दोपहर का भोजन कहानी का सारांश - Dopahar ka Bhojan Kahani ka Saransh: 'दोपहर का भोजन' गरीबी से जूझते एक निम्न मध्यवर्गीय शहरी परिवार की कहानी है, जिसके
दोपहर का भोजन कहानी का सारांश - Dopahar ka Bhojan Kahani ka Saransh
'दोपहर का भोजन' गरीबी से जूझते एक निम्न मध्यवर्गीय शहरी परिवार की कहानी है, जिसके मुखिया की अचानक नौकरी छूट जाने के कारण परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो जाता है। परिवार के सदस्यो को भरपेट भोजन तक नसीब नहीं हो रहा है। पूरे परिवार का संघर्ष भावी उम्मीदों पर टिका है। सिद्धेश्वरी संकट की इस घड़ी में परिवार के सभी सदस्यों को एकजुट एवं चिंता मुक्त रखने का अथक प्रयास करती है। वह अपने परिवार को टूटने से बचाने का हर संभव प्रयास करती है। इस लेख में अमरकांत द्वारा लिखी गयी कहानी दोपहर का भोजन का सारांश प्रस्तुत किया गया है।
सिद्धेश्वरी तथा मुंशीजी के परिवार में उनके अतिरिक्त उनके तीन पुत्र हैं- 21 वर्षीय बड़ा बेटा रामचन्द्र, 18 वर्षीय मँझला बेटा मोहन तथा 6 वर्षीय छोटा बेटा प्रमोद । रामचन्द्र एक स्थानीय दैनिक समाचार-पत्र के दफ़्तर में प्रूफ रीडरी का काम सीखता है तथा नौकरी की तलाश में है। मोहन हाईस्कूल के इम्तिहान की तैयारी कर रहा है।
घर के सभी सदस्य रामचंद्र, मोहन तथा मुंशीजी बारी-बारी भोजन के लिए आते हैं। सभी मन ही मन इस वास्तविकता से परिचित हैं कि घर में पर्याप्त भोजन नहीं है। वे सभी कुछ न कुछ बहाना बनाकर आधे पेट ही भोजन करके उठ जाते हैं।
रामचन्द्र के भोजन के दौरान सिद्धेश्वरी मंझले बेटे मोहन की पढ़ाई की झूठी तारीफ करती है। वह मोहन से झूठमूठ कहती है कि रामचंद्र उसकी प्रशंसा करता है। मुंशीजी से भी वह झूठ बोलती है कि रामचन्द्र उन्हें देवता के समान कहता है । 'मकान किराया नियंत्रण विभाग' के क्लर्क के पद से उनकी छँटनी हो चुकी थी और आजकल मुंशीजी काम की तलाश में हैं । मुंशीजी भोजन करते समय सिद्धेश्वरी से नजरें चुराते हैं। उन्हें मालमू है कि घर में भोजन बहुत कम है और वह स्वयं को इस स्थिति का जिम्मेदार मानते हैं।
सिद्धेश्वरी पर्याप्त भोजन न होते हुए भी सदस्यों से और भोजन लेने का आग्रह करती है। ऐसा करके वह घर के सदस्यों को गरीबी एवं अभाव का एहसास नहीं होने देना चाहती। वह सदस्यों की एक-दूसरे के विषय में झूठी तारीफ करके गरीबी के अभावग्रस्त एवं संघर्षपूर्ण वातावरण में भी उन्हें एकजुट तथा खुशहाल रखने की कोशिश करती है।
सबको भोजन करवाने के पश्चात् सिद्धेश्वरी जब स्वयं भोजन करने बैठती है तो उसके हिस्से थोड़ी-सी दाल, जरा-सी चने की तरकारी तथा मात्र एक रोटी आती है। तब उसे अचानक अपने सबसे छोटे पुत्र प्रमोद का ध्यान आता है, जिसने अभी भोजन नहीं किया था। वह आधी रोटी तोड़कर प्रमोद के लिए रख देती है तथा शेष आधी लेकर भोजन करने बैठ जाती है। पहला ग्रास मुँह में रखते ही उसकी आँखों से टपटप आँसू गिरने लगे जो उसकी विवशता को बयान करते हैं।
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