स्वप्नवासवदत्ता नाटक का सारांश - Swapnavasavadatta Natak ka Saransh

स्वप्नवासवदत्ता नाटक का सारांश- प्रस्तुत नाटक 'स्वप्नवासवदत्तम छह अंकें पर आधारित नाटक है। अतः इस लेख में स्वप्नवासवदत्तम नाटक के छह भागों का सारांश प

स्वप्नवासवदत्ता नाटक का सारांश - Swapnavasavadatta Natak ka Saransh

प्रस्तुत नाटक 'स्वप्नवासवदत्तम छह अंकें पर आधारित नाटक है। अतः इस लेख में स्वप्नवासवदत्तम नाटक के छह भागों का सारांश प्रस्तुत किया गया है। नाटकीय कथा - वस्तु बड़े ही रूचिक वर्णनों द्वारा धीरे धीरे आगे बढ़ती है। अवन्तिनरेश प्रद्योत अपनी पुत्री वासवदता का विवाह नरेश उदयन से करना चाहता था। उसके अमात्य शालङ्कायन ने छलपूर्वक उदयन को हाथियों का शिकार करते समय वन्दी बनाया। वन्दी उदयन को वासवदत्ता की वीणा शिक्षा के लिये नियुक्त किया। धीरे-धीरे वासवदत्ता ओर उदयन एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुये उदयन अपने मन्त्री यौगन्धरायण की सहायता से उज्जयिनी से वासवदत्ता सहित भागने में सफल हुआ।

स्वप्नवासवदत्ता नाटक का सारांश - Swapnavasavadatta Natak ka Saransh

उदयन के राज्य को पड़ोसी राजा आरुणि ने हथिया लिया अपने राज्य को वापिस लेने के लिये उदयन के सचिव यौगन्धरायण ओर अमात्य रूमण्वास एक योजना बनाई । पद्मावती के साथ विवाह करने से उदयन को मगधराज की सैनिक सहायता प्राप्त हो सकती थी । यौगन्धरायण ने अपनी योजना के अधीन लाकर ग्राम में आग लगा दी और सुचित कर दिया कि आग में यौगन्धरायण और वासवदत्ता जलकर मर गये। इस प्रकार उदयन के दूसरे विवाह के लिये ( जो प्रस्तुत नाटक का विषय है) उपयुक्त पृष्ठ भूमि तैयार की गई।

स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सारांश 

लावणक ग्राम से निकल कर यौगन्धरायण और वासवत्ता क्रमशः ब्राह्मण सन्यासी और आवन्तिका के वेश में मगध की राजधानी राजगृह के निकटवर्ती किसी आश्रम में पहुँचते हैं। इसी समय मगधराज दर्शक की बहिन पद्मावती भी, उसी आश्रम में एकांत जीवन बिना रही अपनी माँ से मिलने के लिये अपने परिजन के साथ वहाँ आती है। अपने धर्मानुरागी स्वभाव के अनुरूप वह वहां घोषणा कराती है कि वह तपस्विजनों को मुंहमांगी वस्तु प्रदान करेगी।

यौगन्धरायण अवसर पाकर निवेदन करता है 'मुझे किसी पदार्थ की इच्छा नहीं, किंतु प्रार्थना है कि राजकुमारी जी मेरी बहिन अवन्तिका को, जिसका पति विदेश गया हुआ है, कुछ समय के लिये अपने पास रखे।"

पद्मावती उसकी असमर्थता से स्वीकार करती है । अवन्तिका ( वासवदता) पद्मावती के पास चली जाती है।

इसी समय वहाँ एक ब्रह्मचारी आता है। लावाणक ग्राम से आया वह ब्रह्मचारी उस ग्राम में आग लग जाने एवं उस आग में वासवदता और यौगन्धरायण के जल मरने का समाचार सुनाता है। वह उस समाचार को सुनकर व्याकुल हो गये उदयन की करूण दशा का भी वर्णन करता है । यौगन्धरायण और वासवदत्ता अन्जान बन कर यह सब सुनते हैं। कुछ समय बाद यौगन्धरायण पद्मावती से अनुमति लेकर वहां से चला जाता है। पद्मावती भी आवन्तिका के साथ आश्रम में स्थित अपने कक्ष में चली जाती है।

