वापसी कहानी की कथावस्तु: उषा प्रियंवदा की वापसी एक सेवानिवृत्त रेलवे कार्मिक गजाधर बाबू की कहानी है। कहानी में इस बात का उल्लेख नहीं है कि गजाधर बाबू
वापसी कहानी की कथावस्तु - Vapsi Kahani ki Kathavastu
वापसी कहानी की कथावस्तु: उषा प्रियंवदा की वापसी एक सेवानिवृत्त रेलवे कार्मिक गजाधर बाबू की कहानी है। कहानी में इस बात का उल्लेख नहीं है कि गजाधर बाबू रेलवे में किस पद पर थे और किस तरह का काम करते थे। लेकिन 'वापसी' कहानी में बताया गया है कि उनकी पोस्टिंग आमतौर पर छोटे स्टेशनों पर होती थी, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे स्टेशन मास्टर पद पर कार्य करते होंगे। स्टेशन मास्टर का पद ऐसा है जिसमें रेलवे कार्मिक को छोटे-छोटे स्टेशनों पर ड्यूटी देनी होती है। गजाधर बाबू रेल विभाग में पैंतीस साल तक नौकरी करने के बाद अपने घर लौट रहे हैं। उनकी नौकरी इस तरह की है कि उन्हें रेलवे के छोटे-छोटे स्टेशनों पर रहना पड़ता है। उन छोटी जगहों पर वे अपने बच्चों की पढ़ाई का उचित प्रबंध नहीं कर सकते थे और न ही वे अपनी पत्नी और बच्चों को अन्य सुविधाएँ प्रदान कर सकते थे। यही सोचकर उन्होंने शहर में एक मकान बनवा लिया था जहाँ उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ रहती थीं। गजाधर बाबू के कुल चार बच्चे थे दो बेटे, दो बेटियाँ एक बेटी और एक बेटे की शादी हो गई थी। बेटी शादी के बाद ससुराल चली गई थी लेकिन बेटा उसी मकान में अपनी माँ, पत्नी और छोटे भाई और बहन के साथ रह रहा था। छोटे भाई- बहन अभी पढ़ रहे थे।
गजाधर बाबू लौटकर इसी अपने घर-परिवार में आते हैं। उनमें घर लौटने की खुशी है। अपनी पत्नी का साथ दुबारा पाने की इच्छा है जिनके साथ बिताये कई सुखद अनुभव उनकी यादों में बसे हैं। पत्नी की सुंदर और स्नेह भरी छवि उनकी स्मृतियों में बनी हुई है। लंबे काल तक अपनी पत्नी और बच्चों से अलग और अकेले रहने से उन्हें मुक्ति मिलने वाली है, इस बात ने उन्हें खुशी से भर दिया है। हालाँकि उनके मन में इस बात का विषाद भी है कि इतने सालों जिस संसार में रहे वह भी उनसे छूट रहा है। यहाँ उन्हें आदर भी मिला है और स्नेह भी । लेकिन जहाँ वे जा रहे हैं वह उनका अपना घर-संसार है। गजाधर बाबू के उस समय की मानसिकता को कहानीकार इन शब्दों में व्यक्त करती हैं, 'गजाधर बाबू खुश थे, बहुत खुश। पैंतीस साल की नौकरी के बाद वह रिटायर होकर जा रहे थे। इन वर्षों में अधिकांश समय उन्होंने अकेले रहकर काटा था। उन अकेले क्षणों में उन्होंने इसी समय की कल्पना की थी, जब वह अपने परिवार के साथ रह सकेंगे। कहानी का केंद्रीय मुद्दा यह है कि घर पहुँचने पर क्या उन्हें वही संसार मिलता है जो उनकी यादों में बसा था और जिसके मिलने की उन्होंने उम्मीद की थी।
गजाधर बाबू को वह दुनिया नहीं मिलती जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी। जल्दी ही उन्हें एहसास हो जाता है कि वे अपने ही घर में बिन बुलाए मेहमान की तरह है। उनके आने से जैसे घर की बनी बनायी व्यवस्था में व्यवधान पैदा हो गया है। कहानी में कुछ ऐसे प्रसंगों का उल्लेख हैं जो उन्हें धीरे-धीरे अपने घर वालों से दूर ले जाती है। यहाँ तक कि उन्हें लगता है कि उनकी पत्नी भी अब उनके करीब नहीं रह गई है। वे हर घटना के बाद घर से दूर छोटे स्टेशनों पर बिताई अपनी जिंदगी को याद करने लगते। कहानी की शुरुआत में ही वर्णित एक घटना के उल्लेख से इसे समझा जा सकता है।
रेलवे स्टेशन के नौकरी लौटने के बाद पहली बार गजाधर बाबू अपने बच्चों के अनुपस्थिति में चाय पीते हुए हँसी-मजाक कर रहे होते हैं।बीच जाते हैं जो उनकी लेकिन उनको देखकर सब चुप हो जाते हैं। बहू अपने सिर पर पल्ला रखकर चली जाती है। बेटा चाय का आखिरी घूँट भरकर वहाँ से खिसक जाता है। बेटी बसंती पिता के लिए चुपचाप कप में चाय उँडेलती है और कप उनके हाथ में पकड़ा देती है। पिता चाय का घूँट लेते हैं और कहते हैं, 'बिट्टी चाय तो फीकी है। यह छोटी सी घटना इस बात को बताती है कि पिता की पसंद-नापसंद के बारे में बच्चों को कोई जानकारी नहीं है। इस बीच पत्नी वहाँ आती है। लेकिन वह अपना ही दुखड़ा रोने लगती है। गजाधर बाबू चाय और नाश्ते का इंतजार करने लगते हैं। उन्हें ऐसा लगने लगता है कि उनकी मौजूदगी ने घर में कोई उत्साह पैदा नहीं किया है। ऐसे समय उन्हें रेलवे स्टेशन के अपने नौकर गनेशी की याद आती है: 'रोज सुबह, पैसेंजर आने से पहले वह गर्मा- गर्म पूरियाँ और जलेबी बनाता था। गजाधर बाबू जब तक उठकर तैयार होते, उनके लिए जलेबियाँ और चाय लाकर रख देता था। चाय भी कितनी बढ़िया, काँच के गिलास में ऊपर तक भरी लबालब, पूरे ढाई चम्मच चीनी, और गाढ़ी मलाई। पैसेंजर भले ही रानीपुर लेट पहुँचे, गनेशी ने चाय पहुँचाने में कभी देरी नहीं की। क्या मजाल कि कभी उससे कुछ कहना पड़े।
