर दिया जाता है उसी प्रकार मीरा ने भी भगवद् भक्ति को अपने प्रेम से प्राप्त कर लिया है और सांसारिकता से स्वंय को दूर रखा है।
मीरा भक्तों को देखकर खुश होती है वहीं दूसरी ओर सांसारिकता में फंसे हुए लोगों के लिए दुःखी होती है और विनती करती है कि ईश्वर उनका उद्धार करें। दूसरे पद में श्रीकृष्ण के प्रेम रस में डूबी मीरा सभी रीति-रिवाजों और बंधनों से मुक्त होने और गिरधर के स्नेह के कारण अमर होने की बात कर रहीहै। मीरा कृष्ण के प्रेम में दीवानी होकर पैरों में घुंघरू बाँधकर नाच रही हैं वे अपने इस प्रेम को पूरी दुनिया के सामने व्यक्त करना चाहती है जिसे लोग पागलपन कहते हैं उनके रिश्तेदार कहते हैं कि ऐसा कर्म करके उन्होंने अपने कुल की छवि मिट्टी में मिला दी है।
मीरा को मारने के लिए राणा ने विष का प्याला भेजा जिसे मीरा ने हँसते-हँसते पी लिया और अमर हो गई। मीरा ने यह भी कहा कि यदि प्रभु की भक्ति सच्चे मन से की जाए तो वे सहजता से प्राप्त हो जाते हैं। मीरा ने ईश्वर को अविनाशी कहा है क्योंकि वे अजर है, अमर है। मीरा की प्रभु श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति, प्रेम व आस्था ही उनका वास्तविक धन है । वे स्वंय को श्रीकृष्ण की दासी समझती है।
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