स्वप्नवासवदत्तम् के द्वितीय अंक का सारांश

राजकुमारी पद्मावती अपने भाई मगधराज दर्शक के राजप्रसाद के साथ लगी वाटिका में अपनी सखियों के साथ गेंद खेल रही होती है। वहीं बात बात में उसकी चेटी अवन्तिका को बताती है कि राजकुमारी वत्सराज उदयन से विवाह सम्बन्धी इच्छुक है। इसी बीच पद्मावती की धारा वहां आकर समाचार देती है कि किसी कारण यहा आये उदयन ने महाराज दर्शक के आग्रह पर पद्मावती से विवाह करना स्वीकार कर लिया है, और पद्मावती का वाक्दान हो गया है। वह भी सूचना देती है कि "कौतुक मंगल' (विवाह सूत्र बांधने का मग्ङलाचार ) आज ही सम्पन्न होगा। वह राज कुमारी को उक्त मंगलाचार के अनुष्ठान के लिये अपने साथ ले जाती है।

स्वप्नवासवदत्तम् के तृतीय अंक का सारांश

अविन्तका प्रमदवन के एक कोने में अपने भाग्य को कोस रही होती है। वह यह सोचकर परम दुःखी है कि उसका पति अब दितीय विवाह सूत्र में बँधकर पराया होने जा रहा है।

उधर विवाह की तैयारियाँ चल रही है। इसी सिलसिले में अवन्तिका से जयमाला गुँथवाने के लिये उसे ढूंढती हुई महारानी की एक चेटी फूल लेकर उसके पास प्रमदवन पहुंचती है, और उसे शीघ्र ही जयमाला तैयार करने को कहती है।

अवन्तिका अपने भाग्य को कोसती हुई जयमाला गूंथ कर उसे पकड़ा देती है।

स्वप्नवासवदत्तम् के चतुर्थ अंक का सारांश

विवाह के उपरान्त उदयन राजकीय अतिथि के रूप में महाराज दर्शक के राज प्रासाद में निवास करता है। उस का मित्र विदूषक भी उसके साथ है। दोनों प्रमवदन में प्रवेश करते हैं। जहाँ वह पहले ही पद्मावती और वासवदत्ता चेटी के साथ पहुंची हुई होती है। उदयन को देखकर वह निकटवर्ती माधवी लतामण्डप में घुस जाती है। उदयन और विदुषक लतामण्डप के पास जाते हैं और सहज भाव से उसके अन्दर प्रवेश करना चाहते हैं। यह देख चेटी भौरों से घिरे लताहार की एक शाखा को हिलाकर उन्हें बाहर ही रोक देती है। वे बाहर ही एक शिला तल पर बैठ जाते हैं और आपस में बाते करने लगते हैं। विदुषक पूछता है "कि आपको पहले वासवदता अधिक प्रिय थी अब पद्मावती अधिकप्रिय है।" उदयन उसके इस अटपटे प्रश्न को टालने का प्रयास करता हैं, परन्तु विदुषक हठ करके उससे कहलवा लेता है? "सुन्दर और गुणवती होने पर भी पद्मावती वासवदत्ता में आबद्ध मेरे हृदय को हर नहीं सकती।" वासवदत्ता की स्मृति में उदयन की आँखे बरवस सजल हो जाती हैं। विदुषक मुँह धोने के लिये पानी लाने जाता हैं। इतने में अवसर पाकर आवन्तिका वहां से निकल जाती है और पद्मावती उदयन के पास पहुंच जाती है। विदुषक और उदयन काशकुसुमकी धूल पड़ जाने से आंखे सजल हो गई है यह बहाना बनाते हैं। पद्मावती सब कुछ सुन समझ कर भी चुप रहती है। इसके बाद स्थिति कहीं बिगड़ न जाये यह सोचकर विदुषक राजा का वहाँ से चतुरता पूर्वक खिसका ले जाता है।

स्वप्नवासवदत्तम् के पञ्चम अंक का सारांश

उदयन महाराज दर्शक के ही राज प्रासाद में निवास कर रहा है। वह विदुषक से पद्मावती की शिरोवेदना का समाचार पाकर और साथ ही उससे यह जानकर कि उसकी शय्या तथा उपचारादि का प्रबंध समुद्र गृह मे किया गया है वहां पहुंचता है। समुद्र गृह में पद्मावती अभी नहीं पहुंची है। वह उसकी प्रतीक्षा में उसकी शय्या पर स्वयं लेट जाता है। लेटते ही उसे नींद आ जाती है विदुषक ठण्ड के बचाव के लिये चादर लेने चला जाता है। थोड़ी देर बाद आवन्तिका भी पद्मावती की सिरदर्द की खबर सुनकर वहां आती है। वह उसी शय्या पर चादर ओढ़े सोये उदयन को पद्मावती समझ कर लेट जाती है। इसी समय राजा स्वप्न में वासवदत्ता को देखता है तथा उसे प्रेम पूर्वक शब्दों से सम्बोधित करता है।