गजाधर बाबू अपने घर वालों से गनेशी से ज्यादा की अपेक्षा करते थे लेकिन उन्हें गनेशी जैसी सेवा और आदर घर में नहीं मिल रहा था। इसका उन्हें एहसास होने लगा था। बाद की घटनाओं से यह एहसास बढ़ता जाता है। घर में उनके रहने की व्यवस्था कुछ इस तरह की जाती है जैसे 'किसी मेहमान के लिए कुछ अस्थायी प्रबंध कर दिया जाता है । पत्नी बच्चों के बारे में बहुत-सी शिकायतें करती हैं लेकिन जब उन शिकायतों पर वे बच्चों को कुछ कहते हैं, तो न बच्चों को अच्छा लगता है और न ही पत्नी को।
अपने प्रति अपनी पत्नी और बच्चों का व्यवहार उन्हें अंदर तक आहत कर देता है। पत्नी की जो सुंदर और स्नेह भरी छवि देखने की उम्मीद उन्होंने की थी, उन्हें लगता है कि वह कहीं खो गई हैं। अब वही पत्नी कुछ इस तरह नज़र आती है: 'गाढ़ी नींद में डूबी उनकी पत्नी का भारी शरीर बहुत बेडौल और कुरूप लग रहा था, चेहरा श्रीहीन और रूखा था। गजाधर बाबू का पूरा व्यवहार घर के मुखिया सा है जो मानता है कि घर में व्यवस्था और अनुशासन लाने की जिम्मेदारी उनकी है। इसके लिए वे जो भी प्रयत्न करते हैं वे बच्चों को अपनी जिंदगी में दखल लगते हैं और इस बात को वे किसी न किसी रूप में व्यक्त भी कर देते हैं। इससे गजाधर बाबू और अधिक दुखी हो जाते हैं। उनका अकेलापन और अधिक बढ़ जाता है। लेकिन जब उनकी पत्नी बताती है कि बड़ा बेटा अमर अलग होना चाहता है तो वे समझ जाते हैं। कि इस घर में उनके लिए कोई जगह नहीं है। पिता की गैर मौजूदगी में "अमर घर का मालिक बनकर रहता था - बहू को कोई रोक-टोक न थी। अमर के दोस्तों का प्रायः यहीं अड्डा जमा रहता था और अंदर से नाश्ता- चाय तैयार होकर जाता रहता था। बसंती को भी वही अच्छा लगता था। स्पष्ट ही गजाधर बाबू ने जाने-अनजाने घर के अन्य सदस्यों की स्वतंत्रता छीन ली थी। यहाँ यह प्रश्न जरूर उठता है कि उस घर-परिवार में उनकी पत्नी ने अपने को 'एडजस्ट' कर लिया था लेकिन गजाधर बाबू क्यों नहीं कर सके। क्यों वे यह चाहते थे कि घर के सभी लोग उनकी इच्छा के अनुरूप अपने को ढालें न कि वे खुद उनके अनुकूल अपने को ढाल ले। इस लचीलेपन के न होने के कारण ही गजाधर बाबू को अकेले ही दुबारा उसी छोटी जगह जाने का फैसला करना पड़ता है जहाँ से वे सेवानिवृत्त हुए थे। यहाँ तक कि उनकी पत्नी भी साथ जाने के लिए तैयार नहीं होती।
'वापसी' कहानी छोटे-छोटे प्रसंगों से निर्मित हुई है। इसमें ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जो असामान्य हो। लेकिन इन सामान्य प्रसंगों से ही कहानी में गजाधर बाबू का अकेलापन बहुत ही तीव्रता से उभरकर आता है। कहानी गजाधर बाबू के नज़रिए से लिखी गई है। इसलिए शेष पात्रों का पक्ष उन्हीं के नज़रिए से सामने आता है और वे सभी किसी न किसी रूप में गजाधर बाबू को घर छोड़ने के लिए मजबूर करते नज़र आते हैं।
कहानी को तीन भागों में विभाजित करके देख सकते हैं। पहले भाग में गजाधर बाबू का रिटायर होकर अपने घर लौटने से संबंधित प्रसंग हैं। यह भाग छोटा है जिसमें घर-परिवार के बीच लौटने का उल्लास मुख्य रूप से व्यक्त हुआ है। दूसरा भाग जिसमें कहानी का विकास होता है, उसमें गजाधर बाबू का अपने घर-परिवार वालों के साथ रहने से जुड़े प्रसंग हैं। इन प्रसंगों के माध्यम से गजाधर बाबू का अपने ही परिवार से होने वाले मोहभंग का अपेक्षाकृत विस्तार से वर्णन है। तीसरे भाग में उनका वापस उसी छोटी जगह लौट जाने का निर्णय और लौटना है जहाँ से वे रिटायर होकर आये थे। इस तरह गजाधर बाबू की नौकरी से पहली वापसी और घर से दूसरी वापसी में खत्म हो जाती है।
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