प्रायश्चित कहानी की भाषा शैली: 'प्रायश्चित कहानी की भाषा सरल, सहज स्वाभाविक व पात्रानुकूल है। पंडित परमसुख व गांव की वृद्ध महिलाओं की भाषा स्वाभाविक व
प्रायश्चित कहानी की भाषा शैली - Prayashchit Kahani ki Bhasha Shaili
प्रायश्चित कहानी की भाषा शैली: 'प्रायश्चित कहानी की भाषा सरल, सहज स्वाभाविक व पात्रानुकूल है। पंडित परमसुख व गांव की वृद्ध महिलाओं की भाषा स्वाभाविक व रोचक है। पंडित की भाषा स्वार्थजन्य है। जब बिल्ली के मरने कीखबर मिलती है तो वह पत्नी से कहता है "भोजन न बनाना। लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली, प्रायश्चित होगा। पकवानों पर हाथ लगेगा।" और रामू की माँ से कहता है "हम पुरोहित फिर कौन दिन के लिए हैं ? शास्त्र में प्रायचित का विधान है सो प्रायश्चित से सब ठीक हो जाएगा। लेखक ने कहानी के भाव को व्यंजित करने के लिए व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया है। उदाहरण के तौर पर पंडित जी और मिसरानी का यह संवाद देखिए -
पंडित परमसुख ने कहा, "मेरे अकेले भोजन करने से पांच ब्राह्मण के भोजन का फल मिलेगा।"
“यह तो पंडित जी ठीक कहते हैं, पंडित जी की तोंद तो देखो।"
मिसरानी ने मुसकराते हुए पंडित जी पर व्यंग्य किया।
कहानी के पात्रों की भाषा में ग्रामीण शब्दावली का उचित प्रयोग हुआ है, उनसे अंधविश्वासों के प्रति जनता की आसक्ति तथा विवशता का परिचय मिलता है ......दान - पुन्न से ही पाप कटते हैं। दान - पुन्न में किफायत ठीक नहीं। लोक भाषा व उर्दू भाषा कुछ उदाहरण यूं मिलते हैं छक्के पंजे, परच गई, चम्पत, पंसेरी, ऊंचाई- अंदाजी, औटाए गए, किफायत इत्यादि। समय और स्थिति अनुरूप मुहावरों का प्रयोग कहानी के पात्रों की मनःस्थिति का निरूपण करता है तथा कहानी में रोचकता लाता है- 'रामू की बहू पर खून सवार हो गया, 'न रहे बांस न बजे बांसुरी', 'रामू की बहू ने कबरी की हत्या करने के लिए कमर कस ली।"
वस्तुतः कहानी की भाषा कहानी के भाव को अर्थवत्ता प्रदान करती है।
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