साथ लेटी हुई अवन्तिका (वासवदत्ता) स्वप्न में बोल रहे राजा की बातों का उत्सुकता पूर्वक उत्तर देने लग जाती है । परन्तु इस भ्रम में कि कहीं राजा जागकर उसे पहचान न लें वह वहाँ से चल पड़ती है। जाते वह पलंग से नीचे लटक रहे राजा के हाथ को पलंग पर टिका देती है।

इसी बीच अचानक राजा की नींद खुल जाती है। वह वासवदत्ता को पकड़ने का प्रयत्न करता है किन्तु दरवाजे से टकार कर वहीं रूक जाता है। विदुषक जब लौट कर आता है तो राजा सारी घटना सुनाकर कहता है कि वासवदत्ता जीवित है, परन्तु विदुषक उसकी बात को यह कहकर टाल देता है कि उसने वासवदत्ता को स्वप्न में देखा होगा अन्यथा वह तो बहुत पहले मर चुकी है।

इसी समय कञचुकी आकर सूचना देता है कि अमात्य रूमणवान ने मगध राज की सहायता से आरूणि पर आक्रमण करने की पूरी तैयारी कर ली है। उदयन युद्ध के लिये तैयार होकर निकल पड़ता है।

स्वप्नवासवदत्तम् के षष्ठ अंक का सारांश

युद्ध में आरूणि कों परास्त कर उदयन अपना खोया राज्य पुनः प्राप्त करता हैं अब वह पद्मावती के साथ अपनी राजधानी कोशाम्बी आ गया है। पद्मावती के साथ आवन्तिका भी आई है। एक दिन उदयन को घोषवती वीणा की जिसको वासवदत्ता अकसर बजाया करती थी मधुर ध्वनि सुनाई पड़ती है। अपने सेवक से उस वीणा को मंगाकर एवं उसे पहचान कर वह वासवदत्ता की समृति में विह्नवल हो उठता है। इसी समय उज्जयिनी से प्रद्योका का कञ्चुकी और वासवदत्ता की धात्री हार पर उपस्थित होते हैं। वे दोनों प्रद्योत का सन्देश देते हुये उसके समक्ष उस चित्र को रखते हैं जिसे प्रधोत ने विवाह विधि के बिना ही उदयन और वासवदत्ता के उज्जयिनी से छिपकर निकल जाने पर उनके विवाह संस्कार की रीति सम्पन्न करने के लिये तैयार कराया था। उस चित्र में अंकित वासवदत्ता को देखकर पद्मावती उदयन को बताती है कि ठीक उसी आकृति की एक उसके पास रहती है। वह कहती है कि उसके अपने विवाह से पूर्व को सन्यासी उसे अपनी बहिन बताकर उसके पास कुछ समय के लिये धरोहर रूप में छोड़ गया था।

ठीक उसी समय यौगन्धरायण वहाँ उपस्थित होता है और अपनी बहिन वापिस माँगता है । अवन्तिका को वहाँ लाया जाता है। राजा उज्जयिनी से आर्य कञ्चुकी और धात्री को साक्षी रखकर उसे उसकी बहिन लौटा देने का आदेश देता है। धात्री देखते ही वासवदत्ता को पहचान जाती है। अब यौगन्धरायण भी अपने वास्तविकरूप और चेतना को प्रकट कर देता हैं।

उदयन अपनी प्रेयसी वासवदत्ता और मन्त्री यौगन्धरायण को पुनः प्राप्त करके प्रसन्न हो जाते है और यह समाचार प्रद्योत को सुनाने के लिए वासवदत्ता और पद्मावती को साथ लेकर कञ्चुकी और घात्री सहित उज्जयिनी चलने का प्रस्ताव रखते हैं। तदनन्तर भरत वाक्य के अन्नतर नाटक सुखान्तरूप में समाप्त होता है ।

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